नई दिल्ली : दिल्ली सरकार ने स्कूलों में बच्चों को शारीरिक दंड दिये जाने की प्रथा को समाप्त करने की वकालत की है। सरकार का मानना है कि यह प्रथा पुरानी हो चुकी है जिसकी अब प्रासंगिकता नहीं है। स्टेट काउंसिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च और ट्रेनिंग द्वारा शारीरिक दंड को समाप्त किये जाने को लेकर विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उपमुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि शिक्षकों और शिक्षाविदों को पढ़ाते समय छात्रों के दिमाग से शारीरिक दंड का खौफ निकालने के प्रयास करने चाहिए।
शिक्षकों को बच्चों में ज्यादा से ज्यादा सीखने के लिए क्षमता का निर्माण करना चाहिए। उन्हें प्रयास करना होगा कि बच्चों के दिलो-दिमाग से पढ़ाई को लेकर डर और झिझक समाप्त हो जाए। शिक्षकों को स्नेह का ऐसा वातावरण तैयार करना होगा जिसमें ऐसी आपसी समझ विकसित हो कि छात्र ज्यादा सीख सकें और शिक्षक ज्यादा सिखा सकें। उन्होंने कहा कि देश-दुनिया की ज्यादातर सूचना प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर कंपनियों के कर्मचारी भारतीय हैं लेकिन उनके एक भी मालिक नहीं है। हम उन कंपनियों में कर्मचारी के रूप में वेतन पाकर ही खुश हैं। जबकि मालिक अपनी कई पीढ़ियों के लिए भारी मुनाफा कमाते हैं।
किसानों के हितों में काम कर रही सरकार : सिसोदिया
ऐसा इसलिए, क्योंकि हमारे भीतर डर छिपा है और आत्म विश्वास की कमी है। हमें बच्चे कि ऊर्जा को पहचानने तथा उसे व्यवस्थित करने कि जरूरत है। बच्चों के प्रति वर्ग, जाति, धर्म व लैंगिक आधार पर भेदभाव मानसिक दंड के प्रतीक हैं। साथ ही समाज, शिक्षा व व्यवस्था में असमानताओं को दूर करना जरूरी है। शिक्षामंत्री द्वारा शारीरिक दंड तथा बाल उत्पीड़न पर एक ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आरंभ किया गया।