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लिव…इन….

हमारी भारतीय संस्कृति, सभ्यता, संस्कार देशों-विदेशों में मशहूर है और जो भी भारतीय परम्पराएं रीति​-रिवाज हैं उनके पीछे वैज्ञानिक तर्क है।

हमारी भारतीय संस्कृति, सभ्यता, संस्कार देशों-विदेशों में मशहूर है और जो भी भारतीय परम्पराएं रीति​-रिवाज हैं उनके पीछे वैज्ञानिक तर्क है। बच्चे के जन्म से लेकर शादी-ब्याह और मरण तक यहां तक कि विदेशों में भारतीय परम्पराओं को फालो कर रहे हैं। जहां भी हमारे भारतीय बसे हैं वो भी अपने भारतीय रीति-रिवाजों को वहां निभा रहे हैं। यहां तक की घोड़ी, बारात-बाजे, कृष्ण जन्माष्टमी, गुरुपर्व सभी बहुत तरीके और संस्कारों से मनाए जाते हैं। बहुत स्थान मिनी इंडिया, मिनी पंजाब, मिनी गुजरात से जाने जाते हैं।
परन्तु बड़े अफसोस की बात है कि कुछ हमारे भारतीय लोग अपनी परम्पराएं भूलकर विदेशी परम्पराएं अपना रहे हैं जिससे समाज संवेदनहीन होता जा रहा है। न संवेदना है न भावना, न संस्कार। पिछले कुछ दिनों से लिव-इन पार्टनर के कई घिनौने किस्से सामने आ रहे हैं। क्या है यह सब? अच्छी भली शादियां होती थीं। लड़के के लिए सेहरा और लड़कियों के लिए शिक्षा पढ़ी जाती थी। रिश्तेदार, समाज शामिल होता है, आंखों में शर्म होती है। आज क्या जमाना आ गया है लिव-इन-पार्टनर में इकट्ठे रहो, सभी व्यवहार करो परन्तु शादी न करो। यानी कुछ साल इकट्ठे रहे अगर बन जाए तो शादी कर लो, न हो तो अलग हो जाओ या ऐसे ही रहते जाओ।
यह ​िफल्म इंडस्ट्री में तो बहुत ही चलन हो गया है। बहुत सी नामी-गिरामी एक्ट्रेस 2-3 लोगों के साथ लिव-इन-पार्टनर रहीं। फिर या तो आखिर में अकेली रह गई या फिर चौथे व्यक्ति के साथ शादी कर ली। फिल्में आम व्यक्ति पर बहुत छाप छोड़ती हैं। ऐसे ही आमजन भी नकल करने लगे हैं परन्तु फिल्मी  दुनिया और वास्तविक दुनिया में बहुत फर्क है। शादी एक पवित्र बंधन है, जिसमें अग्नि को साक्षी मानकर या जिसे भी आप मानते  हो  उसके समक्ष कई वचन होते हैं, रिश्तेदार, समाज होता है, आंखों में शर्म-लज्जा होती है परन्तु लिव-इन-रिलेशन दो जनों के बीच न उसमें माता-पिता, न समाज बस अपनी मर्जी से दो लोग इकट्ठे रहते हैं। जब तक निभती है। परन्तु कई केसों में लड़कियां बड़ी भावुक होती हैं तो ​िफर शादी के लिए कहने लगती हैं, यह कई लड़कों को गवारा नहीं होता तो वह गुस्से में गलत कर बैठते हैं।
ऐसे ही हमारे सामने श्रद्धा हत्याकांड और मुम्बई का मनोज साने-सरस्वती वैद्य हत्याकांड जो एक जघन्य अपराध है, सामने आया। अभी पुलिस अपनी जांच कर रही है, अंत में क्या सामने आएगा यह तो ईश्वर ही जानता है परन्तु ऐसी अनेकों लड़कियां आजकल लिव-इन-रिलेशन के चक्कर में बलि चढ़ रही हैं जिसके ​िकस्से हैवानियत और इंसानियत को शर्मसार करते हैं।
कई युवाओं से लिव-इन-पार्टनर के बारे में पूछा  तो उन्होंने कहा कि आजकल लड़कियों के इतने गंदे कानून हैं कि वह शादी के बाद दहेज या उत्पीड़न के मामलों में लड़कों या उनके मां-बाप को फंसा देती हैं। इसलिए आजकल लड़के लिव-इन-रिलेशन में रहना पसंद करते हैं परन्तु इतने घिनौने अपराध के बारे में तो सोच ही नहीं सकते। इसी तरह लड़कियों से पूछा तो उनका भी ऐसा ही उत्तर था कि शादी होने के बाद असलियत सामने आती है तो लिव-इन-रिलेशन में रहना ही अच्छा है। इसीलिए विदेशों में शादी से पहले (Pre-Nuptial) यह सिस्टम शुरू हो गया है कि वह पहले ही निर्णय ले लेते हैं कि अगर शादी के बाद न बनी तो हम इस तरह अलग होंगे न कोई इल्जाम और इन्कम में भी उतना ही ​मिलेगा जितना पहले डिसाइड कर लेंगे। यानी इंडिया में तो शादी के बाद थोड़े दिनों की शादी के बाद न बने तो नए-नए इल्जाम लगाकर केस बना दो इसलिए इंडिया में अभी यह चलन नहीं है। अगर हो जाए तो शायद लोग शादियां भी ढंग से करेंगे और लि​व-इन-पार्टनर का चलन भी समाप्त हो जाए या यह हो जाए कि शादी के बाद लड़की का उस इन्कम और प्रोपर्टी पर ही अधिकार होगा जाे उसके पति की कमाई से हो। तब भी ऐसे मामलों में बहुत सी कमी आएगी।
इतने साल बुजुर्गों के लिए काम करते-करते यही समझ आ रहा है कि कैसे लोग जिनके हाथ-पांव कांपते रहे होते हैं वे दहेज या घरेलू हिंसा के केस में फंसे होते हैं। हां कई-कई स्थानों पर कसूर भी होता है, कहीं-कहीं लड़कियों के साथ भी ज्यादती होती है परन्तु ज्यादा अब लड़कों के साथ होने लग गई है। हमारा मकसद तो यही है कि बुरी प्रथा लिव-इन-पार्टनर समाप्त होनी चाहिए ताकि किसी भी लड़की के साथ ज्यादती न हो और हमें भारतीय संस्कृति, संस्कारों को सहज कर रखना चाहिए। क्यों​िक भारतीय संस्कृति-संस्कारों जैसा आैर कुछ नहीं। 

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