मणिपुर हिंसा का मानवीय पक्ष - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

मणिपुर हिंसा का मानवीय पक्ष

मणिपुर की अन्तर्जनजातीय हिंसा को लेकर निश्चित रूप से पूरे देश के लोगों में बेचैनी का माहौल है और यह जानने की उत्सुकता भी है कि आखिरकार इसका मूल कारण क्या है?

मणिपुर की अन्तर्जनजातीय हिंसा को लेकर निश्चित रूप से पूरे देश के लोगों में बेचैनी का माहौल है और यह जानने की उत्सुकता भी है कि आखिरकार इसका मूल कारण क्या है? यह सत्य है कि अधिसंख्य उत्तर व दक्षिण के लोगों को पूर्वोत्तर राज्यों की सामाजिक-आर्थिक व राजनैतिक संरचना के बारे में गहरे से जानकारी नहीं होती है। इसमें भी अगर हम हिन्दी क्षेत्र के लोगों के बारे में बात करें तो उन्हें सबसे कम जानकारी रहती है। इसके कई कारण हैं जिनमें एक प्रमुख कारण यह भी माना जाता है कि हिन्दी पत्रकारिता पूर्वोत्तर राज्यों के बारे में उदासीन रही है लेकिन अब समय बदल चुका है और इंटरनेट का जमाना है अतः आज की युवा पीढ़ी पुरानी वर्जनाओं को तोड़ कर जब चाहे आगे निकल सकती है। मणिपुर की हिंसा पर देश के सर्वोच्च न्यायालय ने गहरी चिन्ता जताई थी और विगत 3 जुलाई को आदेश देकर राज्य सरकार से पूछा था कि वह तब तक की राज्य की परिस्थितियों के बारे में उसे अवगत कराये। अतः राज्य सरकार ने सिलसिलेवार कल न्यायालय में ब्यौरा रखते हुए बताया कि विगत 4 जुलाई तक राज्य में हिंसा के चलते कुल 142 व्यक्तियों की मौत हो चुकी है और 54 हजार से ज्यादा नागरिक बेघर-बार होकर राहत शिविरों में शरण लिये हुए हैं।
 सबसे ज्यादा हिंसा व आगजनी की घटनाएं राजधानी इम्फाल के इर्द​-िगर्द इलाकों में ही हुई हैं उसके बाद पहाड़ी क्षेत्र के चन्द्रचूढ़पुर जिले में सबसे ज्यादा लोग मरे हैं। साथ ही घाटी के विष्णुपुर व काकचिंग में हिंसा की बड़ी घटनाएं देखने में आयीं। राज्य सरकार ने इस हिंसा पर काबू पाने के लिए सभी संभव प्रयास किये हैं और अब इसमें कमी आ रही है। राज्य सरकार मैतेई व कुकी जनजातियों द्वारा बनाये गये बंकरों को भी नष्ट करने का अभियान चला रही है जिससे लोग अपने-अपने काम-धंधे के बारे में सोच सकें और खेती-किसानी की तरफ बढ़ सकें। राज्य में फिलहाल धान की बुवाई का काम चल रहा है। जाहिर है कि राज्य सरकार ने अपनी तरफ से सर्वोच्च न्यायालय को यह समझाना चाहा कि वह अपने नियन्त्रण में सारी सरकारी मशीनरी और अधिकारों का प्रयोग करके हिंसा पर काबू पाने के प्रयासों में लगी हुई है। 
मगर दूसरी तरफ यह भी हकीकत है कि राज्य की चुनी हुई एन. बीरेन सिंह सरकार की नाक के नीचे दो जनजातियों के बीच वैमनस्य का इतना जबर्दस्त माहौल क्या रातों-रात ही बन गया? कुकी और मैतेई जनजातियों के समुदायों में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास का माहौल बनाने में क्या कोई राजनीति भी रही है? ये सब एक प्रश्न हैं जिनके बारे में सवाल उठने लाजिमी हैं परन्तु सर्वोच्च न्यायालय का इनमें कोई दखल नहीं हो सकता। शायद यही वजह रही कि कल मणिपुर हिंसा मामले पर सुनवाई करते हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चन्द्रचूड़ ने दोनों ही पक्षों के वकीलों से साफ-साफ कहा कि वे यह स्पष्ट रूप से समझ लें कि हम इस न्यायालय में चल रही कार्यवाही का उपयोग