दिल्ली के जन्तर- मन्तर पर चल रहा अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति के महिला व पुरुष पहलवानों का धरना-प्रदर्शन अब खत्म हो चुका है और भारतीय कुश्ती संघ के विवादास्पद अध्यक्ष श्री बृजभूषण शरण सिंह भी फौरी तौर पर अपनी जिम्मेदारियों से अलग कर दिये गये हैं। इसकी वजह यह है कि कल देर रात खेल मन्त्री अनुराग ठाकुर ने प्रदर्शनकारी पहलवानों के साथ बैठक करके यह फैसला किया है कि श्री सिंह पर लगाये गये यौन उत्पीड़न के आरोपों के अलावा संघ में व्याप्त भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक निगरानी समिति गठित की जायेगी जो अपनी रिपोर्ट चार सप्ताह में देगी। इस दौरान कुश्ती संघ का सामान्य दैनिक कामकाज यह समिति ही देखेगी। परन्तु इसके ही समानान्तर भारतीय ओलम्पिक संघ ने भी यौनाचार के आरोपों की जांच करने के लिए एक सात सदस्यीय समिति का गठन किया जो इस मामले की गहनता से जांच करायेगी। यह समिति जल्दी से जल्दी अपनी रिपोर्ट संघ को देगी। लेकिन एक सवाल इस मामले में महत्वपूर्ण यह है कि यौन उत्पीड़न की शिकायत महिला पहलवानों ने संघ की विशिष्ट समिति के पास सबसे पहले क्यों नहीं की और सीधे ही धरने व प्रदर्शन का रास्ता अपनाना बेहतर समझा? इसके साथ ही भारतीय कुश्ती संघ ने खेल मन्त्रालय को अपना जवाब भेज दिया है जिसमें उल्टा आरोप लगाया गया है कि सारा मामला संघ को बदनाम करने का है जो किसी साजिश के तहत किया गया है।
कुश्ती संघ ने यह भी कहा है कि महिला पहलवानों ने कभी भी यौन उत्पीड़न की शिकायत संघ की सम्बन्धित समिति से नहीं की। जाहिर है कि भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष श्री बृजभूषण शरण सिंह भाजपा के सांसद हैं और इस पद पर पिछले लगभग 11 वर्षों से हैं। वह प्रभावशाली व्यक्ति हैं लेकिन कानून से ऊपर नहीं हैं। परन्तु इसके साथ यह भी जरूरी है कि महिला पहलवानों व अन्य पहलवानों को श्री सिंह से जो भी शिकायत है उसकी जांच भी नियमों व कानून के अनुसार ही हो। केवल प्रदर्शन करने से न तो भारतीय कुश्ती संघ को भंग किया जा सकता है और न ही श्री सिंह को अपराधी घोषित किया जा सकता है। कुश्ती संघ पर आरोप लगने के बाद खेल मन्त्रालय ने नोटिस जारी किया था और उनसे 72 घंटे के भीतर इसका जवाब मांगा था। यह काम उन्होंने पूरा कर दिया है और अपने जवाब में उल्टे नये आरोप भी लगाये हैं।
जहां तक श्री सिंह के इस्तीफे का सवाल है तो उन्हें समिति की रिपोर्ट आने तक अपने कार्यों से निरस्त कर दिया गया है जिससे जांच का काम बिना किसी अवरोध या सन्देह न हो सके। जहां तक यौन उत्पीड़न का मामला है तो यह एक गंभीर आपराधिक कृत्य है और इसकी पुष्टि में महिला पहलवानों को ठोस सबूत भी देने होंगे। कुछ लोग पूरे मामले को उत्तर प्रदेश बनाम हरियाणा करके देखने की गलती भी कर रहे हैं जो कि उचित नहीं है। दोनों ही राज्यों में पहलवानी की बहुत ही मजबूत परंपरा रही है।
उत्तर प्रदेश में तो गोरखपुर से लेकर गौंडा तक के इलाकों में एक से बढ़कर एक पहलवान व अखाड़े रहे हैं। इसी प्रकार हरियाणा व पंजाब में भी पहलवानी की उच्च परंपरा रही है और आंचलिक व क्षेत्रीय स्तर पर भी एक से बढ़कर एेसे पहलवान रहे हैं जिनकी धाक पूरे इलाकों में हुआ करती थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर जिले के ‘मजीद गुलावटी’ पहलवान की पहचान अपने आसपास के कई जिलों तक हुआ करती थी और इसी प्रकार जिला बिजनौर के ‘करण पहलवान’ का लंगर भी जमकर घूमा करता था। भारत बंटवारे से पहले सीमान्त लाहौर व सियालकोट के ‘गूंगा पहलवान’ के बारे में पुरानी पीढ़ी के बुजुर्ग बहुत चाव से उसके दांव-पेचों की कथाएं सुनाते थे। पहलवानी भारत के महाराष्ट्र राज्य से लेकर गोवा तक में भी युवाओं के आकर्षण का केन्द्र रहा करती थी। अतः सवाल किसी विशिष्ट राज्य का नहीं है बल्कि मध्य प्रदेश में भी एेसे बहुत से जिले हैं जहां के पहलवानों ने अच्छा नाम कमाया था।
पहलवानी भारत की मिट्टी का खेल है जिसे विश्व विजयी गामा पहलवान ने नई ऊंचाइयां बख्शी थीं। एक जमाना था जब किसी जिले में गामा का शागिर्द रहने पर ही उस पहलवान को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। पहलवानी विद्या में महिला खिलाड़ियों का आगमन बहुत नया है। अतः इस मामले को बहुत ही सावधानी के साथ देखा जाना चाहिए और पूरे मामले की गहनता से जांच की जानी चाहिए। बेशक भारत में चल रहे इस विवाद का संज्ञान अन्तर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ ने भी लिया है और भारतीय ओलंपिक संघ को इस बाबत एक पत्र भी लिखा है परन्तु हमें ध्यान रखना चाहिए कि भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष भी फिलहाल एक अन्तर्राष्ट्रीय धावक रहीं पी.टी. ऊषा है और वह राज्यसभा की सांसद भी हैं। अतः महिला पहलवानों के आरोपों के बारे में हर कोण से गहन जांच न हो इसकी संभावना बहुत कम है। अतः अब जांच समितियों को अपना काम करने देना चाहिए और इनके समक्ष सबूत पेश किये जाने चाहिएं।