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5 राज्यों के चुनाव तय करेंगे भावी राजनीति

पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव जारी हैं। पूर्वाेत्तर के राज्य मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में मतदान हो चुका है। राज्स्थान में 25 नवंबर और दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में 30 नवबंर को वोटिंग हैं। अगले साल देश में आम चुनाव होने हैं। ऐसे में इन पांच राज्यों के नतीजे देश की राजनीति पर असर डालेंगे। खासकर हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के नतीजे का असर भविष्य की राजनीति पर ज्यादा देखने को मिलेगा। इन तीन राज्यों से लोकसभा के 65 सांसद चुनकर संसद में पहुंचते हैं। तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि गुजरात और उत्तर प्रदेश के बाद लोकसभा में अगर भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं थीं तो वो इसी इलाके से मिलीं थीं। तीन दिसंबर को पांचों राज्यों के परिणाम एक साथ घोषित होंगे। ऐसे में हिंदी पट्टी के विधानसभा के चुनावों के नतीजों पर पूरे देश की नज़र रहेगी क्योंकि इनके परिणाम आते ही आने वाले लोकसभा के चुनावों में क्या कुछ होगा इसके कुछ तो संकेत मिलने लगेंगे। तो क्या ये मान लिया जाए कि इन राज्यों के परिणामों से समझा जा सकेगा कि आम चुनावों में ऊंट किस करवट बैठ सकता है? लेकिन यह तय है कि विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद सत्ता पक्ष और विपक्ष बदले हालातों के हिसाब से लोकसभा के लिए रणनीति बनाएगा।
इतिहास के पन्ने पलटे तो साल 2003 में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक विजय हासिल हुई थी। इससे अति आत्मविश्वास में भरकर अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र सरकार ने लोकसभा भंग कर जल्दी चुनाव करवा दिए किंतु निराशा हाथ लगी और दस साल तक भाजपा केंद्र की सत्ता से बेदखल हो गई। लेकिन इसका उल्टा देखने को मिला साल 2018 में जब मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ने सरकार बनाई किंतु कुछ महीनों बाद हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को इन राज्यों में जबरदस्त सफलता मिली। इन दो उदाहरणों से ये साबित हुआ कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मतदाता एक ही पार्टी या गठबंधन को समर्थन दें ये जरूरी नहीं है। अनेक राज्यों के मतदाताओं ने राज्य और केंद्र की सरकार लिए अलग-अलग दलों को वोट देकर ये संदेश दिया कि उन्हें अपने वोट का समुचित उपयोग करने की भरपूर समझ है। ये देखते हुए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के मौजूदा विधानसभा चुनावों को 2024 के लोकसभा चुनाव की रिहर्सल मान लेने पर भिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं। इन तीनों में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। यद्यपि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, जनता दल यूनाइटेड और आम आदमी पार्टी भी मैदान में कुछ सीटों पर लड़ रही हैं लेकिन उनकी अहमियत तभी रहेगी जब उनके कुछ विधायक जीतें और त्रिशंकु विधानसभा बने। 2018 में म.प्र. में ऐसा हुआ भी लेकिन जो संकेत आए हैं उनके अनुसार तीनों राज्यों में जो भी सरकार बने उसके पास स्पष्ट बहुमत होगा।
कांग्रेस को उम्मीद है कि मध्य प्रदेश की सत्ता भाजपा से छीन लेने के साथ ही वह राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार बचाए रखने में कामयाब हो जायेगी। दूसरी तरफ भाजपा मध्य प्रदेश में स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में वापसी का भरोसा पालने के साथ ही राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने तथा छत्तीसगढ़ में 2018 से बेहतर प्रदर्शन करने के प्रति आश्वस्त है। अगर हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन रहता है या वो जीत हासिल करती है तो जो विभिन्न विपक्षी दलों का नया गठबंधन, जो राष्ट्रीय स्तर पर बना है, उसमें कांग्रेस की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। हालांकि कांग्रेस बाकी विपक्षी दलों के साथ गठबंधन करती तब उसे 2024 का पूर्वाभ्यास कहा जा सकता था। लेकिन उक्त तीनों राज्यों में गैर भाजपा पार्टियां एकजुट नहीं हो सकीं जिसके लिए सपा, आम आदमी पार्टी और जनता दल यूनाईटेड ने कांग्रेस की आलोचना भी की। बसपा तो वैसे भी विपक्ष के गठबंधन से अलग ही है। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा विरोधी विपक्षी पार्टियों की मोर्चेबंदी पर आशंका के बादल मंडराने लगे हैं लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। भाजपा ने प्रधानमंत्री के नाम पर उक्त तीनों राज्यों में चुनाव लड़कर बड़ा जोखिम उठाया है । यदि परिणाम प्रतिकूल आए तब कांग्रेस को ये कहने का अवसर मिल जायेगा कि मोदी की गारंटी पर मतदाताओं का भरोसा नहीं रहा। वैसे ये कहने वाले भी कम नहीं हैं कि वे प्रदेश में किसी को भी मत दें किंतु लोकसभा चुनाव में उनका समर्थन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही मिलेगा।

– राजेश माहेश्वरी

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