राज्य में हिंसा को और बढ़ावा देने के लिए नहीं कर सकते। अतः न्यायालय उनसे अपील करता है कि वे न्यायालय को एेसा मंच बनाने का प्रयास न करें जिससे हिंसा और भड़के  और वे समस्याएं और मुखर हों जो इस राज्य में पहले से ही चल रही हैं। न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ का पूरा देश दिल से सम्मान करता है। उन्होंने ये विचार निश्चित रूप से मणिपुर की स्थितियों का अध्ययन करने के बाद पूरे कानूनी नुक्तों का ध्यान रखते हुए ही व्यक्त किये होंगे अतः राजनैतिक दलों का भी यह कर्त्तव्य  बनता है कि वे वोटों का गुणा-गणित छोड़ कर इस राज्य के लोगों के जीवन को शान्तिमय व सुखी बनाने के लिए सभी संभव प्रयास करें। 
सवाल यह नहीं है कि राज्य में भाजपा की सरकार है औऱ केन्द्र में भी इसी पार्टी की सरकार है बल्कि सवाल यह है कि भारत के एक सीमान्त राज्य में लोग आपस में ही लड़ रहे हैं और जिस देश में लोग आपस में ही लड़ने लगें वह देश कभी मजबूत नहीं हो सकता। अतः राष्ट्र की मजबूती के लिए जरूरी है कि सभी राजनैतिक दल इस राज्य में अपना एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भेज कर लोगों के बीच भाईचारा बढ़ाने का पैगाम दें। हमें नहीं भूलना चाहिए कि यह देश उन महात्मा गांधी का देश है जो 1947 की आजादी के समय बंगाल में हिन्दू-मुस्लिम फसाद रोकने के लिए अकेले ही इस राज्य में बिना किसी सुरक्षा के एक धोती पहने व हाथ में लाठी लेकर निकल पड़े थे जबकि उस समय पूरे देश में मार-काट का बाजार बहुत गर्म था। पश्चिमी इलाके पंजाब में तो खून की नदियां बह रही थीं। इस क्षेत्र के दंगे रोकने के लिए सेना की सैकड़ों टुकड़ियां तैनात की गई थीं, फिर भी दंगे रुक नहीं रहे थे। उस समय भारत के गवर्नर जनरल लार्ड माऊंटबेटन ने कहा था कि ‘मुझे भारत के पूर्वी क्षेत्र (बंगाल) की चिन्ता नहीं है क्योंकि वहां एक अकेले व्यक्ति की सेना ही दंगा रोकने के लिए काफी है, मुझे असली चिन्ता पश्चिमी क्षेत्र (पंजाब) की है जहां सेना की बटालियन की बटालियनें तैनात हैं’। इसलिए न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ का यह कहना कि यह न्यायालय न तो  सुरक्षा प्रणाली चलाता है और न सीधे कानून-व्यवस्था लागू करने वाली मशीनरी को संचालित करता है। 
अगर वकीलों को यह लगता है कि इस सन्दर्भ में कुछ खामियां या विसंगतियां हैं तो हम सम्बन्धित प्रशासन को नोटिस जरूर जारी कर सकते हैं। अतः इस मामले पर हमें दलगत स्तर से ऊपर उठ कर बहस करनी चाहिए। यह मानवीयता का मामला है। जबकि न्यायालय को यह मालूम है कि संवैधानिक न्यायालय की हैसियत में यह उच्चतम अधिकारों का केन्द्र है। मणिपुर की समस्या को हमें इसी नजरिये से हल करना होगा। अतः इस बारे में भी जरूर पुनर्विचार करना चाहिए कि हाल ही में तथ्यों की जांच के लिए महिलाओं का जो एक  दल गया था उसके तीन सदस्यों के खिलाफ इसलिए एफआईआर दर्ज कर दी गई कि उन्होंने हिंसा को राज्य प्रायोजित कहा था। प. बंगाल की चुनावी हिंसा के बारे में भी तो एक पक्ष यही कह रहा है। लोकतन्त्र डा. लोहिया की नजर में विविध-विरोधी मतों की ‘चक्की’ होता है।
    
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

twenty − one =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।