मेरी सभी धर्मों में आस्था है। क्योंकि ईश्वर एक है उसके पास पहुंचने के अलग-अलग रूप हैं। वैसे भी जैन धर्म नहीं, सही मायने में जीवन जीने की पद्धति है। जियो और जीने दो, परोपकार करो, अहिंसा पर चलो। बेशक मैं ब्राह्मण परिवार से हूं, क्षत्रिय परिवार में शादी हुई, मेरी मां ने गुरुद्वारे में चालीया सुख-सुख कर भाई मांगा और 5 साल उसे सरदार ही रखा और जिस घर में रहते थे उस घर में एक तरफ ब्रह्मकुमारी का स्थान था, दूसरी तरफ जैनियों का घर था और तीसरा घर गुप्ता परिवार का था, तो शुरू से सभी धर्मों के संस्कारों को लेकर चल रही हूं। विशेषकर जैन समाज को मैं बहुत मानती हूं। बहुत से जैन गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त है, इसलिए उनकी आस्था को भी समझती हूं।
आज जैन समाज का सरकार से जो अनुरोध है उसे सरकार को जरूर सुनना चाहिए और उनकी आस्था को समझना चाहिए। यही नहीं जहां भी कोई भी किसी धर्म का तीर्थ स्थान है उसे आप तीर्थ पर्यटन घोषित कर वहां पर मांस, शराब या कोई और तरह की गंदगी को बैन कर जुर्म घोषित करना चाहिए। क्योंकि किसी भी तीर्थ स्थान से लाखों-करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी होती है।
विशेषकर श्री सम्मेद शिखरजी झारखंड के गिरिडीह में पारसनाथ या पार्श्वनाथ पहाड़ी पर स्थित है। इस पहाड़ी का नाम जैनों के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के नाम पर पड़ा। जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में 20 तीर्थंकरों सहित असंख्य जैन संतों व मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया था इसलिए जैन समुदाय के लिए यह स्थल सबसे पावन स्थलों में से एक है। इतना ही नहीं पहाड़ पर 25 मंदिरों में जैन तीर्थंकरों के चरण चिन्ह मौजूद हैं। इस पहाड़ी की तराई में स्थित मधुबन में कई प्राचीन मंदिर हैं, इसलिए जैन समाज चाहता है कि यह उनकी आस्था का केन्द्र है। यह कोई पर्यटन स्थल नहीं। पर्यटन स्थल घोषित होने पर लोग मांस-मदिरा का सेवन कर सकते हैं, जिससे पवित्रता भंग होगी। इसलिए इस 0-25 कि.मी. दायरे को पवित्र स्थल घोषित किया जाए।
इसलिए मेरा मानना है कि जैन समाज को सुनना चाहिए और उनकी मांग को पूरा करना चाहिए। इसके साथ-साथ देश के हर धार्मिक स्थान पर ऐसे नियम लागू होने चाहिएं कि किसी भी धार्मिक स्थान की पवित्रता पर विशेष ख्याल रखना चाहिए। श्री सम्मेद शिखरजी सिद्ध भूमि है जिसका एक-एक कण पूजनीय है, इसलिए इसे पवित्र तीर्थ क्षेत्र घोषित करना ही चाहिए।
अगर भारत की संस्कृति, संस्कार जीवित हैं तो ऋषि-मुनियों और संतों के कारण हैं। जैन समाज को मेरा हमेशा नमन है। माथा टेकती हूं। सर्दी-गर्मी, तूफान में संत पैदल चलते हुए एक समय का आहार लेते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान संस्कृति और संस्कारों का उपदेश देते हैं। कितना तप है इनके जीवन में कितना कठिन निस्वार्थ जीवन व्यतीत करते हैं। हजारों-लाखों लोग इनके अनुयायी हैं। यह समाज अहिंसक और शांतिप्रिय है। इनकी मांग भी बहुत ही जायज है और शांति प्रिय तरीके से रख रहे हैं।
मेरी हाथ जोड़ कर विनती है कि किसी भी धर्म की आस्था को कायम रखना हमारा सबका परम धर्म है। विशेषकर जब इस सरकार द्वारा सभी धर्मों की रक्षा हो रही है, विशेषकर हिन्दू धर्म के स्थानों को विशेष महत्व और उनको उनका वैभव मिल रहा है। आज हर हिन्दू को गर्व है कि वह हिन्दोस्तानी हैं। मुझे याद है कि एक समय ऐसा भी आया था जब अश्विनी जी को आर्टिकल लिखना पड़ा था कि क्या इस देश में हिन्दू होना गुनाह है? अब वो हालात नहीं हैं, सरकार सबकी सुनती और रक्षा करती है तो इसलिए मेरी प्रार्थना है कि इनकी आवाज, इनकी मांग को सुनना चाहिए। सभी संतों के साथ बैठकर इसको जल्दी ही सुलझाना चाहिए।
लेख लिखते-लिखते संज्ञान में आया कि पर्यावरण वन एवं पर्यटन मंत्रालय ने दो पेज के एक पत्र के माध्यम से झारखंड सरकार को आदेश दिए कि श्री सम्मेद शिखरजी को पर्यटक स्थल बनाने पर रोक लगा दी गई है। अब जैन समाज के इस पवित्र क्षेत्र में किसी भी प्रकार की मांस, शराब की बिक्री एवं अन्य अवांछित गतिविधि नहीं हो सकेगी। केन्द्र सरकार ने तीन वर्ष पूर्व जारी किया गया आदेश वापिस ले लिया है। पवित्र जैन स्थल पर कोई अवांछनीय गतिविधि न हों इसके लिए भी केन्द्र सरकार ने एक निगरानी समिति गठित कर दी है। सचमुच यह ऐलान सुखद भरा है, जैन समाज के इस धार्मिक स्थल को लेकर मोदी सरकार के प्रति जहां देश, विशेष रूप से जैन समाज प्रसन्न है, वहीं मैं लेखनी के माध्यम से इस जागरूक एवं कर्त्तव्यनिष्ठ सरकार के प्रति आभार व्यक्त करती हूं।