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ट्विटर की बेजा हरकतें

ट्विटर भारत में जिस राह पर चल रहा है उसका एक ही अर्थ निकलता है कि वह इस देश की अन्दरूनी राजनीति में ऐसा खिलाड़ी बनना चाहता है

ट्विटर भारत में जिस राह पर चल रहा है उसका एक ही अर्थ निकलता है कि वह इस देश की अन्दरूनी राजनीति में ऐसा  खिलाड़ी बनना चाहता है जिसके हाथ में हर राजनीतिक दल की नस दबी रहे। मगर माफ कीजिये इस देश में यह कभी नहीं हो सकता कि कोई विदेशी या बहुराष्ट्रीय कम्पनी अपने कारोबार के नाम पर मुल्क की सियासत में भी दखल देने लगे। बेशक भारत की अर्थव्यवस्था अब पूंजी मूलक व बाजार मूलक हो चुकी है और विदेशी कम्पनियों को इसमें कारोबार करने की छूट है मगर भारत की संवैधानिक व्यवस्था किसी भी गैर मुल्की को इसके अन्दरूनी मामले में दखल देने की इजाजत नहीं देती है। (हालांकि यह भी तथ्य है कि भारत में विदेशी कम्पनी की परिभाषा में एेसा परिवर्तन 2016 के बजट में किया गया जिससे परोक्ष रूप से विदेशी कम्पनियां सियासत को प्रभावित कर सकती हैं परन्तु यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है)। 
 सबसे पहले ट्विटर को यह समझना चाहिए कि वह  विचारों के सम्प्रेषण में केवल एक मध्यस्थ की भूमिका निभाती है। भारत के संविधान के अनुसार उसे एेसे विचारों को फैलाने या प्रसार करने की इजाजत नहीं दी जा सकती जिनका उद्देश्य समाज में किन्हीं दो वर्गों के बीच नफरत या हिंसा फैलाने से हो परन्तु किसी वर्ग के उत्पीड़न या उस पर किये गये अत्याचारों के प्रति समाज में जागरूकता फैलाने वाले विचारों को नहीं रोका जा सकता। भारत का संविधान हर धर्म व सम्प्रदाय और समुदाय व जाति या वर्ग के  स्त्री-पुरुष लोगों को एक समान अधिकार देता है। अतः इनमें से किसी के विरुद्ध भी यदि कहीं कोई अत्याचार या अनाचार अथवा उत्पीड़न होता है तो उसके खिलाफ जनमत जागृत करना राजनीतिक दलों से लेकर सामाजिक संगठनों व कार्यकर्ताओं का लोकतान्त्रिक अधिकार है। इसके अलावा भारत में जितने भी संविधान सम्मत राजनीतिक दल हैं सबकी अलग-अलग विचारधारा है। सभी को अपनी विचारधारा के अनुसार अपना मत प्रकट करने का संवैधानिक अधिकार है। मगर ट्विटर कभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख का अकाऊंट बन्द कर देता है तो भारत के उपराष्ट्रपति का और यहां तक की सूचना व प्रौद्योगिकी मन्त्री का भी। 
सवाल पैदा होता है कि ट्विटर आखिर है क्या बला जो भारत के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं का अकाऊंट भी बन्द करने की हिमाकत कर रहा है और उन्हें कानून पढ़ा रहा है।  ट्विटर ने श्री राहुल गांधी के साथ ही कांग्रेस नेताओं सुरजेवाला व अजय माकन का भी अकाऊंट स्थगित कर दिया। क्या अब ट्विटर इस देश के नेताओं को समझायेगा कि उन्हें किस विषय पर किस तरह विचार व्यक्त करने चाहिएं। श्री राहुल गांधी ने दिल्ली में ही एक नौ वर्षीय दलित बच्ची के साथ हुई दुर्दान्त व भयानक बलात्कार की घटना के बाद उसके माता-पिता को सांत्वना देते हुए ट्वीट किया था और न्याय दिलाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी। उससे पहले वैसे ही चित्र के साथ अनुसूचित आयोग की तरफ से भी ट्वीट किया गया था। अतः चित्र पर ट्विटर को कोई आपत्ति नहीं थी। मगर श्री राहुल गांधी का अकाऊंट इसी आधार पर स्थगित कर दिया गया। इससे साफ जाहिर है कि ट्विटर भारत की राजनीति में अपना दखल देने की कोशिश कर रहा है। इससे पहले संघ प्रमुख के अकाऊंट को भी उसने स्थगित करते हुए ऊल-जुलूल तर्क दिये थे। कहने का मतलब यह है कि ट्विटर को अपनी हैसियत समझनी होगी और फिर बाद में देश के प्रमुख नेताओं और राजनीतिक दलों के गिरेबान तक पहुंचने की जुर्रत करनी होगी। यदि ट्विटर को भारत में कारोबार करना है तो उसे इस देश की राजनीति से दूर रहना होगा और अपनी भूमिका मात्र एक मध्यस्थ या ‘प्लेटफार्म’ रखनी होगी। 
भारत की जनता में इतनी अक्ल है कि वह फैसला कर सके कि कौन नेता सही बोल रहा है और कौन गलत। इसका फैसला कोई कारोबारी कम्पनी नहीं कर सकती। ट्विटर इस देश के लोगों को नासमझ समझने की गलती न करे क्योंकि लोकतन्त्र इनकी रगों में लहू की मानिन्द दौड़ता है। ये वो लोग हैं जो जमीन सूंघ कर सियासत का फैसला लिख देते हैं। अतः ट्विटर को भारत की बहुदलीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था का पहले गहन अध्ययन करना चाहिए और बाद में इसके राष्ट्रीय नेताओं के लिखे से छेड़छाड़ करनी चाहिए। इस देश में चाहे सत्ताधारी दल का नेता  हो या विपक्ष का नेता हो किसी की आवाज कोई बन्द नहीं कर सकता, केवल अपने-अपने तर्कों से दोनों पक्ष अपना पलड़ा भारी कर सकते हैं। मगर इस बीच खबर आयी है कि ट्विटर भारत में अपना निदेशक नियुक्त नहीं करेगा। इसके क्या मायने निकलेंगे यह आने वाला वक्त ही बतायेगा।

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