आज भारत का 77वां स्वतन्त्रता दिवस 15 अगस्त है। यह दिन रस्म अदायगी का नहीं बल्कि एक राष्ट्र के रूप में आत्मावलोकन करने का है और विचार करने का है कि हम 1947 में कहां से चले थे और 2023 में कहां पहुंचे हैं? हम 1947 में हिन्दू-मुसलमान साम्प्रदायिक दंगों की विभीषिका से जूझ रहे थे और इस तरह जूझ रहे थे कि वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आजादी का जश्न नहीं मना रहे थे जिनकी तपस्या से हमें आजादी मिली थी बल्कि वह इस दिन बंगाल के नोआखाली (जो अब बांग्लादेश में है) में हिन्दू व मुसलमानों दोनों को समझा रहे थे कि एक-दूसरे समुदाय के खिलाफ हिंसा करने से केवल विनाश ही होगा। वह अपने प्रयासों में कामयाब हुए और बंगाल में दंगे रुक भी गये। 76 वर्ष बाद हम जब भारत के मणिपुर राज्य को देखते हैं तो हमें महात्मा गांधी की याद आती है औऱ हम अपना सिर धुनने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते। क्योंकि कल ही मणिपुर की साठ सदस्यीय विधानसभा के आठ नगा विधायकों ने इस राज्य के मुख्यमन्त्री एन. बीरेन सिंह से कहा है कि वे राज्य के कुकी आदिवासी समुदाय के लोगों के लिए पृथक प्रशासन संस्था बनाने की मांग के विरोध में मुख्यमन्त्री के साथ हैं। मणिपुर विधानसभा का सत्र 21 अगस्त से तब शुरू हो रहा है जबकि यह राज्य मैतेई व कुकी समुदाय के बीच चल रहे हिंसक दंगों की आग में झुलस रहा है।
दूसरी तरफ हरियाणा के पलवल के पोंढरी गांव में किसी हिन्दू पंचायत का आयोजन किया जाता है और इसमें मांग की जाती है कि उन्हें अपनी धार्मिक यात्रा निकालने के लिए बन्दूकों के लाइसेंस दिये जाने चाहिए। वे यात्रा में बन्दूकें अपनी आत्मरक्षा के लिए रखना चाहते हैं। क्या पिछले 76 सालों में हमने यही तरक्की की है जिस पर हम इतना इठला रहे हैं और खुद को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा करने का सपना पाल रहे हैं। विकसित राष्ट्र वह कहलाया जाता है जिसके नागरिक दिल- दिमाग से विकसित होते हैं क्योंकि तभी वह अपनी आर्थिक तरक्की कर पाते हैं। अंध विश्वासी व धर्मांध लोग कभी विकसित नहीं हो सकते क्योंकि वे जो भी आर्थिक विकास करेंगे वह समाज के उत्थान में प्रयोग नहीं हो पायेगा और समाज के विकास से ही कोई भी देश विकसित राष्ट्र बनता है जिसका उदाहरण यूरोपीय देश हैं। इन देशों का समाज विकसित कहा जाता है क्योंकि इनके लोगों के दिल व दिमाग दोनों खुले होते हैं। हम कहने को तो वसुधैव कुटुम्बकम् का राग अलापते रहते हैं मगर अपने ही समाज के दलित वर्ग के लोगों के साथ आज भी अमानुषिक कृत्य करने से बाज नहीं आते। अपने समाज की महिलाओं की पहचान किसी समुदाय मूलक बना कर हम उनके साथ मणिपुर जैसा व्यवहार करते हैं और उन्हें नग्न करके उनका जुलूस निकालने से भी बाज नहीं आते। हमने संविधान में यह जरूर लिख रखा है कि इस देश की सरकारें नागरिकों में वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए कारगर कदम उठायेंगी मगर राजनीतिज्ञ जब इन्हीं लोगों को धर्म व मजहब व समुदाय के नाम पर वोटों के लिए लड़ाने का काम करते हैं तो हम दीवार की तरफ मुंह करके खड़े हो जाते हैं।
हम भूल जाते हैं कि 1947 में हमें मिली आजादी अंग्रेज हमें तोहफे में देकर नहीं गये थे बल्कि इसके लिए हमारी पुरानी पीढि़यों ने अपनी जान तक की कुर्बानी दी थी। 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता समर से शुरू हुई हमारी आजादी की लड़ाई पूरे 90 साल चली थी और इस अवधि में हमने अंग्रेजों के जुल्म सहते हुए अपनी पुरानी पीढि़यों का बलिदान देखा था। इसमें सरदार भगत सिंह भी थे, अशफाक उल्ला खां भी थे। मगर मुस्लिम लीग के मुहम्मद अली जिन्ना ने हिन्दू-मुसलमानों की इन कुर्बानियों पर पानी फेरते हुए भारत का बंटवारा सिर्फ हिन्दू-मुसलमान के नाम पर ही करा दिया और देश के कांग्रेस के नेताओं के सामने चुनौती फेंक दी कि वे बचे-खुचे भारत को विकास की पटरी पर डाल कर दिखायें। मगर हमने हिम्मत नहीं हारी और हम उस समय भी भारत की कुल आबादी में 14 प्रतिशत मुसलमानों को बराबर के नागरिक अधिकार देकर विकास के रास्ते पर निकल पड़े।
हमने यह सफर मिल-जुल कर पूरा किया और 1947 के मुफलिस भारत को धन-धान्य से परिपूर्ण बनाया। जबकि हमारे ही साथ आजाद बने मजहबी मुल्क पाकिस्तान के हाथ में आज कटोरा है और भिखमंगा बना हुआ है। यह सब हमने उस संविधान की बदौलत हासिल किया जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। संविधान ने ही हमें बताया कि भारत भू-भाग के हर हिस्से में किसी भी धर्म या समुदाय का हर व्यक्ति भारत का सम्मानित नागरिक है और उसके हक बराबर हैं। हर धार्मिक और नास्तिक नागरिक के अधिकार बराबर हैं। हर दलित और कथित सवर्ण या हिन्दू या मुसलमान के नागरिक रुतबे में कोई फर्क नहीं है। हमारा संविधान लगातार हमें आगे विकास करने के लिए प्रेरित करता रहा और साथ ही बताता रहा कि कोई भी देश ऊंची-ऊंची इमारतों या बड़ी-बड़ी फौजों से मजबूत नहीं बनता है बल्कि वह आम नागरिकों के मजबूत व सशक्त होने से ही शक्तिशाली बनता है। मगर जिस देश के लोग आपस में ही वैर-भाव पाल कर आपस में लड़ते रहते हैं तो वह देश भीतर से खोखला होने लगता है। हमारे पुरखों ने मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा इसी वैर-भाव को पैदा करके जिस तरह भारत को भीतर से खोखला करने का प्रयास किया था उसे हमारे पुरखों ने जड़ से समाप्त करने में अपना जीवन होम कर दिया और हमें यहां तक पहुंचाया। अतः हमें हमेशा याद रखना होगा
हम लाये हैं तूफान से यह किश्ती निकाल के
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com