झारखंड : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने PM मोदी को लिखा पत्र, आदिवासी धर्म कोड की उठाई मांग - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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झारखंड : मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने PM मोदी को लिखा पत्र, आदिवासी धर्म कोड की उठाई मांग

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जनगणना के फॉर्म में आदिवासी धर्मावलंबियों के लिए “आदिवासी” या “सरना” धर्म कोड दर्ज करने की मांग एक बार फिर उठाई है। उन्होंने इसे लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि यह देश भर के आदिवासियों की पहचान और उनके विकास से जुड़ा विषय है। उन्होंने आदिवासियों की चिर प्रतीक्षित मांग पर केंद्र सरकार की ओर से सकारात्मक निर्णय लेने की मांग की है।

सीएम ने इस पत्र को सोशल मीडिया “एक्स” पर पोस्ट भी किया है। खास बात यह है कि सोरेन ने इस पत्र में प्रधानमंत्री को समाज के वंचित वर्गों के कल्याण के लिए तत्पर बताते हुए उनकी सराहना की है। सोरेन ने लिखा है, “जिस प्रकार प्रधानमंत्री जी समाज के वंचित वर्गों के कल्याण के लिए तत्पर रहते हैं, उसी प्रकार इस देश के आदिवासी समुदाय के समेकित विकास के लिए पृथक आदिवासी/सरना धर्म कोड का प्रावधान सुनिश्चित करने की कृपा करेंगे।”

जनगणना के फॉर्म में उनके लिए धर्मकोड का कॉलम जरूरी?

उल्लेखनीय है कि हेमंत सोरेन की सरकार ने इस विषय पर वर्ष 2020 में 11 नवंबर को झारखंड विधानसभा का एक विशेष सत्र आहूत किया किया था। इसमें जनगणना में आदिवासी/ सरना धर्म के लिए अलग कोड दर्ज करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया था। झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद की संयुक्त साझेदारी वाली सरकार द्वारा विधानसभा में लाये गये इस प्रस्ताव का राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने भी समर्थन किया था।

भारत में जनगणना के लिए जिस फॉर्म का इस्तेमाल होता है, उसमें धर्म के कॉलम में जनजातीय समुदाय के लिए अलग से विशेष पहचान बताने का ऑप्शन नहीं है। जनगणना में हिंदू, इस्लाम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन को छोड़कर बाकी धर्मों के अनुयायियों के आंकड़े अन्य (अदर्स) के रूप में जारी किये जाते हैं। आदिवासियों का कहना है कि वे आदिवासी/सरना धर्म को मानते हैं। उनकी पूरे देश में बड़ी आबादी है। उनके धर्म को पूरे देश में विशिष्ट और अलग पहचान मिले, इसके लिए जनगणना के फॉर्म में उनके लिए धर्मकोड का कॉलम जरूरी है।

हमारे संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जा सकेगी?

हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है, “हम आदिवासी समाज के लोग प्राचीन परंपराओं एवं प्रकृति के उपासक हैं तथा पेड़ों, पहाड़ों की पूजा और जंगलों को संरक्षण देने को ही अपना धर्म मानते हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 12 करोड़ आदिवासी निवास करते हैं। झारखंड प्रदेश जिसका मैं प्रतिनिधित्व करता हूं, एक आदिवासी बाहुल्य राज्य है, जहां इनकी संख्या एक करोड़ से भी अधिक है। झारखंड की एक बड़ी आबादी सरना धर्म को मानने वाली है। सरना धर्म की संस्कृति, पूजा पद्धति, आदर्श एवं प्रचलन सभी धर्मों से अलग है।…. झारखंड ही नहीं अपितु पूरे देश का आदिवासी समुदाय पिछले कई वर्षों से अपने धार्मिक अस्तित्व की रक्षा के लिए जनगणना कोड में प्रकृति पूजक आदिवासी / सरना धर्मावलंबियों को शामिल करने की मांग को लेकर संघर्षरत है।”

सोरेन ने प्रधानमंत्री से कहा है कि अगर यह कोड मिल जाता है तो आदिवासियों की जनसंख्या का स्पष्ट आकलन हो सकेगा। इससे आदिवासियों की भाषा, संस्कृति, इतिहास का संरक्षण एवं संवर्द्धन हो पाएगा तथा हमारे संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जा सकेगी। उन्होंने बताया है कि वर्ष 1951 के जनगणना के कॉलम में इनके लिए अलग कोड की व्यवस्था थी परन्तु कतिपय कारणों से बाद के दशकों में यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई।

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