डेटा सुरक्षा कानून पर सुझावों के साथ जस्टिस श्रीकृष्ण समिति ने अपनी रिपोर्ट केन्द्र को सौंप दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा होनी चाहिए और इस मामले में सरकार की जिम्मेदारी क्या हो, यह भी तय होना चाहिए लेकिन डेटा की सुरक्षा कारोबार और उद्योग जगत की कीमत पर नहीं हो सकती। आधार से जुड़े डेटा की सुरक्षा पर लगातार चिन्ताएं जताई जाती रही हैं। कई वेबसाइटों पर आधार से सम्बन्धित संवेदनशील सूचनाओं के लीक होने की खबरें भी आईं। समिति ने लोगों के डेटा की प्राइवेसी, डेटा के नियमन, विदेशी कम्पनियों के कारोबार पर नियमन, सख्त पैनल्टी और दण्ड की व्यवस्था और डेटा की अलग-अलग किस्मों के वर्गीकरण को ध्यान में रखते हुए पूरी प्रक्रिया निर्धािरत की है। जस्टिस श्रीकृष्ण समिति ने प्राइवेसी को मौलिक अधिकार मानते हुए डेटा प्रोटेक्शन बिल के ड्राफ्ट में बायोमीट्रिक्स, सैक्सुअल ओरिएंटेशन और धार्मिक या राजनीतिक भरोसे जैसे संवेदनशील पर्सनल डेटा की सुरक्षा को अनिवार्य बनाने का सुझाव दिया है।
समिति ने यूजर्स की जानकारी के बिना डेटा में बदलाव किए जाने को लेकर चिन्ता जताई और इसे रोकने के सुझाव भी दिए। समिति ने यह भी कहा है कि यूजर्स को गूगल या फेसबुक जैसे प्लेटफार्म पर इस्तेमाल किए गए अपने डेटा को कभी भी हासिल करने का अधिकार होना चाहिए। अब इन सुझावों के आधार पर कानून बनाने के लिए आगे बढ़ा जाएगा। लोगों के निजी डेटा को इस्तेमाल करने, बेचने, मार्केटिंग, थर्ड पार्टी से शेयर करने, इंटेलीजेंसी एजैंसियों को शेयर करने का कोई कानूनी अधिकार इन कम्पनियों को नहीं है फिर भी यह कम्पनियां डेटा का इस्तेमाल कर रही हैं। इन्हें कोई रोकने वाला नहीं है। इसी बीच सरकार ने गूगल और फेसबुक पर डेटा लीक करने के मामले में अंकुश लगाने की कार्रवाई शुरू कर दी है। समिति ने एक महत्वपूर्ण सुझाव भी दिया है कि डेटा भारतीय सर्वर्स में ही रखा जाना चाहिए। कम्पनियों के पास भारत में बिजनेस करने के लिए दो ही विकल्प होंगे। पहला, उन्हें सर्वर देश में ही रखना होगा। ऐसा करने से देश में रोजगार बढ़ेगा और दूसरा यह कम्पनियां भारतीय कानून और टैक्स के दायरे में आएंगी जिससे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा होगा। जिस तरह से कैम्ब्रिज एनालिटिका जैसे मामले और भारतीय लोकतंत्र में हस्तक्षेप की कोशिश की गई उन्हें देखते हुए समिति के सुझाव काफी महत्वपूर्ण हैं।
डेटा का स्वामित्व किसका है, यह बहुत ही जिटल और तकनीकी विषय है। आर्थिक जगत से जुड़े लोग श्रीकृष्ण समिति की सिफारिशों को लेकर भी कुछ सवाल खड़े कर रहे हैं। हालांकि ट्राई ने व्याख्या की थी कि डेटा पर यूजर्स का ही अधिकार है। समिति की सिफारिशों में सरकारी सेवाओं को यूजर्स की इजाजत लेने की छूट दी गई है, उसमें आधार भी शामिल है। विशेषज्ञों का कहना है कि आधार हर जगह होने से असुरक्षा आैर भी बढ़ जाएगी। ट्राई प्रमुख आर.एस. शर्मा ने अपना आधार नम्बर सार्वजनिक करते हुए किसी को भी इसका दुरुपयोग करने और उन्हें नुक्सान पहुंचाने की चुनौती दी थी लेकिन उन्हें तुरन्त ही जवाब मिल गया। उनके अाधार नम्बर के जरिये हैकर्स ने उनकी सारी निजी जानकारियां निकालकर उनसे साझा कर दीं। इलियट एल्डरमन उपनाम वाले फ्रांस के एक सुरक्षा विशेषज्ञ ने लिखा है कि आधार संख्या असुरक्षित है। आधार संख्या सार्वजनिक करना एक अच्छा विचार नहीं है। इसके बाद सोशल मीडिया पर आर.एस. शर्मा को जमकर ट्रोल किया गया। अब ट्राई अधिकारी बचाव पर उतर आए हैं और उनका कहना है कि जो जानकारियां हैकर ने दी हैं वह तो पहले से ही सार्वजनिक हैं। इलियट ने तो दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भी निजी डेटा लीक किया जा सकता है। उन्होंने तो प्रधानमंत्री को अपना आधार नम्बर सार्वजनिक करने को कहा है। इस समूचे प्रकरण के बाद लोगों में आधार की सुरक्षा को लेकर संदेह गहरा गए हैं।
पिछले दो वर्षों से आधार कार्ड के जरिये लोगों की निजी जानकारी चोरी होने की कई रिपोर्टें मीडिया में आई थीं। लोगों ने डेटा सुरक्षा और निजता के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने आधार की संवैधानिकता को लेकर लम्बी बहस के बाद अपना फैसला सुरक्षित किया हुआ है। ऐसी स्थिति में सबसे बड़ा सवाल फिर उठ खड़ा हुआ है कि सरकार क्या लोगों का भरोसा जीत पाएगी? सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे में कहा है कि परमाणु बम हमले में भी डेटा सुुरक्षित रह सकता है लेकिन यूआईडीएआई के लाख दावों के बावजूद लोगों को भरोसा नहीं हो रहा। देखना होगा सरकार समिति की सिफारिशों के आधार पर कानून का मसौदा कैसे तैयार करती है। मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया काफी लम्बी है। डेटा सुरक्षा के लिए पुख्ता व्यवस्था के लिए इंतजार करना होगा।