जयशंकर का सख्त संदेश - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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जयशंकर का सख्त संदेश

वर्ष 2023 तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत और अमेरिका संबंधों के लिए काफी बेहतर रहा। वर्ष 2022 में भारत और अमेरिका रणनीतिक रूप से एक-दूसरे के निकट आए, जबकि इस वर्ष दोनों देशों की नजदीकियां बढ़ीं। भारत में आयोजित जी-20 सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में काफी अच्छी बांडिंग दिखाई दी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर अमेरिका दौरे पर हैं। उन्होंने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन और अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिबन से बातचीत की। इस बातचीत के दौरान कई क्षेत्रों में सहयोग और विस्तार पर बातचीत हुई। अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के बीच कनाडा और भारत के मध्य तनाव की बात भी उठी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बिना किसी लाग लपेट के कनाडा मुद्दे पर भारत का पक्ष रखा और उन्होंने कनाडा को आतंकवाद और तस्करी का जहरीला गठजोड़ बताते हुए यह भी कहा कि यह गठजोड़ अमेरिकियों के लिए बहुत अलग दिखता है। यद्यपि जयशंकर और ब्लिंकन की बातचीत के बाद जारी बयान में भारत-कनाडा तनाव का जिक्र नहीं किया गया, लेकिन अमेरिका के​ ​िवदेश मंत्री ब्लिंकन ने इतना जरूर कहा कि अमेरिका चाहता है कि दोनों देश आपस में मिलकर तनाव खत्म करें और भारत कनाडाई जांच में सहयोग करे। कनाडा अमेरिका का पड़ोसी देश है आैर दोनों के संबंध काफी मजबूत हैं। इसके बावजूद विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दो टूूक शब्दों में कनाडा और अमेरिका को आइना दिखा ​दिया।
भारत-अमेरिका के संबंधों में आ रही प्रगाढ़ता के बावजूद भारत को यह देखना है कि उसके हित कैसे सुरक्षित रहते हैं। अमेरिका के बारे में मशहूर है कि वह खुद को शेष दुनिया से सर्वश्रेष्ठ मानता है और उसके लिए अपने हित सर्वोपरि रहते हैं। अमेरिका के दोहरे चरित्र से भारत पूरी तरह से वाकिफ है। कई बार उसने भारतीय कंधे पर बंदूक रखकर चीन और रूस के खिलाफ अपने हित साधना चाहा लेकिन भारत ने सतर्क रहकर रणनीति अपनाई। विदेश मंत्री ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी क्या है? इसके लिए हमें दूसरों से सीखने की जरूरत नहीं। आतंकवाद, उग्रवाद और हिंसा के प्रति कनाडा की उदारता एक समस्या है। हम एक तंत्र हैं। हमें नहीं लगता कि बोलने की आजादी हिंसा भड़काने तक फैली हुई है। हमारे लिए यह आजादी दुरुपयोग है, आजादी की रक्षा नहीं। उन्होंने पश्चिम को लेकर भारत के रुख के बारे में बारीक फर्क भी समझाया। भारत गैर पश्चिमी है। लेकिन पश्चिम विरोधी नहीं। जिस दुविधा में आज हम रह रहे हैं वह मुख्य रूप से पश्चिमी नजरिये से बनी है। इस नजरिये को बदलना होगा।
एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से ही नहीं बल्कि अमेरिका की धरती पर खड़े होकर भारत की दृढ़ता का परिचय दिया। उनका स्पष्ट संदेश था कि वे दिन गए जब कुछ देश दुनिया पर अपना एजैंडा थोपते थे। कनाडा का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि वह आतंकवाद के खिलाफ अपना राजनीतिक फायदा देख रहा है। उन्होंने यह भी साफ किया कि भारत और रूस की दोस्ती बनी रहेगी। अमेरिका और उसके मित्र देश भारत पर लगातार दबाव बनाए रहते हैं कि वह रूस से अपने करीबी संबंधों को खत्म करे। भारत और रूस के संबंध काफी गहरे हैं और यूक्रेन युद्ध की वजह से वह अपने संबंध नहीं तोड़ सकता। हैरानी की बात तो यह भी है कि खुद पश्चिमी देश किसी न किसी तरह रूस से संबंध बनाए रखे हुए हैं। भारत के कड़े रुख के चलते ही कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का नरम रुख सामने आ रहा है। जस्टिन ट्रूडो ने भारत को बड़ी अर्थव्यवस्था बताते हुए भारत से मिलकर काम करने की बात कही है। कनाडा का दोहरा चरित्र सामने आ चुका है। इस्लामी आतंकवाद पर अमेरिका कनाडा-भारत के रुख से सहमत है। तो फिर कनाडा खालिस्ता​नी समर्थकों की कारगुजारियों को आतंकवाद क्यों नहीं मानता। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों सिख अलगाववाद के खतरों के बारे में भारत की चेतावनियों ने पश्चिमी सरकारों को उत्साहित नहीं किया है। इसमें सबसे बड़ा काम है कि इस्लामी आतंकवाद के विपरीत खालिस्तान शायद ही कभी पश्चिम के लिए सीधा खतरा पैदा करता है। इसकी हिंसा मुख्य रूप से भारत को लक्षित करती है। हालांकि, इनके समर्थकों ने पश्चिम में भारतीय राजनयिकों को धमकी भी दी है और 1985 में खालिस्तानी आतंकवादियों ने मॉन्ट्रियल से उड़ान भरने वाले एयर इंडिया जेट को उड़ा दिया था, जिसमें सवार सभी लोग मारे गए थे, इनमें से अधिकांश कनाडाई थे।
दु​निया इस बात से अनजान है कि खालिस्तानी आतंकवादी कितना गम्भीर खतरा पैदा कर सकते हैं, जबकि भारत 1980 ओर 1990 के दशक में खालिस्तानी आतंकवाद को झेल चुका है। बेहतर यही होगा कि कनाडा आतकंवाद को संरक्षण देना बंद करे और भारतीय हितों की ओर ध्यान दे अन्यथा दोनों देशों में तनाव बरकरार रहेगा। जिसका नुक्सान दोनों देशों को
भुगतना होगा। विदेश मंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत के दरवाजे बंद नहीं हैं। निज्जर हत्याकांड पर उसके पास कुछ ठोस है तो वह भारत से बात करे। केवल वोटों की खातिर हवाओं में तीर नहीं उछाले।

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