संप्रभुता की मांग को छोड़ दे उल्फा (आई) फिर शांति वार्ता आगे बढ़ने की संभावना: सरमा - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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संप्रभुता की मांग को छोड़ दे उल्फा (आई) फिर शांति वार्ता आगे बढ़ने की संभावना: सरमा

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने राज्य में प्रतिबंधित संगठन उल्फा (स्वतंत्र) के बारे में बोलते हुए कहा कि सरकार चाहती है कि दोनों पक्षों में शांति वार्ता का दौर शुरू हो, लेकिन इससे पहले संगठन को संप्रभुता की बात को पीछे छोड़ना होगा।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने राज्य में प्रतिबंधित संगठन उल्फा (स्वतंत्र) के बारे में बोलते हुए कहा कि सरकार चाहती है कि दोनों पक्षों में शांति वार्ता का दौर शुरू हो, लेकिन इससे पहले संगठन को संप्रभुता की बात को पीछे छोड़ना होगा। सरमा ने कहा कि इसके अलावा सरकार उनकी अन्य सभी शिकायतों एवं मुद्दों पर उचित ढंग से वार्ता करने को तैयार है। 
सरमा ने कहा कि उल्फा (आई) के प्रमुख परेश बरूआ ने जोर देकर कहा है कि वह संप्रभुता से आगे कोई चर्चा नहीं करेंगे लेकिन उन्होंने (सरमा ने) संप्रभुता की रक्षा करने की शपथ ली है। सरमा ने कहा कि ये दो परस्पर-विरोधी बातें हैं। इसके साथ ही यदि हम उनकी शिकायतों और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा को कोई और नाम दे सकते हैं तो इस दिशा में कुछ प्रगति हो सकती है।
उन्होंने कहा कि नेक नीयत वाले ऐसे कई लोग हैं जो उल्फा प्रमुख के साथ इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं और उन्हें इस बात के लिए मनाने की कोशिश कर रहे हैं कि वह इस शब्द (संप्रभुता शब्द को शामिल करने पर) पर जोर दिए बगैर कुछ ठोस चर्चा करें। फिर देखते हैं कि क्या होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि ‘संप्रभुता’ हमारे लिए एक शब्द नहीं बल्कि ‘संकल्प’ है, हम शपथ लेते हैं कि संप्रभुता की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है और हम अपनी एक इंच भूमि भी किसी और के हाथों में नहीं जाने देंगे। उनके लिए भी एक बाध्यता है अत: एक निश्चित परिभाषा पर आने की जरूरत है जिसमें दोनों पक्षों के मुद्दों का समाधान निहित हो।
सरमा ने कहा कि इस समस्या का तत्काल कोई समाधान नहीं है लेकिन समय के साथ यह मिल जाएगा। उन्होंने कहा कि वह आशान्वित हैं हालांकि इन मुद्दों पर कुछ भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। वार्ता में धीमी प्रगति हुई है, माहौल अनुकूल है लेकिन जैसे जैसे बात आगे बढ़ती है यह अलग ही रूप ले लेती है। इसलिए इसे (वार्ता के जरिए हल) लेकर कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है लेकिन हम आशा बनाए रख सकते हैं और प्रार्थना कर सकते हैं।
सरमा ने दस मई को शपथ लेने के बाद उल्फा (आई) से शांति वार्ता के लिए आगे आने और राज्य में तीन दशक से भी अधिक समय से चली आ रही उग्रवाद की समस्या का हल निकालने की अपील की थी। राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) की वर्तमान स्थिति के बारे में सवाल पर सरमा ने कहा कि इसके राज्य समन्वयक ने उच्चतम न्यायालय में दस्तावेज के पुन: सत्यापन एवं इसे पुन: जांचने के लिए याचिका दायर की है। 
उन्होंने कहा कि संभवत: याचिका पर सुनवाई में कोविड हालात के चलते विलंब हो रहा हो लेकिन याचिका दायर की जा चुकी है और इसपर सुनवाई भी होगी। उल्लेखनीय है कि 31 अगस्त 2019 को प्रकाशित अंतिम एनआरसी में 19 लाख से अधिक लोगों के नाम शामिल नहीं थे। राज्य की भाजपा सरकार समेत कई पक्षकारों ने इसे दोषपूर्ण बताया था और इसके खासकर बांग्लादेश से लगते जिलों में पुन: सत्यापन की मांग की थी।
कई समुदायों द्वारा अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग को मुख्यमंत्री ने जटिल मुद्दा बताया और कहा कि इसका हल जनजातीय समुदायों के बीच से ही निकलेगा। सरमा ने कहा कि जिस किसी समुदाय को जनजाति का दर्जा दिया जाता है तो अन्य जनजातीय समुदाय इसका विरोध करने लगते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘मैं उनके बीच संघर्ष नहीं चाहता। हमें इन मुद्दों का हल जल्दबाजी में नहीं बल्कि विवेकपूर्ण तरीके से निकालना होगा।’’
इस मुद्दे पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने सरमा की अगुवाई में मंत्रियों का समूह बनाया था। तिनसुकिया जिले में कोयला खनन के मुद्दे पर मुख्यमंत्री ने कहा कि क्षेत्र में जैव विविधता की रक्षा करने की जरूरत है लेकिन इसके साथ ही खनन पर भी कई लोगों की आजीविका टिकी है। पर्यावरणविद खनन का विरोध कर रहे हैं।

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