पटना : बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में चमकी बुखार को लेकर हर गांव-कसबे के लोग सदमे में हैं। अगर घर का कोई बच्चा बीमारी पड़ जाता है तो अस्पताल की ओर भागते हैं। उनके माता-पिता सोंचते हैं कि मुजफ्फरपुर जैसा चमकी बुखार तो नहीं हो गया। इस बुखार से कितने बच्चे मौत के जाल में समा गये। मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार के भूत से डर इतना हो गया है कि लोग सदमे में हैं। इधर जिला कलेक्टर भी गर्मी से बचने के लिए 144 धारा लगा दिया है। यह बीमारी 1994 में ही मिला था। मगर आज तक जमीन पर काम नहीं केवल फरमान ही जारी हुआ। जबकि इस बीमारी को रोकने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार तथा स्वास्थ्य टीम भी अनेकों काम कर चुके हैं। एक जमाने में मुजफ्फरपुर में कालाजार की बीमारी पायी जाती थी जिसे दूर किया गया, लेकिन अब चमकी बुखार आ गया।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बीमारी से निपटने के लिए अमेरीका और जापान का भी दौरा होता रहा, मगर कुछ हासिल नहीं हुआ। स्वास्थ्य विभाग इलाज के नाम पर भगवान पर भरोसा कर रहा है कोई भी डॉक्टर से पूछे तो कहेंगे बारिश होने पर बीमारी समाप्त हो जायेगी। जबकि डॉक्टरों के पीछे लाखों रुपये सरकार खर्च करती है। पिछले बार भी केन्द्रीय स्वास्थ्य डा. हर्षवद्र्धन भी जायजा लेकर गये, उन्होंने भी आश्वासन दिया, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं हुआ। केन्द्रीय मंत्री हर्षवद्र्धन के दोबारा बिहार के मुजफ्फरपुर में दौड़ा हुआ उनके साथ राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे थे। मगर स्थिति ज्यों का त्यों है। इंसेफेलाइटिस रोग से निबटने के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया फिर भी मौतें जारी है। मात्र मुजफ्फरपुर के एक अस्पताल में लगभग 130 बच्चे सरकारी आंकड़ा के अनुसार मर गये। बहुत बच्चों की मौत रास्ते में हो गयी। जबकि दूसरा आंकड़ा 2000 के लगभग बता रहा है।
लोगों का कहना है कि टीका लगाने के लिए 100 करोड़ रुपया खर्च किया। लेकिन टीका नहीं लगाया गया, जिसके चलते बीमारी थम नहीं रहा। जब गोरखपुर में बचाव के लिए टीकाकरण स फलतापूर्वक हो सकता है तो मुजफ्फरपुर में क्यों नहीं? अस्पताल में बेड कम होने के कारण हर बेड पर चार बच्चे लेटे हुए हैं। इधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मुजफ्फरपुर दौरा पर गये जहां उन्हें भी लोगों का विरोध का सामना करना पड़ा। बिहार में नल जल योजना भी टांय-टांय फीस है जल मिनार पर पानी नहीं पहुंच रहा है। बिहार में पानी का लेयर इतना नीचे चला गया कि पानी निकालना दुभर हो गया है। नदी में बालू निकालने के लिए इतना गड्ढा किया गया कि नीचे मिट्टी दिखने लगा है।
बोधगया का फगुनी नदी जहां जहां गया है वहां भी सिर्फ मिट्टी ही दिखाई दे रहा है। बालू बेचकर लोग करोड़पति हो रहे हैं मगर पर्यावरण को कैसे बचाना है लोगों को चिंता नहीं है। पेड़ कम लगाना है और अधिक काटना है। अगर बिहार में पुराना परंपरा जगह कुआ का योजना शुरू कर दिया जाये तो ल ोगों को शुद्ध पेयजल मिलेगा, कुंआ से पटवन भी होगा और शुद्ध पीने को पानी भी मिलेगा। लेकिन ये सभी योजना बंद पड़े हैं।
अगर हर मुहल्ले में 20 फीट का कुआ खोदकर लोगों को बीच पानी का अकाल नहीं पड़ेगा। बालू, प्लास्टिक बोतल, घर नाला में आलीशान बनाना, पर्यावरण से खेलना, आने वाले दिनों में मानव को इसका मुकाबला करना पड़ेगा। पर्यावरण को नुकसान करने वाला सबसे बड़ा दुश्मन मनुष्य ही है।
देर सबेर स्वास्थ्य विभाग मन में निश्चय कर ले कि जो योजना गरीबों के लिए आया है उस पर ध्यान रखे तो बिहार का अस्पताल पांच सितारा होटल से कम नहीं होगा। मगर कफन तक भी लूटे जा रहे हैं अस्पताल में लोगो को दवा नहीं मिल रही है गरीब करे तो क्या करे? मोदी सरकार एशिया का सबसे बड़ा योजना आयुष्मान भारत योजना केवल पक्के मकान वाले को ही मिल रहा है झोपड़ी में रहने वाले जैसे थे वैसे हीहैं। इस पर भी केन्द्र सरकार को ध्यान देना चाहिए। स्वास्थ्य शिक्षा और मकान लोगों को सही ढंग से मिल जाये तो फिर भारत अपने आप आगे बढ़ जायेगा।