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खड़गे की चुनौतियां

देश की 136 साल पुरानी पार्टी कांग्रेस का इतिहास आजादी के पूरे संघर्ष से जुड़ा हुआ है। कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज के दौरान 28 दिसम्बर 1885 को हुई थी। 1857 के गदर के वक्त ए ओ हयूम इटावा के कलेक्टर थेे

देश की 136 साल पुरानी पार्टी कांग्रेस का इतिहास आजादी के पूरे संघर्ष से जुड़ा हुआ है। कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज के दौरान 28 दिसम्बर 1885 को हुई थी। 1857 के गदर के वक्त ए ओ हयूम इटावा के कलेक्टर थेे, उन्होंने खुद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने 1882 में पद से अवकाश लेकर कांग्रेस यूनियन का गठन किया। उन्हीं के नेतृत्व में मुम्बई में पार्टी की पहली बैठक हुई। कांग्रेस के संस्थापकों में ए ओ हयूम, दादा भाई नोरौजी और कई अन्य नेता शामिल थे। शुरूआती वर्षों में कांग्रेस ने ​ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की लेकिन 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख कड़ा हुआ और अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू किया गया। मैं कांग्रेस के इतिहास में नहीं जाना चाहता। अगर राजनीतिक इतिहास की बात करें तो आजादी से लेकर 2014 तक 16 आम चुनावों में से कांग्रेस ने 6 में पूर्ण बहुमत जीता और चार में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया। इस तरह कुल 49 वर्षों तक वह केन्द्र सरकार का हिस्सा रही। कांग्रेस ने देश को पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, श्रीमती इंदिरा गांधी फिर राजीव गांधी उसके बाद पी.वी. नरसिम्हा राव और फिर मनमोहन सिंह समेत सात प्रधानमंत्री दिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि कांग्रेस का इतिहास काफी समृद्ध रहा है। लेकिन आज तक आते-आते कांग्रेस का धीरे-धीरे क्षरण होता गया। वैचारिक और सैद्धांतिक स्तर पर पार्टी भटकाव के दौर में पहुुंच गई। 
कांग्रेस ने 2000 में अध्यक्ष पद के लिए अपना अंतिम चुनाव किया था। श्रीमती सोनिया गांधी सबसे लम्बे समय तक पार्टी अध्यक्ष रहीं। उन्होंने 1998 के लोकसभा चुनावों के बाद सीताराम केसरी से पार्टी का नियंत्रण सम्भाला और तब से 2017-19 के बीच 2 साल की अवधि को छोड़कर जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने पार्टी की कमान सम्भाले रखी। दो लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद पार्टी में हताशा का माहौल कायम हो गया। गुटबाजी निरंतर बढ़ती गई और पार्टी के भीतर से ही पार्टी हाईकमान पर सवाल दागे जाने लगे। दो दशकों से भी अधिक समय बाद कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का व्यक्ति बना है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक तरफा जीत हासिल कर पार्टी अध्यक्ष पद सम्भाल लिया है। पार्टी के भीतर आंतरिक चुनाव होना एक अच्छी परम्परा है। लोकतंत्र में सशक्त विपक्ष का होना बहुत जरूरी है। मजबूत विपक्ष के ​बिना सत्ता पक्ष के निरंकुश होने का खतरा बना रहता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार और भाजपा इतनी मजबूत हुई है कि फिलहाल कोई विकल्प सामने नजर नहीं आ रहा। देश के लोगों की नजरें कांग्रेस पर लगी हुई हैं कि क्या मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में मृतप्रायः हो चुकी कांग्रेस में जान पड़ेगी। खड़गे के अध्यक्ष बनने से कांग्रेस वंशवाद के आरोप से कुछ राहत पाने की उम्मीद कर सकती है। खड़गे के लिए अध्यक्ष पद कांटों के ताज के समान है। पार्टी में सबको एक साथ लेकर चलना, कांग्रेस कैडर में नए रक्त का संचार करना और उन्हें चुनावों के​ लिए तैयार करना अब उनकी जिम्मेदारी है। बुजुर्ग खड़गे ने पहला काम स्टीयरिंग कमेटी के गठन का किया, जिसमें पूर्व अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गांधी समेत कांग्रेस कार्यसमिति के लगभग सभी सदस्य शामिल हैं। इस कमेटी में खड़गे के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने वाले शशि थरूर और मनीष तिवारी शामिल नहीं हैं। इससे शशि थरूर नाराज माने जाते हैं। कुछ क्षेत्रों ने इससे पार्टी में फिर गुटबाजी होने की आशंकाएं व्यक्त की हैं। परम्परा के मुताबिक नए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के बाद कांग्रेस कार्यसमिति भंग कर दी जाती है। खड़गे ने कांग्रेस के मेकओवर के लिए नया प्लान भी तैयार कर लिया है। उन्होंने पूरे देश में कांग्रेस में पचास साल से कम उम्र के 50 फीसदी नेताओं की जगह देने की कवायद शुरू कर दी है। इसके अलावा लम्बे समय से एक ही पद पर बने नेताओं की छुट्टी करने की तैयारियां भी कर ली गई हैं। कांग्रेस के उदयपुर में हुए चिंतन शिविर के बाद 6 महीने के भीतर कई बड़े फैसले लिए जाने थे जिनकी समय सीमा अगले महीने समाप्त हो रही है। उदयपुर चिंतन शिविर में यह तय किया गया था कि कांग्रेस कार्यसमिति समेत राष्ट्रीय पदाधिकारियों, प्रदेश, जिला, ब्लाक व मंडल स्तर पर पदाधिकारियों में 50 फीसदी पदाधिकारियों की उम्र 50 साल से कम होनी चाहिए। अब निष्क्रिय नेताओं की छुट्टी कर दी जाएगी, जो बचे हैं उन्हें भी हटाया जाएगा। पदाधिकारियों का मूल्यांकन अब काम के आधार पर होगा।
अब देखना यह है कि खड़गे अपने युवा प्लान को कितना लागू कर पाते हैं। किसी भी राजनीतिक दल की असली परीक्षा चुनावी मैदान में होती है। हिमाचल और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। अगले वर्ष के शुरू में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव होने हैं। राहुल गांधी इस समय भारत जोड़ों यात्रा में जोर-शोर से लगे हुए हैं। उनकी यात्रा चुनावों में कितनी सार्थक साबित होगी यह समय ही बताएगा। पार्टी नेताओं को उम्मीद है कि भारत जोड़ो यात्रा से दक्षिण भारत में पार्टी को मजबूती मिल सकती है। अभी कांग्रेस कार्यसमिति का चुनाव होना है और खड़गे को पार्टी पदाधिकारियों का चुनाव भी करना है। देखना यह है कि वह​ कितना स्वतंत्र रूप से काम कर पाते हैं। इतना तय है कि खड़गे गांधी परिवार के मार्गदर्शन में काम करेंगे। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान का राजनीतिक बवाल भी है। कर्नाटक में पार्टी की गुटबाजी भी है। छत्तीसगढ़ में भी पार्टी के भीतर कुछ अच्छा नहीं है। देखना है कि खड़गे इन चुनौतियों को कैसे पार लगाते हैं। हिमाचल और गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी कितना जनाधार प्राप्त करती है, इस पर भी सबकी नजरें लगी हुई हैं। क्या कांग्रेस सशक्त विपक्ष बन पाएगी यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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