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शरद पवार का ‘झुलसाता’ बयान

ऐसा लग रहा है जैसे भारतीय राजनीति में विपक्षी खेमा ‘वीरों’ से खाली हो चुका है और कोई ऐसा रणबांकुरा नहीं है जो अपने तेजोदीप्त ‘शब्द वाणों’ से सत्तारूढ़ दल भाजपा के शूरवीरों को निशाने पर ले सके।
 

ऐसा लग रहा है जैसे भारतीय राजनीति में विपक्षी खेमा ‘वीरों’ से खाली हो चुका है और कोई ऐसा रणबांकुरा नहीं है जो अपने तेजोदीप्त ‘शब्द वाणों’ से सत्तारूढ़ दल भाजपा के शूरवीरों को निशाने पर ले सके। जिसे देखो वही अपने तरकश से ऐसे तीर छोड़ रहा है जो पलट कर उसी के सीने पर वार कर रहे हैं। इस कड़ी में कांग्रेस के कई नेताओं के बाद ताजा-ताजा नाम राष्ट्रवादी कांग्रेस के पुरोधा माननीय शरद पवार का भी जुड़ गया है जिन्होंने पाकिस्तान के बारे में ऐसा बयान दे डाला कि पूरे मराठावंश की भुजाएं ‘फड़कने’ लगें। 
दुनिया जानती है कि पाकिस्तान का निर्माण ही 1947 में केवल इसलिए कराया गया था जिससे 20वीं सदी की द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बदलती वैज्ञानिक दुनिया में साम्राज्यवाद से मुक्ति पाने वाले नव स्वतन्त्र देश भारत की ‘गर्भित’ शक्ति को नियन्त्रण में रखा जा सके। संयुक्त भारत पर दो सौ साल तक राज करने वाले अंग्रेज अच्छी तरह जानते थे कि जब 1756 में लार्ड क्लाइव ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पलाशी के मैदान में देशद्रोही ‘मीरजाफर’ को पैदा करके छल से हराया था तो विश्व व्यापार में भारत का हिस्सा 25 प्रतिशत के लगभग था। अतः भारत से जाते-जाते उन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना पैदा करके उस बचे-खुचे भारत को भी दो भागों में बांट डाला जिसे बीसवीं सदी के शुरू होते ही उन्होंने पहले ही कई टुकड़ों में विभाजित कर डाला था। 1919 तक श्रीलंका भारत में था। 1935 तक म्यामांर (बर्मा) भारत में था और 1947 तक पाकिस्तान व बांग्लादेश भारत के ही हिस्से थे। इस इतिहास को कौन माई का लाल बदल सकता है। 
अतः हिन्दू-मुस्लिम रंजिश को आधार बनाने की रणनीति लागू करके अंग्रेजों ने वह काम कर डाला जिसे 1947 में ही ‘मौलाना आजाद और मुहम्मद अली करीम भाई चागला’ जैसे मुस्लिम रहनुमाओं ने ‘कुफ्र’ तक करार दिया था और कयामत यह थी कि पाकिस्तान को तामीर करने की सबसे ज्यादा मुखालफत कश्मीरी अवाम ने ही की थी। अतः आज पाकिस्तान जिस तरह कश्मीर को लेकर ‘फसाद’ खड़ा करने पर उतारू हो रहा है, उसे देखते हुए अगर कोई भी हिन्दोस्तानी नेता उसके हक में एक लफ्ज भी बोलता है तो वह सवा करोड़ हिन्दोस्तानियों के दिल में ‘तीर’ की तरह गड़ जाता है। शरद पवार तो देश के रक्षामन्त्री तक रह चुके हैं और वह अच्छी तरह जानते हैं कि पाकिस्तान की नीयत क्या है?
सिर्फ हिन्दू विरोध को अपना ईमान बनाने वाले पाकिस्तानी सियासतदानों ने अपने मुल्क की फौज के हाथों में अपनी अवाम का भाग्य सौंपा हुआ है और इस काम को पाकिस्तानी नामुराद फौज ने इस तरह से किया है कि इन दोनों मुल्कों के बीच कभी दोस्ती का माहौल बन ही न सके क्योंकि ऐसा होते ही ‘पाकिस्तान’ के भीतर ही वह ‘हिन्दोस्तान’ पैदा हो जायेगा जिसे कभी ‘अकबर महान’ से लेकर ‘महाराजा रणजीत सिंह’ ने संवारा था। अंग्रेजों की यही सबसे बड़ी साजिश थी कि हिन्दोस्तान की उस ‘साझा विरासत’ को बांट दिया जाये जिस पर भारत की बुनियाद रखी हुई है। दुर्भाग्य से यही काम पिछले सत्तर सालों से पाकिस्तान के हुक्मरान बड़ी बेदर्दी और बेरुखी से करते आ रहे हैं और इस काम के लिए जम्मू-कश्मीर को उन्होंने ढाल बना रखा है।
