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गर्म भट्ठी में बदलता ग्रह

क्या मानव के रहने वाला ग्रह गर्म भट्ठी में तब्दील हो रहा है? इस सवाल का उत्तर इस बात से लगाया जा सकता है कि इस बार के होली उत्सव पर सबको बढ़े हुए तापमान का अहसास हुआ। मौसम विभाग ने इस बार बहुत अधिक गर्मी पड़ने की ​भविष्यवाणी कर रखी है। कुछ राज्यों में मार्च के दिनों में ही तापमान 40 सेल्सियस डिग्री को पार कर गया उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जून में किस तरह की गर्मी पड़ेगी। वैसे तो ग्लोबल वार्मिंग के चलते पृथ्वी पर तापमान बढ़ रहा है लेकिन चिंताएं इससे बढ़ गई हैं कि मुम्बई सहित महाराष्ट्र के कम से कम 37 शहराें में तापमान 40 डिग्री तक छू चुका है। दिल्ली का तापमान भी 34 डिग्री तक पहुंच चुका है। अमेरिका स्थित वैज्ञा​िनकों के एक स्वतंत्र समूह क्लामेट सैंट्रल द्वारा किए गए अध्ययन से पता चलता है कि अब 9 राज्यों में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक होगा। पहले सिर्फ तीन राज्य महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और बिहार ही गर्म राज्य माने जाते थे लेकिन अब राजस्थान, गुजरात, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश भी इस सूची में शामिल हो गए हैं।
अध्ययन में पाया गया कि मार्च के दौरान भारत के उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्र 1970 के स्तर की तुलना में सबसे अधिक गर्म हो गए हैं। जम्मू और कश्मीर में औसत तापमान में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई, लगभग 2.8 डिग्री सेल्सियस। अप्रैल के महीने में पूरे भारत में वार्मिंग अधिक समान रही है, मिजोरम में 1970 के बाद से लगभग 1.9 डिग्री सेल्सियस की सबसे बड़ी वृद्धि दर्ज की गई है। मार्च और अप्रैल के गर्म होने का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है। औद्योगिक क्रांति के बाद से वायुमंडल में गर्मी को रोकने वाली ग्रीनहाउस गैसों की अभूतपूर्व रिहाई के कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है। जहां दुनिया का वार्षिक औसत तापमान 1850-1900 की अवधि के औसत से 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है, वहीं भारतीय उपमहाद्वीप का वार्षिक औसत तापमान 1900 से 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। “ग्लोबल वार्मिंग भारत में गर्म मौसम के शीघ्र आगमन का पक्ष ले रही है। ग्रीनहाउस गैसों की सघनता, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए ज़िम्मेदार है, 1970 के दशक की तुलना में वर्तमान में बहुत अधिक है।”
रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा अल नीनो ने दुनिया भर में रिकॉर्ड तापमान और चरम घटनाओं को बढ़ावा दिया जिससे साल 2023 सबसे गर्म वर्ष रिकॉर्ड किया गया। यूरोपीय संघ की कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा के अनुसार, वैश्विक औसत तापमान जनवरी में पहली बार पूरे वर्ष के लिए 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर गया।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अपने नवीनतम अपडेट में कहा कि मार्च-मई के दौरान अल नीनो के बने रहने की लगभग 60 प्रतिशत संभावना है। जिसकी वजह से साल 2024 सबसे गर्म वर्ष हो सकता है। इसमें कहा गया है कि साल के अंत में ला-नीना विकसित होने की संभावना है लेकिन ये संभावनाएं फिलहाल अनिश्चित हैं। भारत में ला-नीना पर करीब से नजर रखने वाले वैज्ञानिकों ने कहा है कि जून-अगस्त तक ला-नीनाे की स्थिति बनने का मतलब यह हो सकता है कि इस साल मानसून की बारिश 2023 की तुलना में बेहतर होगी।
मध्य और पूर्वी उष्ण कटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का समय-समय पर गर्म होना अलनीनो कहलाता है। औसतन हर दो से सात साल में यह होता है और आमतौर पर 9 से 12 महीने तक रहता है। इसके विपरीत, ला-नीना मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के औसत से अधिक ठंडा तापमान होने को कहा जाता है, जो वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित करता है। डब्ल्यूएमओ का कहना है कि कमजोर प्रवृत्ति के बावजूद अलनीनो आने वाले महीनों में वैश्विक जलवायु को प्रभावित करना जारी रखेगा। मार्च और मई के बीच लगभग सभी भूमि क्षेत्रों में सामान्य से अधिक तापमान की भविष्यवाणी की गई है, अलनीनो मुख्य रूप से मौसमी जलवायु को प्रभावित करता है। जलवायु परिवर्तन की सबसे बड़ी वजह बढ़ता कार्बन उत्सर्जन है। इस से बचने के विकल्प तलाशने होंगे। हालांकि हमने कुछ विकल्प भी निकाल लिए हैं। हमने सोलर पैनल लगा लिए हैं, इलेक्ट्रिक कारें बना ली हैं लेकिन ये कोशिशें ऊंट के मुंह में ज़ीरे जैसी हैं, इनकी रफ्तार भी बहुत धीमी है। अगर क़ुदरत को बचाए रखना है तो हम सभी को उसके लिए मेहनत करनी होगी। जलवायु वैज्ञानिकों के अनुसार जब तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर भारी अंकुश नहीं लगाया जाता है और ग्लोबल वार्मिंग को कम नहीं किया जाता है, तब तक पहले से कहीं अधिक गर्म तापमान और लंबे समय तक रहना सामान्य बात बन जाएगा।

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