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सुप्रीम कोर्ट के द्वार पर…

बलात्कार शब्द लिखते हुए एक दर्द रिसता है, मन के भीतर एक चीत्कार उठती है। आत्मा से सवाल उठता है-कहां स्वतंत्र हैं आज की महिलाएं, कितनी स्वतंत्र हैं बेटियां?

बलात्कार शब्द लिखते हुए एक दर्द रिसता है, मन के भीतर एक चीत्कार उठती है। आत्मा से सवाल उठता है-कहां स्वतंत्र हैं आज की महिलाएं, कितनी स्वतंत्र हैं बेटियां? पूरा साल मंचों पर हम महिला स्वतंत्रता का ढोल पीटते हैं। लगता है इस ढोल की आवाज में बलात्कार पीडि़ताओं की आवाज दब कर रह जाती है। इंसानियत की यह कैसी वीभत्स परीक्षा है कि बलात्कार पीड़िता बिना किसी गुनाह के सारी उम्र गुनाहगार बना दी जाती है। परीक्षा हमेशा महिला को देनी होती है। इंसान के नाम पर पशु बना व्याभिचारी कुछ सजा के बाद समाज में सहज स्वीकृति हासिल कर लेता है। वैसे तो महिला कानूनों की एक लम्बी सूची है जो उनके हक में खड़े हैं। शब्दों से बहुत मजबूत है यह कानून लेकिन सारे के सारे लाचार हैं। बलात्कार की शिकार महिलाओं को चरित्रहीन करार दिया जाता है और वह जीवन से हताश होकर आत्मघाती कदम उठा लेती है।
सुप्रीम कोर्ट के गेट पर सोमवार को एक रेप पीड़िता ने अपने सहयोगी के साथ आत्मदाह का प्रयास किया। आत्मदाह करने वाली महिला ने उत्तर प्रदेश के घोसी के सांसद के खिलाफ बलात्कार का मुकदमा दर्ज कराया था। जबकि उसके साथ आत्मदाह करने वाला इस केस में गवाह है। खुद को  आग लगाने से पहले इन दोनों ने सोशल मीडिया पर लाइव किया था। रेप ​पीड़िता ने बताया कि तमाम कोशिशों के बावजूद अब तक उसे न्याय नहीं मिला। यद्यपि आरोपी सांसद इस मामले में दाे साल से जेल में बंद है लेकिन पीड़िता ने उत्तर प्रदेश पुलिस के आला अधिकारियों पर गम्भीर आरोप लगाए हैं। पुलिस ने पीडि़ता पर ही जालसाजी और हनी ट्रेप के आरोप लगाए हैं। रेप पीड़िता को कोर्ट ने भगौड़ा घोषित कर रखा है। क्योंकि यह मामला एक राजनीतिज्ञ से जुड़ा हुआ है। सत्य का पता तभी लगता है जब पुलिस निष्पक्ष आैर ईमानदारी से जांच करे। इसलिए बात का संदेह पुख्ता हो जाता है कि प्रभावशाली व्यक्ति को बचाने के लिए ही पुलिस ने पीड़िता की आवाज को दबाने के लिए हर हथकंडा अपनाया होगा। रेप पीड़िता पर चरित्रहीनता का आरोप लगाकर उसकी जिंदगी को नरक बना ​दिया। जरा सोचिये आत्महत्या का विचार करने वाली युवती किन हालात में गुजर रही होगी, साथ ही इस मामले में गवाह को भी कितना प्रताड़ित किया गया होगा कि दोनों ने न्याय के सर्वोच्च मंदिर के द्वार पर आत्महत्या करने की सोची। आखिर यह सब करते हुए उन्हें पीड़ा की लम्बी सुरंग तो पार करनी ही होती है। आत्महत्या करने वालों की मानसिकता को समझा जाना चाहिए।
यह मामला न्याय, सजा, खानापूर्ति सबसे जुड़ा हुआ है। राजनीति में अपना दबदबा बनाए बैठे बाहुबलियों की घृणित कहानियां कोई नई नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के बाहर हुआ हादसा इस बात का सबूत है कि बलात्कार पीड़िता को अपमानजनक जीवन जीने को मजबूर किया गया। अगर वह प्रतिकार करने में सक्षम नहीं है तो दोष उसका है, अगर वह प्रतिकार करती है तो भी दोष उसका है। दामिनी केस में ना जाने कितने बयान आए थे कि उसने बचाव की को​शिश करके गलती की, समर्पण कर देती तो यह हाल न होता। 
बलात्कार के घृणित मामले अधिकतर बाहर आते ही नहीं हैं। हजारों महिलाओं के अनगिनत अव्यस्त जान कैसी-कैसी करूण कथाएं हैं। अर्थात अनवरत बहती अश्रुओं की ऐसी गाथाएं हैं कि सुनकर कलेजा फटकर बाहर आ जाए लेकिन लोग सुनते हैं, चंद शब्द कहते हैं या लम्बे-चौड़े भाषण देते हैं और फिर आगे बढ़ जाते हैं। जहां तक पुलिस का सवाल है उसके लिए बड़े लोगों के लिए अलग कानून है आैर आम लोगों के लिए अलग कानून है। हैरानी होती है कि बलात्कार मामलों में भारतीयों का खून नहीं खोलता। दामिनी बलात्कार मामले में भारतीयों का खून खोला था तो सामाजिक क्रांति हुई थी कि सत्ता का सिंहासन डोल उठा था। बलात्कार कानूनों को सख्त बनाए जाने के बावजूद कुछ नहीं बदला। समाज में रह रहे हवस के भूखे भेड़िये बच्चियों से दुष्कर्म कर रहे हैं। समाज खामोश है। महिलाएं किसी भी जगह जैसे घर, सार्वजनिक स्थान या दफ्तर में यौन प्रताड़ना का शिकार हो रही है।
‘‘ये दाग जो लहू के, आंचल पर पड़े थे
इस ढेर में बेजान से, अरमान पड़े थे
वो हूबहू इंसान से, पर इंसान ना थे
वासना की कामना घर, हैवान खड़े थे।’’
सुप्रीम कोर्ट के द्वार पर हुई हृदय विदारक घटना का स्वयं अदालत को संज्ञान लेकर पुलिस कार्रवाई की की मानवीय दृष्टिकोण से जांच कराएं ताकि फिर कोई उसके द्वार पर ऐसी घटना न हो।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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