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भारत का सच्चा मित्र ‘रूस’

स्वतन्त्रता के बाद से ही इस बात में कभी कोई सन्देह नहीं रहा कि रूस (पूर्व सोवियत संघ) भारत का हर सामान्य से लेकर संकटकालीन समय तक पक्का और सच्चा मित्र रहा है।

स्वतन्त्रता के बाद से ही इस बात में कभी कोई सन्देह नहीं रहा कि रूस (पूर्व सोवियत संघ) भारत का हर सामान्य से लेकर संकटकालीन समय तक पक्का और सच्चा मित्र रहा है। रूस की दोस्ती समय की हर कसौटी पर खरी उतरी है जिसका सम्मान हर भारतवासी दिल से करता रहा है। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए रूस के राष्ट्रपति श्री पुतिन ने यूक्रेन से चल रहे युद्ध के दौरान भी वहां फंसे भारतीय विद्यार्थियों को ताबड़तोड़ बमबारी के बीच जिस तरह ‘सेफ पैसेज’ देने का इन्तजाम किया उससे यही पता चलता है कि श्री पुतिन भारत के साथ अपने दोस्ताना सम्बन्धों को किस दर्जे की अहमियत देते हैं।
वहीं दूसरी तरफ यूक्रेन का उदाहरण भी है कि उसने किस तरह युद्ध की विभीषिका से परेशान भारतीय विद्यार्थियों के स्वदेश लौटने के प्रयासों में मुश्किलें खड़ी कीं और उसके सुरक्षा सैनिकों ने रेलवे स्टेशनों पर रोमानिया से लेकर पोलैंड व हंगरी आदि देशों की सीमाओं के पास जाने वाली रेलगाड़ियों में चढ़ने तक में भेदभाव बरता और कई बार उनके साथ क्रूरतम व्यवहार तक किया। यूक्रेन से भारत लौटे भारतीय विद्यार्थियों की जुबानी ये कहानियां हमें बताती हैं कि यूक्रेनी पुलिस व सुरक्षा सैनिकों का व्यवहार उनके साथ किस दर्जे का था परन्तु प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज यूक्रेन के राष्ट्रपति लेजेंस्की से पहले बात की और उन्हें भारतीयों को अपने देश तक आने में मदद करने के लिए धन्यवाद इसी वजह से दिया जिससे एक भी भारतीय विद्यार्थी को यूक्रेन में परेशानी न हो सके। मगर यह भी हकीकत है कि रूस ने इससे पहले ही घोषणा कर दी थी कि वह यूक्रेन के कीव, खारकीव, सुमी व मारियापोल में फंसे भारतीय विद्यार्थियों को सेफ पैसेज देने की गरज से चार घंटे तक युद्ध विराम रखेगा जिससे भारतीय नागरिक आसानी से सीमावर्ती देशों तक जा सकें जहां भारत के कुछ मन्त्री उनकी अगवानी के लिए खड़े हुए हैं और इन देशों के भारतीय दूतावास उन्हें भारत लौटाने के लिए हवाई जहाज लिये तैयार खड़े हैं।
श्री मोदी ने श्री पुतिन से भी टेलीफोन पर लगभग 50 मिनट तक बातचीत करके श्री पुतिन की भारतीयों के लिए दिखाई गई चिन्ता पर धन्यवाद दिया। श्री पुतिन इससे पहले भी कह चुके थे कि यूक्रेन में फंसे नागरिकों के लिए एक ‘ग्रीन कारीडोर’ बनाया जाना चाहिए जिससे जो भी नागरिक युद्ध में घिरे इलाकों को छोड़ कर जाना चाहे, जा सकें। मगर यूक्रेनी राष्ट्रपति लेजेंस्की इसके लिए तैयार नहीं हुए। इसकी एकमात्र वजह यही हो सकती है कि वह श्री पुतिन और रूस की सैनिक कार्रवाई को ज्यादा से ज्यादा बदनाम करके पश्चिमी देशों व अमेरिका की आंखों में चढ़ सकें। यदि एेसा न होता तो स्वयं यूक्रेनी फौजें ही अपने देश के भाग डोन्सटेक व लुहान्सक में भारी बम बारी करके नागरिक व औद्योगिक प्रतिष्ठानों जैसे पैट्रोलियम तेल के कुओं पर बम गिरा रही हैं। हालांकि इन दोनों राज्यों ने 2014 में ही अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी थी मगर यूक्रेन अभी भी इन्हें अपना हिस्सा मानता है और वहां की रूस समर्थक जनता पर जुल्म ढहाता रहता है।
