राम मंदिर : राष्ट्र का उत्सव-3 - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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राम मंदिर : राष्ट्र का उत्सव-3

श्रीराम की शासन प्रणाली अद्भुत थी। उस समय मंत्रिपरिषद दो भागों में विभक्त थी-आमात्य मंडल, पुरवः मंडल। इसे अगर आप तुलनात्मक दृष्टि से देखना चाहें तो आज की ‘लोकसभा’ और ‘राज्यसभा’ के रूप में भी देख सकते हैं। आमात्यगण ज्यादातर क्षत्रिय ही होते थे और उन्हें सैन्य बल का पूरा ज्ञान होता था। आमात्य मण्डल की मुख्य योग्यता थी उनका गठन। पूरे राष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों से लोग उन्हें स्वयं चयन करके भेजते थे। अगर निर्धारित तिथि तक किसी क्षेत्र के लोग आमात्यों का चयन करके नहीं भेजते थे तो ऐसी स्थिति में राजा अपने गुप्तचरों की सहायता से सर्वथा योग्य लोगों को चयनित कर लेता था।
पुरवः ‘अपर हाऊस’ था। यह एक परामर्शदात्री समिति थी। किसी विशेष प्रयोजन पर जब कोई बहुत महत्वपूर्ण निर्णय लेना होता तो इन्हें प्रार्थना की जाती थी कि वह मंत्रिपरिषद की बैठक में भाग लें। श्री वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्री राम के मंत्रिमंडल में धृष्टि, जयंत, विजय, अर्थसाधक, अशक, मंत्रपाल और सुमन्त्र आदि आमात्य होते थे। यहां कुछ क्षण विराम देकर मैं अपने पाठकों का ध्यान इस महत्वपूर्ण तथ्य की ओर दिलाना चाहूंगा कि कैसे ‘रामराज्य’ के गवर्नेंस के पवित्र सिद्धांत का हम आज भी अवलम्बन लें तो देश कहां से कहां जा सकता है परन्तु इसके लिए हमें कुछ क्रांतिकारी कदम उठाने होंगे।
रामराज्य के पुरवः मंडल की अवधारणा अगर आज लागू हो तो चमत्कार घटित हो सकता है। चमत्कार क्या होगा उस पर गौर फरमाएं। 238 लोग, जो राज्यसभा में चुनकर आते हैं, उस प्रक्रिया को अविलम्ब विदा करने का सूत्रपात हो। शेष जो 12 बच जाते हैं, उन मनोनीत सदस्यों के बदले में राज्यसभा एक सौ मनोनीत सदस्यों की परिषद या मंडल हो। सौ सदस्य यानी देश के निम्नलिखित क्षेत्रों में 10-10 श्रेष्ठ : श्रेष्ठ कृषि वैज्ञानिक, स्वास्थ्य विशेषज्ञ, शिक्षाविद, कानून वेत्ता, संसदीय प्रणाली के​विद्वान, रक्षा विशेषज्ञ, ​िवत्त विशेषज्ञ, विदेश नीति विशेषज्ञ, कूटनीति विशेषज्ञ तथा मानव संसाधन विशेषज्ञ उसमें लिए जाएं। ये दस लोग जिस क्षेत्र के भी माहिर हों उनमें से एक कैबिनेट मंत्री, एक राज्यमंत्री, एक उपमंत्री चुनकर शेष 7 लोगों का दल मिलाकर एक विशेष कार्य ग्रुप हो।
श्री राम के राज्य में ये व्यवस्था थी। पुरवः के सारे के सारे सदस्य ‘आध्यात्मिक वैज्ञानिक’ ही थे। यह सच है कि आज मंत्रियों के पास आई.ए.एस. अधिकारियों की एक लम्बी-चौड़ी ब्यूरोक्रेटिक फौज होती है परन्तु मंत्री जब तक श्रेष्ठ नहीं होगा, ब्यूरोक्रेसी सारे सिस्टम पर हावी हो जाएगी।
