बेग के राष्ट्रविरोधी ‘बोल’ - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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बेग के राष्ट्रविरोधी ‘बोल’

जम्मू-कश्मीर का कोई नेता यदि यह कहने की जुर्रत करता है कि देश में गाय के नाम पर विशेष समुदाय के लोगों को निशाना बनाने से भारत

जम्मू-कश्मीर का कोई नेता यदि यह कहने की जुर्रत करता है कि देश में गाय के नाम पर विशेष समुदाय के लोगों को निशाना बनाने से भारत पुनः विभाजन के कगार पर खड़ा हो सकता है तो वह जम्मू-कश्मीर के लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता क्योंकि इस राज्य में गोहत्या पर प्रतिबन्ध पिछले डेढ़ सौ साल से लागू है और इस राज्य की मुस्लिम जनता गोमांस भक्षण के ही विरोध में नहीं रही है बल्कि मजहब के नाम पर पाकिस्तान निर्माण के खिलाफ भी रही है। यह एेसा एेतिहासिक सत्य है जिसे कोई नहीं झुठला सकता मगर हार्वर्ड विश्वविद्यालय से कानून में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल किये और 2006 तक तीन वर्ष तक इस राज्य के उपमुख्यमन्त्री रहे मुजफ्फर बेग यदि श्रीनगर में बैठकर अपनी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के स्थापना दिवस पर यह तकरीर करते हैं कि भारत विभाजन का दूसरा खतरा खड़ा हो सकता है तो वह इस देश के सभी मुसलमान नागरिकों की भारी तौहीन करते हैं और उन्हें अपने ही देश में पराया बनाना चाहते हैं।

इस मुल्क का हर मुस्लिम नागरिक उतना ही बड़ा देशभक्त है जितना कि कोई हिन्दू या सिख मगर साढ़े तीन साल से भी ज्यादा वक्त तक उनकी पार्टी भाजपा के साथ मिलकर सूबे में सरकार चलाती रही और हुकूमत के फायदे जमकर उठाती रही और अपनी आंखों के सामने ही कश्मीरियों को हाहाकार करते देखती रही और हर तरफ बदअमनी का मंजर निहारती रही तो जनाब की जुबान पर ताला पड़ा रहा जबकि देश में उस समय भी गाय के नाम पर कुछ लोग अफरातफरी मचाने की कोशिशाें में लगे हुए थे, जाहिर है कि मुजफ्फर बेग कश्मीर में हुकूमत से बेदखल होते ही बौखलाने लगे हैं और उन्हें लगने लगा है कि उनकी सियासी पार्टी का दौर खत्म हो रहा है क्योंकि बकौल महबूबा मुफ्ती उन्होंने भाजपा के साथ सरकार बनाकर जो ‘जहर’ का प्याला पिया था उसने उनकी सियासी फसल को तबाह कर डाला है और अब उनके पास एक ही रास्ता बचा है कि वह मजहब के पर्दे में छुपकर अपनी सियासी जमीन को फिर से हरा-भरा बनाने की कोशिशों में जुट जायें। जरा कोई पूछे मुजफ्फर बेग से कि पीडीपी-भाजपा सरकार के गद्दी पर रहते किस तरह पाकिस्तान की सरहदों से लगे सैकड़ों गांवों के हजारों लोगों की जिन्दगी जहन्नुम में बदल दी गई थी और कश्मीर में किस तरह राज्य पुलिस के मुस्लिम अफसरों को ही दहशतगर्दों ने निशाना बनाते हुए आम आदमी की जिन्दगी को खौफजदा बना दिया था? मगर तब तो उन्हें महसूस नहीं हुआ कि नाइंसाफी हो रही है। कश्मीर का सरमाया लूटने में हमेशा होड़ लगी रही है और सभी पार्टियों के नेता मुस्कराते हुए मजे लेते रहे।

