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भूकंप की त्रासदी

जब भी प्रकृति अपना क्रोध दिखाती है तो कहर ढहाए बिना नहीं रहती।

जब भी प्रकृति अपना क्रोध दिखाती है तो कहर ढहाए बिना नहीं रहती। चांद और कई अन्य ग्रहों को छू लेने वाला विज्ञान भी प्राकृतिक आपदाओं के सामने विवश है। पिछले कुछ वर्षों में कुदरत के अक्रोश के जो खतरनाक मंजर देखने को मिले हैं उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि प्रकृति मानव के व्यवहार को लेकर काफी नाराज है और वह भूकंप, सुनामी, बाढ़, तूफान आदि के रूप में मानव को अपनी चपेट में ले रही है। उसके सामने हर कोई असहाय दिखाई दे रहा है। तुर्किये, सीरिया, लेबनान और इजरायल चार देशों में आए भूकंप ने पलभर में हजारों लोगों को मौत के आगोश में पहुंचा दिया। पलभर में गगनचुंबी अटालिकाएं, शॉपिंग मॉल, बाजार, घर तबाह हो गए। भोर होने से पहले सो रहे लोगों को पता ही नहीं चला कि आपदा उन पर कहर बरपा चुकी है। अब रह गई उन लोगों की चीत्कार जो या तो घायल हैं या ​फिर सौभाग्य से भूकंप की चपेट में आने से बच गए। शहर तबाह हो गए। चारों तरफ लाशों का अंबार लगा है।
खौफनाक मंजर को देखकर ऐसा लगता है कि मनुष्य में प्राकृतिक आपदाओं से संघर्ष करने का सामर्थ्य नहीं बचा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो आशंका व्यक्त की है कि मृतकों की संख्या 32000 से भी ज्यादा हो सकती है। वर्ष 1939 में तुर्किये में भूकंप आया था लगभग 33 हजार लोग मारे गए थे। वर्ष 1999 में भी तुर्किये में आए भूकंप में 17 हजार  से ज्यादा लोग मारे गए थे। भूकंप प्रभावित देशों के लोग भूकंप की त्रासदियों को याद कर आंसू बहा रहे हैं। सीरिया के कई शहरों में ऐसे ही दृश्य देखने को मिल रहे हैं। भूकंप की तीव्रता को नापने के लिए विज्ञान ने भले ही यंत्र बना लिए हों। इंसान ने भीषण गर्मी और सर्दी से बचने के लिए भले ही विज्ञान के माध्यम से उपकरण बना लिए हों, लेकिन मानव आज तक प्रकृति के रहस्यों को जान ही नहीं पाया। धरती हिलने या भूकंप के बारे में किंवदंतियां सुनने को मिलती हैं।
धार्मिक व्याख्याओं के चलते कभी यह माना जाता है कि धरती सात मुंह वाले नाग के सिर पर टिकी है। जब नाग सिर बदलता है तो धरती हिलती है। कभी यह कहा जाता है कि धरती धर्म की प्रतीक गाय के सींग पर टिकी है, जब गाय सींग बदलती है तो धरती हिलती है। धर्माचार्यों का मानना है कि धरती पर पाप बहुत बढ़ जाता है तो धरती कहर ढाती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी की गहराई में बहुत आग है। तथ्य कोई भी हो ऐसे  दैवीय प्रकोप से बचने का कोई साधन नहीं है। भूकंप कहां और कब आएगा वैज्ञानिक इस का आज तक सटीक उत्तर नहीं दे पाये। आज भी भूकंप त्रासदी को देखकर लोग कह रहे हैं कि जनसंख्या के संतुलन को बनाए रखने के लिए प्राकृति अपना रौद्र रूप दिखा रही है। संकट की घड़ी में पूरी दुनिया का दायित्व है कि वह मानव की रक्षा के लिए मदद के लिए आगे आये। पूरी दुनिया के अमीर देश संकट की घड़ी में भूकंप प्रभावित तुर्किये और सीरिया के साथ खड़े हैं।
भारत ने तुरंत तुर्किये को मदद की पेशकश करते हुए हर संभव मदद का ऐलान किया है। भारत ने तुर्किये को भूकंप राहत सामग्री की पहली खेप भेज दी है जिसमें मेडिकल उपकरण, दवाइयां और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल की टीमें शामिल हैं। भारत  हमेशा दुनिया के हर मंच पर वसुधैव कुटुम्बकम की बात करता है। भले ही तुर्किये अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का मुद्दा हो या फिर कोई और मुद्दा हमेशा भारत के खिलाफ बोलता आया है। वह अपने मित्र पा​किस्तान के समर्थन में खड़ा दिखाई देता है लेकिन भारत ने मदद कर अपनी नीति साफ कर दी है। अमेरिका, रूस, जर्मनी आदि देशों ने भी तुर्किये में मदद भेजने की बात कही है। यूरोपीय यूनियन, नीदरलैंड और रोमानिया की टीमें मदद के लिए तुर्किये और सीरिया पहुंच चुकी हैं। तुर्किये को आपदा की इस मुश्किल घड़ी में अपने पुराने दुश्मन देशों का साथ भी मिल रहा है। तुर्किये और ग्रीस के बीच सीमा को लेकर सालों से विवाद चलता आ रहा है। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक विवाद भी चलता आ रहा है। इसके बावजूद ग्रीस ने तुर्किये की मदद की पेशकश की है।
भारत तो इससे पहले भी कई मौकों पर प्राकृतिक आपदा प्रभावित देशों की मदद करता आया है। नेपाल का भूकंप हो या हैती का भूकंप भारत ने दोनों देशों की हर तरह से मदद की है। तुर्किये के राष्ट्रपति ने मदद के लिए भारत का आभार भी जताया है। मानवता के नाते ऐसी आपदाओं में दुनिया एकजुट होकर आपदा प्रभावित लोगों का धैर्य बंधाती है। इस तरह का धैर्य पाकर टूटा हुआ साहस पुनर्जीवित हो उठता है। दुख की घड़ी में ढांढस बंधाना मानवीय चरित्र भी है। आज लोग महसूस कर रहे हैं कि सीरिया में कितना पाप हुआ है या तुर्किये का रवैया क्या है? ऐसी प्राकृतिक आपदाएं संदेश देती हैं कि जब तक जीयो प्रेम से जीयो, मानवता की सीमा में रहो, निर्दोषों के खून बहाने से कुछ हासिल नहीं होगा। प्रकृति कह रही है कि मैं कब कहर बरपा दूं कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रकृति का दोहन मत करो। प्रकृति के साथ जीना सीख कर धरती का पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखो।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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