अतः प्रधानमन्त्री मोदी ने जब श्री पुतिन से बात की तो उन्हें चार प्रमुख शहरों में चार घंटे तक युद्ध विराम रखने के लिए धन्यवाद दिया। प्रधानमन्त्री की दूरदर्शिता का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है। इसी की वजह से सुमी में फंसे 800 के लगभग भारतीय विद्यार्थी भारत लौटने में कामयाब हो पाये हैं वरना ये विद्यार्थी इस शहर में कई दिनों से फंसे हुए थे और भारत से मदद की गुहार लगा रहे थे। बेशक रूस व यूक्रेन के बीच तीसरे दौर की बातचीत भी हो रही है मगर इसके समानान्तर लेजेंस्की लगातार अमेरिका व नाटो देशों से सैनिक मदद दिये जाने की मांग कर रहे हैं। लेजेंस्की राजनीति में आने से पहले अपने देश में एक हास्य कलाकार या विदूषक रह चुके हैं परन्तु देश का राष्ट्रपति बनने के बाद भी वह अपनी नाट्य भूमिका के मोहजाल से नहीं छूट पाये हैं जिसकी वजह से उन्होंने पूरे यूक्रेन को युद्ध क्षेत्र में केवल इसलिए बदल दिया है कि वह सैनिक शक्ति से सम्पन्न नाटों देशों के उस समूह में शामिल होना चाहते हैं जिसका गठन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में सोवियत संघ विरोधी पश्चिम यूरोपीय देशों व अमेरिका ने किया था।
मूल प्रश्न यह है कि लेजेंस्की पाकिस्तान की तरह अपने देश को दुनिया के अन्य शक्ति सम्पन्न देशों के लिए किराये का मुल्क (रेंटल स्टेट) क्यों बनाना चाहते हैं? क्या इसका लक्ष्य केवल रूस को डराने और उसके लिए सिरदर्द बने रहने का नहीं है। कोई भी संप्रभु राष्ट्र यह कैसे बर्दाश्त कर सकता है कि उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा पर रात-दिन खतरा मंडराता रहे। अतः जब यूक्रेन ने रूस के सभी वार्ता प्रस्तावों पर खाक डाल दी और नाटों का सदस्य देश बनने की जिद जारी रखी तो रूस को आत्मरक्षार्थ ताकत का प्रदर्शन करना जरूरी लगा। यूक्रेन ने अपनी फौजों में ऐसे नव नात्सी विचारधारा के लोगों को भर्ती कर रखा है जो यूक्रेन के ही रूसी नागरिकों पर जुल्म ढहाने से बाज नहीं आते। आखिरकार यूक्रेन 1991 तक सोवियत संघ का हिस्सा रहा है। मगर पश्चिमी दुनिया को इन मानवीय अत्याचारों की कोई सुध नहीं है और वे जेलेंस्की को ‘बांस’ पर चढ़ाये हुए हैं। श्री पुतिन ने पहले भी कहा था कि यूक्रेन ने तीन हजार भारतीयों को बन्धक बना रखा है और वह उनका इस्तेमाल रूस के खिलाफ ढाल की तरह कर रहा है। यूक्रेन ने यदि ऐसी  हरकत की है तो वह अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार भी दंड का भागी है क्योंकि युद्ध में किसी भी गैर सैनिक नागरिक को ढाल नहीं बनाया जा सकता। हमें गौर करना चाहिए कि क्यों यूक्रेन रूस का यह प्रस्ताव नहीं मान रहा है कि युद्ध क्षेत्र बने यूक्रेन में एक ग्रीन कारीडोर बनाया जाये जिससे सभी नागरिक सुरक्षित निकल सकें।

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