सरकार बुलेट ट्रेन का सपना दिखाती है जिसकी गति 300 से 400 किलोमीटर प्रति घंटा होगी लेकिन भारतीय ट्रेनों की लेटलतीफी के चलते न केवल हजारों यात्रियों को परेशानी झेलनी पड़ती है बल्कि रेलवे की छवि भी विकृत हो चुकी है। ट्रेनों का निर्धारित समय से 10 से 40 घंटे तक विलम्ब से गंतव्य तक पहुंचना आश्चर्यजनक है। यात्री चार-चार महीने पहले टिकटें बुक करवा लेते हैं। कभी उन्हें अंतिम दिन पता चलता है कि ट्रेन तो कैंसिल कर दी गई है। यह सही है कि ट्रेन कैंसिल होने के कारण रेलवे आपको पूरी राशि वापस कर देती है लेकिन रेलवे कोई पैनल्टी नहीं देती जबकि अगर आप टिकट रद्द करवाएं तो आपसे कैंसलेशन चार्ज लेती है। रेलवे के किराये बढ़ाए जाते हैं लेकिन यात्रियों की सुविधाएं नहीं बढ़ाई गईं। कभी एयरकंडीशंड डिब्बों का एसी बन्द हो जाता है तो कभी ट्रेनों में खान-पान की गुणवत्ता को लेकर यात्री हंगामा कर देते हैं। कुछ ट्रेनें तो इतनी कुख्यात हो चुकी हैं कि अगर आप दो या तीन दिन की छुट्टी लेकर यात्रा कर रहे हैं तो आप मान कर चलिये कि आपको दो-तीन छुट्टियां और लेनी पड़ेंगी।
रेलवे विभाग हमेशा समय पालन का दावा करता है लेकिन अब तो आम यात्री ट्रेनों को छोड़ भी दें तो राजधानी और शताब्दी ट्रेनें तक लेट होने लगी हैं। आम आदमी की ट्रेनों का तो बुरा हाल है। सोशल मीडिया ट्रेनों की हालत की जमीनी सच्चाई से हम सबको अवगत कराता रहता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब ट्रेनों की लेटलतीफी के कारण पूछे तो रेलवे में हड़कंप मच गया। ट्रेनों के देरी से चलने पर आई एक रिपोर्ट के अनुसार ट्रेनों का परिचालन वित्तीय वर्ष 2017-18 और सालों की तुलना में सबसे खराब रहा। रिपोर्ट के अनुसार 30 प्रतिशत ट्रेनों के परिचालन में देरी हो रही है। वर्ष 2017-18 में 71.39 प्रतिशत मेल और एक्सप्रैस ट्रेनें समय पर चलीं, जबकि इससे पहले 2016-17 वित्तीय वर्ष में यह आंकड़ा 76.69 प्रतिशत था। इसका अर्थ यही है कि सिर्फ दो साल में लेट ट्रेनों की संख्या 5.3 फीसदी बढ़ी है। रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष यह मानते हैं कि दिल्ली-मुगलसराय खंड पर परिवहन का भारी दबाव है और कुछ ट्रेन खंडों पर क्षमता से अधिक ट्रेनें चल रही हैं।
रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष ने 8 क्षेत्रीय रेलों के महाप्रबंधकों से वास्तविकता जानने की कोशिश की लेकिन स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। सर्दियों में तो धुंध आैर कोहरा कोहराम मचाता ही है और रेलवे यात्रियों की सुरक्षा को देखते हुए ट्रेनों को धीमी गति से चलाया जाता है लेकिन अब तो कोई कोहरा नहीं। रेलवे अधिकारी ट्रेनों की लेटलतीफी का कारण निर्माण कार्यों को बताते हैं। भारतीय रेलवे लगातार निर्माण और रखरखाव कार्य कर रहा है जिसके चलते ट्रेनों के प्रदर्शन और समय की पाबंदी में देरी आई है। वर्ष 2016-17 में रेलवे ने 2687 अलग-अलग लोकेशन्स के 15 लाख मेंटीनेंस ब्लाक्स पर काम शुरू किया था जिस कारण ट्रेनें लेट हो रही हैं। भारतीय रेलवे के आधुनिकीकरण के प्रयास जारी हैं लेकिन अधिकारियों और कर्मचारियों का दायित्व बनता है कि स्थिति में सुधार के लिए वैकल्पिक तरीके अपनाएं। भारतीय रेलवे का पुनरुद्धार जरूरी है लेकिन यह काम यात्रियों के समय को ध्यान में रखते हुए कौशल से किया जाना चाहिए।
भारत की ट्रेनें जहां लेटलतीफी के लिए मशहूर हैं वहीं जापान आैर अन्य देशों की ट्रेनों का शेड्यूल इतना सटीक है कि कुछ सैकिंड की देरी होने पर भी रेलवे अधिकारियों को हर यात्री से माफी मांगनी पड़ती है। जापान की बुलेट ट्रेन शिन्कासेन का रिकार्ड है कि वह कभी 36 सैकिंड से ज्यादा लेट नहीं होती। खास बात यह है कि ट्रेन के जल्दी छूटने पर भी माफी मांगी जाती है। हाल ही में ट्रेन 25 सैकिंड पहले छूट गई तो जापान रेलवे को माफी मांगनी पड़ी। पिछले वर्ष भी एक ट्रेन स्टेशन से 20 सैकिंड पहले छूट गई थी जिससे हंगामा मच गया था क्योंकि इससे कई यात्रियों की ट्रेन मिस हो गई थी। जापान में तो सरकारी हो या प्राइवेट आफिस एक-एक मिनट की देरी भी गंभीर मानी जाती है लेकिन हमारे यहां तो समय का कोई ध्यान नहीं रखा जाता। पिछले महीने एक ट्रेन के घंटों लेट होने से सैकड़ों छात्र परीक्षा देने से वंचित रह गए। सवाल यह भी है कि रेलवे के लिए लोगों के समय की कोई कीमत ही नहीं है, ऐसा क्यों? रेलवे मंत्री पीयूष गोयल ने ट्रेनों की लेटलतीफी के चलते बिगड़ रही रेलवे की छवि को देखते हुए सभी जोन के प्रमुखों को चेताया है कि ट्रेन लेट होने पर उनका प्रमोशन प्रभावित हो सकता है। बेहतर होगा कि वे एक माह में हालात सुधार लें। उन्होंने यह भी कहा कि अधिकारी देरी के लिए मेंटीनेंस को बहाना नहीं बना सकते। साफ है कि ट्रेनें अधिकारियों आैर कर्मचारियों के निठल्लेपन के कारण ही लेट हो रही हैं। उम्मीद है कि मंत्री महोदय इस दिशा में ठोस पग उठाएंगे ताकि समय की बर्बादी न हो। रेलवे को ‘ट्रेन लेट है जनाब’ की टैग लाइन बदलनी होगी। भारतीय रेलवे की ओवरहालिंग की जरूरत है।