कुछ दिन पहले भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा चीन के सबसे बड़े बैंक ऑफ चाइना को लाइसेंस जारी कर भारत में व्यवसाय करने की अनुमति दिए जाने की खबर पर चर्चा शुरू हुई थी। बैंक ऑफ चाइना काे यह लाइसेंस हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चीन के प्रधानमंत्री शी जिनपिंग के साथ बैठक में हुए फैसले के अनुसार दिया गया। इससे पहले इंडस्ट्रियल एवं कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना लिमिटेड काे भारत में बैंकिंग का लाइसेंस मिला हुआ है। इसके बाद खबर आई कि गृह मंत्रालय ने दिल्ली में बैंक ऑफ चाइना की शाखा खोलने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। स्थिति अभी भी अस्पष्ट है। गृह मंत्रालय का कहना है कि बैंक ऑफ चाइना की मुम्बई शाखा भारत के नियमों की खुलेआम अवहेलना कर रही है। बैंक में सिर्फ 3-4 लोगों को ही काम पर रखने की अनुमति है लेकिन उसमें चीन के 11-12 नागरिक काम कर रहे हैं। विदेशी नागरिक जो भारत में काम करने आते हैं उन्हें हर 6 महीने में यहां रहने के लिए पंजीकरण कार्यालय में पंजीकरण कराना पड़ता है। बैंक ने सिर्फ 4 कर्मचारियों का ही रजिस्ट्रेशन करा रखा है। बैंक ऑफ चाइना दुनिया का सबसे बड़ा बैंक है। 42 देशों में आईसीबीसी की शाखाएं हैं।
यद्यपि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन से रिश्तों को बेहतर करने में लगे हुए हैं लेकिन चीन की चालबाजियों के कारण भारतीयों में उसके प्रति धारणा काफी नकारात्मक है। अगर धोखा देने और बेईमानी करने की बात हो तो चीन उसमें सबसे आगे नजर आता है इसीलिए बैंक ऑफ चाइना भारतीयों के लिए चिन्ता का विषय बना हुआ है। यह सही है कि डोकलाम विवाद के बाद चीन से टकराव का कोई नया मामला सामने नहीं आया है बल्कि दोनों देशों के रिश्तों में सकारात्मक बदलाव भी नजर आता है लेकिन चीन द्वारा 15 बार घुसपैठ की खबरें चिन्ता पैदा करने वाली जरूर हैं। चीन भारत के प्रति हमेशा आक्रामक रवैया रखता है। उसके पास जो भी संसाधन हैं उन्हें वह आक्रामक तरीके से इस्तेमाल करता है।
भारत ने चीन की विस्तारवादी नीति को आगे बढ़ाने वाली महत्वाकांक्षी बीआरआई (बेल्ट रोड इनीशिएटिव) पिरयोजना का कड़ा विरोध पहले ही किया हुआ है। भारत का मानना है कि वह चीन की विस्तारवादी नीति ही है जो पाकिस्तान के कब्जे में भारत की भूमि पर वह अपनी बेल्ट रोड बना रहा है। भारत ने न केवल इस परियोजना से अपने आपको अलग रखा है, बल्कि कई मंचों पर इसका विरोध भी किया है। इधर भारत में चीनी कम्पनियां अपना वर्चस्व बनाने में लगी हुई हैं। कई इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में भी चीनी भागीदारी भारी मात्रा में है। उधर चीन से आ रहे सामान के कारण हमारे देश के उद्योग-धंधे नष्ट हो रहे हैं आैर बेरोजगारी बढ़ रही है। कुल मिलाकर चीन द्वारा सस्ते माल को डम्प करने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुक्सान हो रहा है। दूसरी ओर चीन से भारत को भयंकर सामरिक खतरा भी है। भारत के पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, बर्मा और श्रीलंका समेत कई देशों में वह अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है।
अमेरिका ने भी चीनी कम्पनियों और बैंकों को पहले खुलकर काम करने दिया। देखते ही देखते अमेरिका में चीन का व्यापार छा गया। अमेरिका के बाजार चीन के उत्पादों से पाट दिए गए। चीन के कारोबारियों ने धन अमेरिका से कमाया लेकिन निवेश अपने देश में ही किया। अमेरिका और चीन में व्यापार असंतुलन बढ़ गया। अमेरिका की अर्थव्यवस्था डावांडोल होने लगी। यही कारण रहा कि अमेेरिका अब लगातार चीनी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा रहा है। उधर चीन भी अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ा रहा है। ट्रेड वार शुरू हो चुकी है। इसका अन्त कब होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को ही 6000 चीनी उत्पादों पर शुल्क लगाया है। आज दुनियाभर के देश बैंकों के माध्यम से जुड़े हुए हैं। इसी तरह भारत और चीन भी जुड़े हुए हैं। अभी तक तो चीन के बैंकों की उपस्थिति नाममात्र की थी लेकिन बैंक ऑफ चाइना की शाखाएं खोलने के फैसले से बैंकिंग सैक्टर भी चिन्तित हो उठा है।
बैंकिंग क्षेत्र को आशंका है कि चीन की रणनीति का मुकाबला करने में सरकारी बैंक काफी पीछे हैं। अगर बैंक ऑफ चाइना ने कोई बड़ा खेल कर दिया तो उन्हें नुक्सान उठाना पड़ सकता है। यह बैंक चीन सरकार के स्वामित्व में है। यदि चीन सरकार चाहे तो इस बैंक के माध्यम से रुपए की विनिमय दर में भी उथल-पुथल मचा सकती है। अतः सरकार काे बड़ी सतर्कता से काम लेना होगा। यह सुनिश्चित करना होगा कि बैंक भारतीय नियमों का पूरा पालन करे। हो सके तो बैंक ऑफ चाइना को अनुमति देने पर पुनर्विचार करे। बैंक की गतिविधियों पर नियंत्रण समेत सभी विकल्पों पर विचार करे। कहीं ऐसा न हो कि हम कहीं अपने ही घर में धोखा खा बैठें। भारत आैर चीन में काफी व्यापार असंतुलन है। भारत का व्यापार घाटा पहले ही काफी ज्यादा है। बैंक ऑफ चाइना हमें कोई नुक्सान न पहुंचा सके, इसकी व्यवस्था तो भारत को पहले ही करनी होगी।