भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने एक बार फिर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के साथ एकीकरण की पहल की है। उसे उम्मीद है कि लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी कार्यकर्ता नेतृत्व पर दबाव डालेंगे। भाकपा महासचिव एस सुधाकर रेड्डी ने हाल ही में अपने माकपा के समकक्ष सीताराम येचुरी से मुलाकात की और उन्हें एक पत्र सौंपा जिसमें दोनों वामपंथी दलों के साथ आने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
भाकपा का काफी समय से मानना है कि एकजुटता अनिवार्य है क्योंकि 1964 में वामपंथी आंदोलन में विभाजन की वजह रहे कारक अब प्रासंगिक नहीं हैं और दोनों दलों में अब बीते कई सालों से “कोई मतभेद” नहीं है। भाकपा की इस नयी पहल से एकजुटता की बहस फिर से शुरू हो गई है और इसका लक्ष्य माकपा कार्यकर्ता हैं, जिनके बारे में उसका मानना है कि वे एकीकरण के लिये पार्टी नेतृत्व पर दबाव डालेंगे।
भाकपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “इस बार, हमें उम्मीद है कि हमारी अपील का कार्यकर्ताओं पर असर होगा। हम सोचते हैं कि कार्यकर्ता दबाव डालेंगे (माकपा नेतृत्व पर)। हमारा यह भी मानना है कि हमारी पहल से चर्चा शुरू होगी।” माकपा के एकीकरण प्रस्ताव पर हिचकिचाहट दिखाने को लेकर पूछे गए सवाल पर भाकपा के एक सूत्र ने कहा कि इसका एक कारण यह हो सकता है कि येचुरी के नेतृत्व वाले संगठन के कार्यकर्ताओं का एक वर्ग विभाजन से जुड़े “असहज सवाल” उठा सकता है।