डा. अम्बेडकर ने एक बार कहा था “युग के साथ युग का जब धर्म बदलेगा, नई दृष्टि के अनुसार जब नई सृष्टि की रचना करनी होगी तो हमारे संविधान में संशोधन का पर्यास प्रावधान है कि हम इसे आने वाले कल के अनुरूप ढाल सकें।” श्री राम के नाम पर या ‘रामराज्य’ के आधार पर मात्र अनुच्छेद-80 के एक संशोधन से देश विनाश से विकास की यात्रा पर जा सकता है, अत: क्या देश के प्रधानमंत्री ऐसा चाहेंगे, वे मुखरित हों। ‘रामराज्य’ के शासन को विस्तार से लिखने के लिए तो एक ग्रंथ की रचना करनी पड़ जाएगी। इस शासन पद्धति के ऊपर इसलिए एक विहंगम दृष्टि डाली कि बापू जिस ‘रामराज्य’ की बात करते थे वह कोरी कल्पना नहीं थी बल्कि एक यथार्थ था।
आइए थोड़ा-सा रामराज्य की न्यायप्रणाली की ओर एक दृष्टि डालें। उस समय न्यायाधीश धर्मपालक कहलाते थे। धर्म की वास्तविक समझ ही न्यायाधीशों की योग्यता होती थी। उन्हें इस पद पर आने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। धर्मपालक प्रतिदिन लोगों की शिकायतों को सुनते थे और धर्म के अनुरूप फैसला करते थे। जिस तरह आज अदालतों में हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में बैंच व्यवस्था है और महत्वपूर्ण फैसले कई जज मिलकर देते हैं, उस समय भी ‘धर्मपालक’ के साथ बैठने वाले ये थे : पुरोहित वशिष्ठ, धर्मशास्त्र में पारंगत मुनि, वृद्ध और अनुभवी ऋषिगण, एक आमात्य मण्डल का सदस्य तथा एक पुरवः मण्डल का सदस्य । सरलतापूर्वक बिना पैसे खर्च किए, सुलभ न्याय क्या होता है, इसे श्री राम के काल से ही समझा जा सकता है। श्री राम का न्यायाधीशों को यह विशेष निवेदन था कि बिना जांच कराए अगर एक भी निर्दोष को सजा मिली तो उसका प्रतिफल स्वयं न्यायाधीश को भोगना होगा। गुप्तचर तंत्र न्यायपालिका के अधीन था और पुलिस प्रशासन का उससे कुछ लेना-देना न था। श्री राम की न्याय प्रणाली का यह सिस्टम भी मुझे बड़ा आकर्षित करता है।
काश ! आज हम इस सिस्टम को अपना लें तो हमारी न्याय प्रणाली में भी सचमुच न्याय झलक सकता है। इसे थोड़ा और विस्तार से कहना चाहूंगा। बात न्याय प्रक्रिया की है अगर कहीं कोई अपराध हो जाता था तो तत्कालीन पुलिस का इतना ही कार्य था कि वह अपराधी को पकड़कर न्यायपालिका के समक्ष प्रस्तुत कर दे। किसी अपराध कर्म की जांच में पुलिस की कोई भी भूमिका नहीं होती थी। पुलिस को जानबूझकर इस प्रक्रिया से दूर रखा गया था। आज अपराधियों की जड़ में यही ‘पुलिस तंत्र’ है। केस डायरी से लेकर चार्जशीट तक सब ये पुलिस के अधिकारी करते हैं। जिसे चाहे अपराधी बना दें, जिसे चाहे निर्दोष घोषित कर दें। श्री राम की न्यायिक प्रणाली में पकड़े हुए अपराधी को कहां से पकड़ा, किस परिस्थिति में पकड़ा, उसका आचरण क्या था, इन तथ्यों को लेकर पुलिस को विदा कर दिया जाता था। धर्मपालक स्वयं जांच करते, स्वयं फैसला करते। रामराज्य की प्रणाली इतनी व्यावहारिक है कि इसे लागू कर दिया जाए तो अब भी हम इससे बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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