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महर्षि वाल्मीकि सामाजिक सशक्तिकरण के प्रेरणा स्रोत

आदि काव्य ‘रामायण’ के रचियता एवं संस्कृत साहित्य के नए युग का सूत्रपात करने वाले आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जी की जयंती पर देशवासियों को हार्दिक बधाई। उनके महत्वपूर्ण योगदान, सामाजिक सशक्तिकरण उनका जोर हमें बहुत ही प्रेरणा देता है।
आज हम महर्षि वाल्मीकि की जयंती मना रहे हैं। शरद पूर्णिमा का दिन मां लक्ष्मी चन्द्रमा की पूजा के अलावा महर्षि के जन्मदिवस के कारण भी महत्वपूर्ण दिन होता है। महर्षि के जीवन के अनेक प्रसंग हैं। सबसे महत्वपूर्ण प्रसंग तो यह है कि उन्होंने राम नाम की ऐसी अलख जगाई कि उन्हें खुद भी ज्ञात नहीं रहा कि उनके शरीर पर दीमकों ने बांबी बना ली है। तब उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें वाल्मीकि का नाम दिया। ब्रह्मा जी ने उन्हें रामायण की रचना करने के लिए प्रेरित किया। महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत में सबसे पहले श्लोक की रचना का श्रेय जाता है। श्लोक के बाद उन्होंने रामायण की रचना की। जिसमें 23 हजार श्लोक लिखे। रामायण से ही महर्षि की विद्वता प्रमाणित हुई। रामायण हमें मर्यादित समाज, आत्म संयम और समाज निर्माण की शिक्षा देती है। अपनी योग साधना और तपस्या के प्रभाव से उन्होंने श्री राम-सीता और अन्य पात्रों के सम्पूर्ण जीवन चरित्र को रामायण महाकाव्य में प्रस्तुत किया। इतना ही नहीं रामायण में अनेक घटनाओं के घटने, समय, सूर्य, चन्द्र और अन्य नक्षत्र की समृतियों का वर्णन किया। जिस तरह महर्षि ने श्रीरामचन्द्र जी के माध्यम से उनके गृहस्थधर्म, राजधर्म तथा प्रजाधर्म का जो चित्र ​खींचा वह अद्भुत है। पारिवारिक मर्यादाओं के लिए सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में वाल्मीकि रामायण से बढ़कर और कोई श्रेष्ठ ग्रंथ नहीं है।
आज अगर समाज वाल्मीकि रामायण को जीवन में अपना लें तो जीवन तो सफल होगा ही साथ में यह धरती भी शांत और सुन्दर हो जाएगी। पारिवारिक रिश्ते तभी सफल होते हैं जब सामाजिक मर्यादाओं का पालन होता है। महर्षि ने कहा था कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़ कर है। किसी मनुष्य की इच्छा शक्ति अगर उसके साथ हो तो वह कोई भी काम आसानी से कर सकता है। इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प मनुष्य को रंक से राजा बना देते हैं।
वाल्मीकि जयंती हमें यह भी सिखाती है कि किसी का जीवन किसी भी पल परिवर्तित हो सकता है अगर हम ईमानदारी से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। इस दिन को मनाने के साथ हमें यह प्रतिज्ञा भी करनी चाहिए कि हम वाल्मीकि महर्षि की तरह अपने जीवन काे सद्गुणों के साथ जीवन्त और महत्वपूर्ण बनाएंगे। कैसे हम अपने समाज और देश के लिए भी एक सकारात्मक योगदान कर सकते हैं।
आज के दिन मैं अपनी बचपन की मित्र वेद प्रकाश को याद करती हूं और उसे जगह-जगह ढूंढती हूं जो चौथी क्लास तक मेरी घनिष्ठ मित्र थी और वाल्मीकि समाज से थी। पढ़ाई में हमारा मुकाबला था कभी उसका एक नम्बर मेरे से ज्यादा कभी मेरा, हमारा आपस में बहुत प्यार था। मैं ब्राह्मण परिवार से थी और वह वाल्मीकि समाज से थी। हमारी दोस्ती किसी भेदभाव से उठकर सच्ची बचपन की भोली-भाली दोस्ती थी। हम लंच इकट्ठे करते, उसके घर से दो चपातियां साथ में आंवले का आचार मुझे बहुत पसंद था और उसको मेरा आलू की पराठा या मटर-पनीर की सब्जी बड़ी पसंद थी। फिर अचानक एक दिन वो स्कूल से चली गई, पता चला कि उसके माता-पिता ने उसको स्कूल से इस​िलए उठा लिया कि वह उसकी फीस नहीं दे सकते थे और वह चाहते थे कि उनकी बेटी उनके साथ काम पर जाए। मुझे उस समय बात ​बिल्कुल समझ नहीं आई तो मैं खूब रोई और मैंने भी अपने पिता जी को कह दिया कि मैं भी स्कूल नहीं जाऊंगी। जब तक वेद नहीं आएगी। मेरे पिता जी जाे बहुत ही पढ़े-लिखे इंसान थे और पढ़ाई की उनकी जिन्दगी में बड़ी अहमियत थी। उन्होंने भी उनके माता-पिता को प्रार्थना की और उसकी फीस भरने की भी पेशकश की परन्तु वह नहीं माने और कुछ दिन तक उसके घर पर भी कोई नहीं मिला।
मेरी नजरें आज भी अपनी प्यारी सहेली को ढूंढती हैं। आज के समय में बहुत परिवर्तन आ चुका है। बहुत से आईएएस अफसर, नेता, समाजसेवी इस समाज से हैं और लोगों में भी भेदभाव नहीं है। सभी साथ-साथ मिलकर चलते हैं। जैसे मुझे रोहित और उनके साथियों ने लालकिले पर वाल्मीकि जयंती पर बुलाया, मैं वहां गई। अभी भी मेरी आंखें उस भीड़ में अपनी मित्र बालसखी वेद को ढूंढ रही हैं। सच में वेद अगर तुम पढ़ रही हों, मेरे दिल की आवाज सुन रही हों तो मुझे मिलो।

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