आखिरकार कश्मीर को हमने किस दल-दल में डालने का इरादा कर लिया है कि यहां की सियासत में वह पाकिस्तान घुस गया है जिसे 1947 में यहीं की अवाम ने नाजायज मुल्क माना था और कहा था कि भारत के टुकड़े करना किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं होगा। बजाये इसके कि हम लोगों को आपस में जोड़ने की कोशिशें करें हम उन्हें अदावत के नुस्खे पकड़ा रहे हैं। सियासत का इस हद तक गिर जाना जम्मू-कश्मीर की रवायत नहीं रही है। यह सूबा हिन्दुस्तानियत की एेसी जीती-जागती बेनजीर मिसाल रहा है जिसमें हिन्दू-मुसलमान होना कश्मीरियत की तासीर से कभी भी ऊपर नहीं रहा है और इसकी बिना पर कश्मीरियों ने कभी भी किसी खास रियायत की तवक्को भी नहीं की है। उनकी तवक्को केवल अपनी जमीन की खूबसूरती और इंसानी समाजी रवायतों को महफूज करने की रही है। महाराजा की हुक्मरानी के दौर से ही यहां बाहर के लोगों के लिए जमीन-जायदाद बनाने पर रोक रही है और गोहत्या पर प्रतिबन्ध रहा है।

बेशक देश के विभिन्न राज्यों में गोमांस या गोहत्या को लेकर जो वहशियाना हरकतें होती हैं उन पर कसकर लगाम इस तरह लगनी चाहिए कि गाय की रक्षा में खुद को खुदाई खिदमतगार बताने वाले लोगों को कहीं पनाह न मिले मगर अफसोस जो काम ये खुदाई खिदमतगार अपनी हरकतों से करना चाहते हैं उसे ही मुजफ्फर बेग और हवा दे रहे हैं और साबित कर रहे हैं कि उनकी सियासत भी मुसलमानों को अलग-थलग करने की है। यह सबसे बड़ा राष्ट्रविरोधी कार्य है क्योंकि किन्हीं दो समुदायों को आपस में लड़ाना राष्ट्रीय एकता को खंडित करने के खाने में ही रखकर देखा जायेगा। बेग साहब तो खुद बहुत बड़े वकील हैं और जम्मू-कश्मीर के एडवोकेट जनरल भी रहे हैं। उनसे बेहतर इस बारे में कोई और कैसे जान सकता है। उन्हें मालूम होगा कि आतंकवादियों के खिलाफ टाडा कानून में सामुदायिक विद्वेष फैलाने की हरकतों को भी रखा गया था जिसे बाद में पोटा कानून से निकाल दिया गया था। कांग्रेस व भाजपा आतंक विरोधी कानूनों में यही सबसे बड़ा अन्तर था।

सामाजिक घृणा फैला कर किन्हीं दो समुदायों को आपस में लड़ाने की वारदातों में जिस तरह बढ़ोत्तरी हो रही है उस बारे मंे बेग साहब अगर कुछ अपनी कानूनी राय देते तो पूरा मुल्क उनका शुक्रगुजार होता मगर वह तो जिन्ना की जबान बोलने लगे, जिस मुल्क की तहजीब और संस्कृति को मुगल बादशाहों तक ने बड़े एहतियात के साथ महफूज रखा हो उसमें अगर सिर्फ सियासत को चमकाने के लिए मुल्क को तोड़ने की बात कही जाती है तो खुद कश्मीरी जनता को सोचना होगा कि उनकी पीठ में छुरा कौन घोंप रहा है? बेहिचक यह माना जा सकता है कि कश्मीर की समस्या राजनैतिक समस्या है जिसका हल फौज से नहीं निकाला जा सकता मगर इसकी शुरूआत भी तो यहां के सियासी कारकुनों की बदगुमानियों की वजह से हुई वरना क्या वजह थी कि 1974 में इन्दिरा-शेख समझौता होने के बाद जो समस्या कश्मीरी जनता के नुक्ता-ए-नजर से हमेशा के लिए निपटा दी गई थी उसे 1990 के आते-आते इस तरह बदहाल कर दिया गया कि दहशतगर्द देश के गृहमन्त्री (स्व. मुफ्ती मोहम्मद सईद) की बेटी को ही अगवा करके ले गये। जाहिर है कि कश्मीर को सुलगाये रखने में किस तरह की ताकतें लगी हुई हैं।

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