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क्यों है महिला वोटरों पर भाजपा को भरोसा?

‘तेरी इतनी फिक्र में रात सा जलता रहा हूं मैं
अपनी राख से तेरी सुबह संवारता रहा हूं मैं’
देश की महिला मतदाताओं ने हमेशा से भाजपा को सिर पर चढ़ाया है, खास कर मोदी युग के अवतरण के बाद, यह रिश्ता ठीक वैसा ही है जैसा कमल संग कुमुदिनी का होता है, मध्य प्रदेश के हालिया विधानसभा चुनाव में वहां की महिला मतदाताओं ने खुलकर कमल पार्टी के पक्ष में कदमताल की, लिहाजा वहां के चुनावी नतीजे भी चौंकाने वाले रहे। मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान अपनी लाडली बहनों के खाते में हर महीने 1250 रुपए ट्रांसफर करते थे, तब लाभार्थी महिलाओं की संख्या 1.31 करोड़ थी, जब राज्य को मोहन यादव के रूप में नया भगवा मुख्यमंत्री मिला तो यह सिलसिला कुछ दिनों के लिए थम सा गया था, पर यादव जी के कार्यकाल में इस दफे पहली बार 1.29 करोड़ महिलाओं के खाते में पैसा भेजा गया है, फिर भी दो लाख बहनों के नाम लिस्ट से कट ही गए हैं।
भरोसेमंद सूत्र खुलासा करते हैं कि चूंकि 2024 के आम चुनाव सिर पर हैं, सो महिला वोटरों को लुभाने के लिए मोदी सरकार ताबड़तोड़ कई नई घोषणाएं कर सकती है, 1 फरवरी से संसद का बजट सत्र आहूत है, सरकार अपने अंतरिम बजट में महिला किसानों को दिए जा रहे वार्षिक भुगतान को दुगुना करने की घोषणा कर सकती है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देशभर के कोई 26 करोड़ किसान व उनके परिजनों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत 6 हजार रुपए सलाना भुगतान होता है। केंद्र सरकार का अपना अनुमान है कि अगर सिर्फ महिला किसानों को मिल रही सम्मान निधि को डबल कर दिया जाए तो सरकार के खजाने पर सिर्फ 12 हजार करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, पर इन अतिरिक्त पैसों से ग्रामीण क्षेत्रों में कमल का ‘क्रेज़’ भी उसी रफ्तार से बढ़ेगा। महिला किसान भी पोलिंग बूथ तक खिंची चली आएंगी।
कोयला तो काला है
लोकसभा चुनावों से ऐन पहले छत्तीसगढ़ की राजनीति को कोयले व जंगल की तपिश ने गरमा दिया है। बीते कुछ समय से आदिवासी बहुल क्षेत्र सरगुजा के हंसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई ने रफ्तार पकड़ ली है, जिससे नाराज होकर आदिवासी समुदाय सड़क पर धरने पर बैठ गया है। सनद रहे कि 1898 हेक्टर में फैले इस जंगल को काट कर कोयले की खदान तैयार की जा रही है। जिस खदान का मालिकाना हक उसी बड़े उद्योगपति के पास है जिन पर राहुल गांधी हमेशा से अंगुली उठाते रहे हैं।
इस कोल ब्लॉक का आबंटन 2012 में अडानी समूह को हुआ था जब राज्य में रमण सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार थी। 2012 में ही लगभग डेढ़ लाख पेड़ यहां काट दिए गए थे। आदिवासी तब से इस परियोजना का पुरकश विरोध कर रहे हैं। जब यहां कांग्रेस की बघेल सरकार आई तो पेड़ों की कटाई का काम रुक गया। पर मार्च 2022 में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल से मिले और उन्हें अडानी के इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए राजी कर लिया, दोबारा से वहां 3 लाख से ज्यादा पेड़ कटने शुरू हो गए।
इसके खामियाजा के तौर पर कांग्रेस को छत्तीसगढ़ व राजस्थान दोनों प्रदेशों में अपनी सरकारें गंवानी पड़ीं। चूंकि इस अरण्य के पीईकेबी-2 का मालिकाना हक ‘राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड’ के पास है और निगम ने गहलोत की इच्छा पर इसे चलाने का अधिकतर अडानी इंटरप्राइजेज को दे दिया। भूपेश बघेल सरकार को जब तक होश आया और जब तक वह हंसदेव में पेड़ों की कटाई रोकने का प्रस्ताव विधानसभा में लेकर आई, तब तक तो वहां के आधे पेड़ कट चुके थे। आदिवासी समुदाय में कांग्रेस से इस बात को लेकर इतनी नाराज़गी थी कि उन्होंने बघेल सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया, इस बार धरने पर आदिवासियों के साथ कांग्रेस के नेता भी बैठे हैं।
