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लड़कों के खिलाफ यौन अपराध मामले पूरी तरह सामने नहीं आते, जागरूकता बढ़ाने की जरूरत: केएससीएफ

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा बच्चों के खिलाफ अपराध से संबंधित वर्ष 2017 के आंकड़े जारी किए जाने की पृष्ठभूमि में नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी की संस्था ने कहा कि देश में अब भी लड़कों के विरुद्ध होने वाले यौन उत्पीड़न के मामले पूरी तरह सामने नहीं आ पाते हैं

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा बच्चों के खिलाफ अपराध से संबंधित वर्ष 2017 के आंकड़े जारी किए जाने की पृष्ठभूमि में नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी की संस्था ने बुधवार को कहा कि देश में अब भी लड़कों के विरुद्ध होने वाले यौन उत्पीड़न के मामले पूरी तरह सामने नहीं आ पाते हैं और इस बारे में जागरूकता बढ़ाए जाने की जरूरत है। ‘कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रंस फाउंडेशन’ (केएससीएफ) ने यह भी कहा कि जब तक लड़कों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों की रिपोर्टिंग और शिकायत दर्ज नहीं होगी तब तक ऐसे अपराधों पर प्रभावी ढंग से अंकुश नहीं लगाया जा सकता। 
संस्था ने एक बयान में कहा, ‘‘एनसीआरबी के अनुसार, वर्ष 2017 में पूरे भारत में बच्चों के खिलाफ कुल 1,29,032 अपराध हुए। वहीं, 2016 में बच्‍चों के खिलाफ 1,06,958 अपराध दर्ज किए गए। वर्ष 2017 के दौरान बच्‍चों के साथ घटित यौन उत्पीड़न के कुल 17,557 मामले दर्ज किए गए। हालांकि, बच्चों के साथ घटित यौन उत्पीड़न के 10,059 मामलों को पॉक्‍सो अधिनियम से नहीं जोड़ा गया।’’ 
केएससीएफ ने कहा, ‘‘यह तथ्‍य इस बात की पुष्टि करता है कि या तो पुलिस अधिकारियों में पॉक्‍सो अधिनियम को लेकर किसी तरह की जानकारी का अभाव है, या फिर वे इस अधिनियम को जानने के इच्‍छुक नहीं हैं।’’ इसने कहा कि एक रिपोर्ट से पता चलता है कि लड़कों के उत्पीड़न के मामले में वर्ष 2017 के दौरान पॉक्‍सो अधिनियम के तहत केवल 940 मामले दर्ज किए गए। इस संस्था ने कहा, ‘‘वर्ष 2007 में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बाल यौन शोषण की घटनाओं का अनुमान लगाने के लिए एक राष्ट्रीय अध्ययन किया था। उस अध्‍ययन में पाया गया कि 48 प्रतिशत लड़कों ने किसी न किसी स्तर पर यौन शोषण का सामना किया था।
 साल 2017 के हमारे एक अध्ययन से यह बात निकलकर सामने आई कि 25 प्रतिशत लड़कों ने यौन शोषण का सामना किया है।’’ केएससीएफ के अनुसार लड़कों के यौन शोषण की रिपोर्टिंग नहीं होने का पहला कारण पीड़ित बच्‍चों के माता-पिता की अनिच्‍छा या अज्ञानता है। इसने कहा, ‘‘वक्‍त का तकाजा है कि समाज में जागरूकता पैदा की जाए, ताकि लड़कों के यौन शोषण की रिपोर्ट दर्ज करने में किसी भी तरह की अनिच्छा, उदासीनता और लापरवाही खत्म हो सके। बाल यौन शोषण से संबंधित मामलों की स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग की जाए और वे मामले दर्ज भी होने चाहिए।’’ 

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