नयी दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि सीएफएल (काम्पैक्ट फ्लुरोसेंट लैंप) विनिर्माताओं को उत्पादन योजना पर आगे बढ़ाने की अनुमति मिलनी चाहिए। कंपनियों पर बेकार हो चुके बल्बों के संग्रह के लिये दबाव नहीं दिया जाना चाहिए जैसा कि केंद्र के 2016 के ई-कचरा प्रबंधन नियम में प्रावधान है।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायाधीश सी हरि शंकर की पीठ ने कहा कि फिलिप्स लाइटिंग, हैवेल्स और सूर्या जैसे विनिर्माताओं को ई-कचरा एकत्रित करने के लिये कहने के बजाए सरकार को कंपनियों से उनकी कारपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) के तहत पैसा लेकर उसका उपयोग बेकार बल्बों के संग्रह कराने में करना चाहिए।
अदालत ने कहा, ‘‘आप सीएफएल विनिर्माताओं से ई-कचरा एकत्रित करने के लिये क्यों कह रहे हैं? फिर आप प्लास्टिक बोतल बनाने वाली कंपनियों से उसका संग्रह करने के लिये क्यों नहीं कहते? आप सीएसआर पहल के तहत धन क्यों नहीं लेते और ई-कचरा संग्रह में उसका उपयोग करे? अगर विनिर्माता कचरा एकत्रित करेंगे, उनका उत्पादन बेकार होगा। विनिर्माताओं को बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन करने दीजिए।’’ पीठ इस मामले की अगली सुनवाई अगले साल मार्च में करेगी।
अदालत सीएफएल उत्पादकों….फिलिप्स लाइटिंग, हैवेल्स और सूर्या…और इलेक्ट्रिक लैंप एंड कंपोनेन्ट मैनुफैक्चरर्स एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में ई-कचरा नियमों को चुनौती दी गयी है। नियमों को 23 मार्च 2016 को अधिसूचित किया गया। इसके तहत विनिर्माताओं को ही बेकार सीएफएल बल्बों के संग्रह की जिम्मेदारी सौंपी गयी है।