शायद शरद पवार भूल गये हैं कि 1994 में जब भारत की संसद ने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया था कि सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर (पाक के कब्जे वाले हिस्से समेत) भारत का अटूट अंग है तब वह बेशक रक्षामन्त्री की कुर्सी खाली करके महाराष्ट्र के मुख्यमन्त्री बना दिये गये थे परन्तु जम्मू-कश्मीर में सेना को उनके रक्षा मन्त्रित्वकाल ही में घाटी में तैनात किया गया था। यह सब इसी वजह से था क्योंकि तब पाकिस्तानी दहशतगर्दों ने कश्मीर में अपना खूनी खेल खुलकर खेलना शुरू कर दिया था मगर असली मुद्दा यह है कि पाकिस्तान अंग्रेजों ने ‘खैरात’ में दिया था, ‘हक’ की बुनियाद पर नहीं क्योंकि महात्मा गांधी ने आजादी मिलने से पहले ही साफ कर दिया था कि अंग्रेजों से आजाद भारतीयों के भारत में हर हिन्दोस्तानी के बराबर के अधिकार होंगे और उसके आत्मसम्मान के साथ किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जायेगा लेकिन इसके खिलाफ पाकिस्तान ने अपनी हुकूमत का कानून ही आदमी की अजमत और आत्मसम्मान को गिरवी रखकर बनाया इसलिए शरद पवार किस पाकिस्तान की बात करते हैं कि उनका वहां जाने पर बहुत सम्मान होता है? 
पाकिस्तान के बारे में मौजूदा मोदी सरकार क्या गलत बयानी कर रही है और किस प्रकार का भ्रम फैला रही है? क्या यह हकीकत नहीं है कि पाकिस्तान ने सरहद पर अमन-चैन बनाये रखने के अपने वादे को हर दौर में तोड़ा है जिसकी गवाह  भारत के सैनिकों की शहादत की लम्बी कहानी और फेहरिस्त है।सवाल पाकिस्तानी अवाम का नहीं है बल्कि वहां की हुकूमत का है। वहां के सिन्ध, बलूचिस्तान व खैबर पख्तूनख्वा राज्यों की अवाम तो पाकिस्तानी हुकूमत के खिलाफ ही बगावती तेवरों में भरी बैठी है, ऐसा ‘बेनंग-ओ-नाम’ पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर की अवाम के बारे में किस मुंह से बात कर सकता है? और उसकी आवाज की कीमत क्या है?
इसलिए बहुत जरूरी है कि भारत की राजनीति में जो भी पार्टियां और नेता विपक्ष में हैं वे वक्त की नब्ज को पहचानते हुए अपने ‘राष्ट्रधर्म’ का पालन करें और लोगों को बतायें कि पाकिस्तान भारत के सीने पर रखा हुआ ऐसा ‘पत्थर’ है जो इन दोनों मुल्कों की अवाम की तरक्की में सबसे बड़ा कांटा है। यह अपने वजूद को बचाये रखने के लिए ही शुरू से भारत से दुश्मनी की राह पर चल रहा है वरना लाहौर और अमृतसर के बीच में दूरी ही कितनी है, सिर्फ 20 मील! इस मुल्क का वजीरेआजम आज जो तेजाबी जबान बोल-बोलकर पूरे माहौल को जिस तरह खारिश से भर रहा है, वह न बोलता अगर इस हकीकत को समझ लेता कि पाकिस्तान की दरो-दीवार पर भी ‘वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली’ जैसे न जाने कितने जांबाज सिपाहियों की शान में कसीदे कढे़ हुए हैं
फिर बेखुदी में भूल गया राह-ए-कूए यार
जाता वर्ना इक दिन अपनी खबर को मैं

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