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ओटीटी प्लेटफार्मों पर रहेगी सरकार की नजर

ओटीटी प्लेटफार्मों पर जिस तरह का कंटेंट परोसा जा रहा है उस पर समाज के कई वर्ग कड़ी आपत्ति जता रहे हैं। इन वर्गों की राय है कि ऑनलाइन दिखाए जाने से पहले उनकी सामग्री की अश्लीलता और हिंसा के लिए स्वतंत्र रूप से समीक्षा की जानी चाहिए। जबकि भारतीय सिनेमाघरों में सभी फिल्में सरकार द्वारा नियुक्त बोर्ड द्वारा समीक्षा और प्रमाणन से गुजरती हैं, लेकिन ओटीटी प्लेटफार्मों पर स्ट्रीम की गई सामग्री इस प्रक्रिया से मुक्त रहती है।
ओटीटी प्लेटफार्मों पर दिखाये जा रहे सीरियलों में सैक्स और वायलेंस की भरमार है। अश्लीलता अपनी सारी सीमाएं पार कर रही है। अब सरकार एक नया कानून ला रही है जिसके चलते ओटीटी प्लेटफार्मों पर भी सरकार की नजर रहेगी। केंद्र सरकार ने नेटफ्लिक्स, डिज़नी और अमेज़ॅन जैसे स्ट्रीमिंग प्लेटफार्मों को विनियमित करने के उद्देश्य से एक नए प्रसारण कानून का प्रस्ताव रखा है। मसौदा व्यक्तिगत सामग्री मूल्यांकन समितियों की स्थापना की वकालत करता है। विधेयक इन स्ट्रीमिंग दिग्गजों को सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 पर भरोसा किए बिना पूरी तरह से सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दायरे में लाने का प्रयास करता है।
एमआईबी ने सार्वजनिक परामर्श के लिए प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक, 2023 पेश किया। इसका उद्देश्य मौजूदा केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 को प्रतिस्थापित करना और सभी मौजूदा कानूनों और नीतियों को एक सामंजस्यपूर्ण ढांचे के भीतर सुव्यवस्थित करना है।
मसौदा कानून दस्तावेज़ के अनुसार, “प्रत्येक प्रसारक या प्रसारण नेटवर्क ऑपरेटर को विभिन्न सामाजिक समूहों के सदस्यों के साथ एक सामग्री मूल्यांकन समिति (सीईसी) स्थापित करनी होगी,” जो 30 दिनों के लिए सार्वजनिक परामर्श के लिए खुला है।
यह कानून केंद्र सरकार को किसी भी ऑनलाइन क्रिएटर या समाचार मीडिया प्लेटफॉर्म को विनियमित करने की शक्ति भी प्रदान करेगा। यह विधेयक सरकार को “प्रसारण सेवाओं के अलावा जो प्रसारण नेटवर्क या प्रसारण सेवाओं से जटिल रूप से जुड़े हुए हैं” सेवाओं को विनियमित करने का अधिकार देता है। प्रस्तावित कानून केंद्र सरकार को सीईसी के आकार, कोरम और परिचालन संबंधी विशिष्टताओं को निर्धारित करने का अधिकार देता है। मसौदा कानून के अनुसार, केवल इस समिति से प्रमाणन प्राप्त करने वाले शो ही प्रसारण के लिए पात्र होंगे।
समाज का एक वर्ग कहता है कि भारत में अब 20 करोड़ के लगभग ओटीटी प्लेटफार्म उपयोगकर्ता हैं और जैसे-जैसे भारत में मोबाइल और इंटरनेट के उपयोगकर्ताओं की संख्या में बढ़ौतरी हो रही है वैसे ही ओटीटी प्लेटफार्मों के उपयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। इतनी बड़ी संख्या में उपयोगकर्ताओं को कंटेंट प्रदान किया जा रहा है उसे भी विनियमित किया जाना जरूरी है। देश की हाईकोर्टों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कंटेंट को लेकर कई मामले दर्ज किए गए हैं। सरकार द्वारा आपत्तिजनक कंटेंट को नियंत्रित करने के लिए कानून लाया जाना एक सही कदम है या नहीं इस संबंध में समाज के एक वर्ग की राय पूरी तरह विपरीत है। भारतीय एंटरटेनमैंट इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने सरकार द्वारा कानून लाने के कदम की आलोचना की है और उसे पूरी तरह से गलत बताया है। उनका कहना है कि फिल्मों और कहानियों को सैंसर करना अथवा उन्हें नियंत्रित करना एक तरह से विचारों को नियंत्रित करने जैसा है, जो कि लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है। डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करने से भारतीय नागरिकों की रचनात्मक स्वतंत्रता प्रभावित होगी तथा इस उद्योग का​ विकास रुक जाएगा।
फिल्म इंडस्ट्रीज से जुड़े लोगों का यह भी कहना है कि “उदारीकरण के ऐतिहासिक अवसर को बर्बाद किया जा रहा है और सेंसरशिप और सरकारी नियंत्रण का एक पितृसत्तात्मक तंत्र प्रस्तावित किया गया है।” इससे पहले जुलाई में मंत्रालय ने निजी तौर पर नेटफ्लिक्स और अन्य स्ट्रीमिंग सेवाओं से कहा था कि ऑनलाइन दिखाए जाने से पहले उनकी सामग्री की अश्लीलता और हिंसा के लिए स्वतंत्र रूप से समीक्षा की जानी चाहिए। कई विशेषज्ञ संतुलित मार्ग अपनाने का सुझाव देते हैं। इससे पहले सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के लिए नई गाइड लाइन जारी की थी और नए कोड ऑफ एफिक्स पेश किए थे। गाइड लाइन में यह भी कहा गया था कि अगर ​किसी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कोई आपत्तिजनक कंटेंट डाला जाता है तो उसे सरकारी आदेश के बाद 24 घंटे की समय सीमा के भीतर हटाना होगा। ओटीटी प्लेटफार्मों पर सरकार की नजर रहना अच्छा है या बुरा है इस पर राय अभी बंटी हुई है।

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