जनता में जाएंगे राज्यसभा वाले
भाजपा शीर्ष ने एक तरह से तय कर दिया है कि जो भगवा नेता दो टर्म राज्यसभा का लाभ उठा चुके हैं, उन्हें तीसरी टर्म के लिए राज्यसभा नहीं मिलेगी। ऐसे नेताओं को इस दफे लोकसभा का चुनाव लड़ना होगा। वहीं जो सांसद तीन बार के सांसद हैं, उनके टिकटों पर भी पुनर्विचार होगा, हां, इस मामले में कुछ अपवाद जरूर हो सकते हैं। भाजपा  शीर्ष नेतृत्व के दुलारे पीयूष गोयल को मुंबई से लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। निर्मला सीतारमण व एस. जयशंकर जैसे प्रबुद्ध नेतागण भी साऊथ में अपने लिए माकूल सीटों की तलाश में हैं। अश्विनी वैश्णव को राजस्थान से चुनाव लड़ने को कहा जा सकता है। पार्टी से नाराज़ चल रही पंकजा मुंडे को उनकी बहन प्रीतम मुंडे की सीट से चुनाव लड़वाया जा सकता है। अब चूंकि, महाराष्ट्र विधानसभा स्पीकर ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की कुर्सी को सलामत रखने का ऐलान कर दिया है। सो, अब भाजपा नेतृत्व भी शिंदे के समक्ष एक नया प्रस्ताव लेकर आया है, भाजपा चाहती है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में शिंदे के 4-5 प्रभावशाली लोग भाजपा के सिंबल पर चुनाव लड़ जाएं।
भाजपा ने अजीत पवार से कहा है कि ‘वे अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को सुप्रिया सुले के खिलाफ बारामती से चुनाव लड़वाएं’ अजीत पवार फिलहाल इस प्रस्ताव पर सहमत नहीं हैं। सुनेत्रा महाराष्ट्र के एक पूर्व मंत्री पदम सिंह बाजीराव पाटिल की बहन हैं।
महाअघाड़ी में सीटों पर मंथन
महाराष्ट्र में महाअघाड़ी गठबंधन ने वहां की लोकसभा सीटों की शेयरिंग को लेकर अपना मंथन शुरू कर दिया है। सबसे पहले शरद पवार की एनसीपी ने वहां एक जनमत सर्वेक्षण करवाया, जिसमें दिखाया गया कि कांग्रेस सिर्फ उन्हीं सीटों पर आगे हैं जहां मुस्लिम वोटरों का बोलबाला है। शरद पवार ने कांग्रेस के हिस्से सिर्फ 10 लोकसभा सीटों की वकालत की। इसके बाद कांग्रेस व शिवसेना दोनों ही पार्टियों ने वहां जनमत सर्वेक्षण करवाए, इन सर्वेक्षणों के नतीजे आने के बाद गठबंधन में शामिल उद्धव शिवसेना, पवार की एनसीपी व कांग्रेस एक फार्मूले पर पहुंची कि यहां की 48 में से 20 सीट कांग्रेस को, 18 सीट उद्धव की शिवसेना को और महज 10 सीट शरद पवार के हिस्से आनी चाहिए।
बातचीत में यह भी तय हुआ है कि कांग्रेस अपने हिस्से की सीटों में से ही प्रकाश अंबेडकर की ‘वंचित बहुजन अघाड़ी’ यानी वीबीए के लिए अकोला की और राजू अन्ना शेट्टी की ‘स्वाभिमानी श्वेतकारी संगठन’ यानी एसएसएस के लिए कोल्हापुर की हातकंणगले लोकसभा सीट छोड़ देगी। अभी इस बात पर न तो अंबेडकर राजी हैं न शेट्टी।
…और अंत में
2024 के आम चुनाव में अपनी जीत सुनिचिश्त कराने के लिए भाजपा चाक-चौबंद प्रबंध में जुटी है। भाजपा शीर्ष किसी भी क्षेत्र की अनदेखी नहीं चाहता है, सो प्रबुद्ध लोगों के बीच मोदी सरकार के ‘दो टर्म’ की उपलब्धियों की बखान के लिए देष के अलग-अलग विश्वविद्यालयों के करीब 500 प्रोफेसर की एक टीम बनाई गई है और प्रोफेसरों के इस ग्रुप को नाम दिया गया है-‘एकेडमिक्स 4 नेशन’ इस ग्रुप की पहली मीटिंग दिल्ली विश्व विद्यालय में हो चुकी है।

 – त्रिदीब रमण 

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