यूक्रेन की सीमाओं के पास हजारों रूसी सैैनिकों के जमावड़े के बीच यूक्रेन संकट पर चर्चा के लिए 15 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में हुए मतदान में भारत ने भाग न लेकर एक बार फिर दिखा दिया कि अपने हितों को देखते हुए वह अमेरिका के दबाव में नहीं आने वाला। मतदान में भाग न लेकर भारत ने स्वयं को यूक्रेन मुद्दे पर तटस्थ रहने का संकेत तो दिया ही बल्कि मित्र देश रूस का परोक्ष रूप से समर्थन भी कर दिया। भारत ने मतदान में हिस्सा न लेते हुए कहा कि यूक्रेन के मुद्दे पर इस समय शांत और रचनात्मक कूटनीति की जरूरत है और इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के बड़े हित में सभी पक्षों द्वारा तनाव बढ़ाने वाले किसी भी कदम से बचना चाहिए। मतदान में रूस और चीन ने यूक्रेन पर चर्चा के खिलाफ मतदान किया जबकि भारत, केन्या और गैबॉन अनुपस्थित रहे। फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन सहित परिषद के अन्य सभी सदस्यों ने पक्ष में मतदान किया।
अब महत्वपूर्ण सवाल यह है कि भारत ने मतदान में हिस्सा क्यों नहीं लिया। भारत के सामने सबसे बड़ा सवाल संतुलित मार्ग अपनाने का था। यदि भारत अमेरिकी दबाव में प्रस्ताव का समर्थन करता तो इससे रूस के साथ संबंधों पर गम्भीर प्रभाव पड़ सकता था। यदि भारत रूस के पक्ष में मतदान करता तो इससे अमेरिका और पश्चिमी देशाें की नाराजगी झेलनी पड़ सकती थी। ऐसे में भारत ने मतदान से परहेज करना ही बेहतर समझा। रूस के उप विदेश मंत्री सर्गेई वर्शिनिन दिल्ली आए थे तो उन्होंने भारतीय विदेश मंत्रालय को यूक्रेन पर रूस की स्थिति स्पष्ट की थी और संयुक्त राष्ट्र में दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग को लेकर बात की थी। कूटनीतिक क्षेत्रों में इस बात पर हैरानी व्यक्त की जा रही है कि यूक्रेन के मामले में चीन का रूस को समर्थन है लेकिन भारत उस खेमे में कैसे शामिल हो सकता है जिसमें चीन हो। पूर्वी लद्दाख में सीमा पर चल रहे गतिरोध के बीच भारत-चीन संबंध इस समय सबसे बुरे दौर में हैं। यद्यपि पश्चिमी देशों ने भारत के मतदान से बाहर रहने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन उन्होंने आरोप लगाया है कि रूस पूर्वी यूरोप में अस्थिरता फैला रहा है। जबकि संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टी.एस. तिरूमूर्ति का कहना है कि यूक्रेन को लेकर सभी देशों के उचित सुरक्षा हितों को देखना चाहिए।
मार्च 2014 में रूस ने जब क्रीमिया को अपने साथ िमला लिया था तो तब भी रूस के खिलाफ यूक्रेन के प्रस्ताव पर भारत मतदान से बाहर रहा था। तब तत्कालीन भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने यह स्टैंड लिया था कि क्रीमिया में रूस और अन्य देशों का उचित सुरक्षा हित जुड़ा है और इसका समाधान राजनयिक तरीके से होना चाहिए। भारत ने हमेशा रूस के साथ मजबूत संंबंध बनाए रखने की कोशिश की है।
टी.एस. तिरूमूर्ति ने सुरक्षा परिषद को यह भी बताया कि 20 हजार से अधिक भारतीय छात्र और नागरिक यूक्रेन के सीमावर्ती और विभिन्न हिस्सों में रहते हैं। छात्र वहां अध्ययन करते हैं। भारतीय नागरिकों की भलाई हमारे लिए प्राथमिकता है। यह हमारा सुविचारित विचार है कि इस मुद्दे को केवल राजनयिक बातचीत से हल किया जाए। इस मामले में भारत मिन्सक समझौते और नॉरमैंडी प्रारूप सहित चल रहे प्रयासों का स्वागत करता है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया के राजनीतिक समीकरण बदले हैं। शीत युद्ध के बाद दुनिया वैसी नहीं रही जैसी शीत युद्ध के पहले हुआ करती थी। कुछ समय के लिए भारत-रूस संबंध ठंडे बस्ते में भी रहे लेकिन आजादी के बाद से ही भारत-रूस संबंध जरूरत से ज्यादा भावनात्मक रहे लेकिन आम भारतीयों को न राजनीति से कुछ लेना-देना होता है और न कूटनीति से। आम भारतीय से पूछा जाए तो वह रूस को भी भारत का अभिन्न मित्र मानता है। रूस को लेकर भारतीयों की भावनात्मकता ऐसे ही नहीं बनी, इसके पीछे ठोस कारण हैं।
सोवियत संघ ने भारत का हमेशा साथ दिया। जब अमेरिका पाकिस्तान के साथ था तो उसने हमेशा भारत की मदद की। युद्ध हो या शांतिकाल रूस हमारे साथ खड़ा रहा। भारत की औद्योगिक संरचना के निर्माण में उसने मदद की। जब भारत ने कहा कि ‘‘हम सैटेलाइट बनाएंगे तो अमेरिका ने हमारा मजाक उड़ाया था और कहा था धान उगाओ।’’ तब रूस ही था िजसने न सिर्फ भारत को स्पेस टैक्नोलॉजी दी बल्कि भारतीय राकेश शर्मा को अंतरिक्ष यात्रा कराई थी। भारत-रूस के ऐतिहासिक रिश्तों में ठहराव सोवियत संघ के विघटन के बाद आया लेकिन अब दोनों देशों में फिर से रिश्ते मजबूत हैं। रूस ने हमें सामरिक हथियार भी दिए। अब भी उसने अमेरिकी दबाव की परवाह न करते हुए भारत को एस-400 मिसाइल सिस्टम दिया है। अब फैसला अमेिरका को लेना है कि वह भारत पर प्रतिबंध लगाए या नहीं।
भारत ने इशारों ही इशारों में अमेरिका को समझा दिया था कि वो किसी के दबाव में नहीं आने वाला। भारत का स्पष्ट स्टैंड है कि युद्ध की स्थितियां पैदा नहीं होनी चाहिए, युद्ध से सभी को नुक्सान ही होगा। भारत अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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