सार्क की विफलता और भारत-पाकिस्तान के आपसी तनाव के बीच बिम्सटेक क्षेत्रीय सहयोग का मंच बन चुका है। हालांकि बिम्सटेक के सात सदस्य देशों में से पांच देश सार्क के सदस्य भी हैं जबकि दो अन्य आसियान के सदस्य हैं। नेपाल में हुई इसकी बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी भाग लिया। बदले क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हालात में बिम्सटेक का महत्व बढ़ गया है। विश्व में लगभग हर कोने में क्षेत्रीय सहयोग एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है, जिसके केन्द्र में क्षेत्रीय विकास व समृद्धि रहा है। क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए भी निरंतर एक ऐसे मंच की तलाश होती रहती है, उसी का उदाहरण है बिम्सटेक। क्योंकि सार्क क्षेत्रीय सहयोग के मामले में आदर्शवादी तरीके से काम करने में विफल रहा है इसीलिए बिम्सटेक उभर आया।
पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देने के चलते भारत ने पाकिस्तान में होने वाले सार्क शिखर सम्मेलन में भाग लेने से इन्कार कर दिया था। पाकिस्तान ने सार्क के मंच को भारत से झगड़े का मंच बनाने के प्रयास किए, तभी से ही सार्क के अस्तित्व आैर अस्मिता पर सवाल उठने शुरू हो गए थे। क्योंकि बिम्सटेक में पाकिस्तान नहीं है इसलिए उसके द्वारा बाधाएं खड़ी करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। भारत की आेर से बिम्सटेक को बढ़ावा दिया गया और सदस्य देशों में आपसी सहयोग का मार्ग प्रशस्त हो रहा है। बिम्सटेक की शुरूआत इन्द्र कुमार गुजराल डाक्ट्रिन के समय से मानी जा सकती है, जिसमें पाकिस्तान को शामिल नहीं करने की बात कही गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल ने साफ संकेत दिया था कि पाकिस्तान अपना असहयोगपूर्ण रवैया छोड़ेगा नहीं तो भारत क्षेत्रीय सहयोग में उसे शामिल नहीं करेगा। इसी पृष्ठभूमि में 6 जून 1997 को बिम्सटेक की नींव पड़ी।
तब से ही पाकिस्तान अलग-थलग पड़ा हुआ है। यह बंगाल की खाड़ी से तटवर्ती या समीपस्थ देशों का संगठन है। इसमें भारत, बंगलादेश, म्यांमार, श्रीलंका, थाइलैंड, भूटान आैर नेपाल शामिल हैं। यह संगठन दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के 7 देशों के लगभग 1.5 अरब लोगों की आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाला समूह है, जो लगभग 22 फीसदी वैश्विक आबादी को दर्शाता है। दरअसल आतंकवाद के चलते भारत और पाकिस्तान के रिश्ते कभी सहज नहीं रहे। पाकिस्तानी आतंकी 2008 में मुम्बई में हमला कर चुके हैं आैर कश्मीर के उड़ी में 2016 को हुए आतंकी हमले के बाद भी वे सेना और सुरक्षाबलों के शिविरों पर हमले जारी रखे हुए हैं। इस स्थिति में भारत उसके साथ आपसी सहयोग की बात कैसे कर सकता है? बिम्सटेक दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्वी देशों को आपस में जोड़ने के लिए एक पुल की तरह काम करता है। कोई भी देश शांति, समृद्धि और विकास के लिए अकेला आगे नहीं बढ़ सकता है। एक-दूसरे से जुड़ी दुनिया में सहयोग आैर सामंजस्य जरूरी है।
बिम्सटेक के सभी देश न केवल कूटनीतिक सम्बन्धों से बल्कि संस्कृति, इतिहास, कला, भाषा, खानपान और साझा संस्कृति के कारण मजबूती से आपस में जुड़े हुए हैं। इसलिए ये सभी देश आपसी सहयोग बढ़ा सकते हैं। यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि यह आपसी सम्पर्क बढ़ाने का बड़ा मौका है। व्यापारिक सम्पर्क, आर्थिक सम्पर्क, परिवहन सम्पर्क, डिजिटल सम्पर्क आैर जनता से जनता का सम्पर्क बहुत जरूरी है। क्षेत्रीय सम्पर्क बढ़ेगा ताे यह क्षेत्र भारत के ‘नेबरहुड फर्स्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीतियों के मिलाप का बिन्दू बन जाएगा। प्रधानमंत्री ने आतंकवाद, सीमापार के अपराधों और नशीले पदार्थों की तस्करी का मुद्दा भी उठाया और आह्वान किया कि ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए सभी को एकजुट होना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि बिम्सटेक को मजबूत बनाना इसलिए भी जरूरी है कि अगर यह संगठन मजबूत हुआ तो इसके सदस्य देशों में चीन का प्रभाव कम करने में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सम्मेलन से इतर बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेेख हसीना, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना आैर नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी से द्विपक्षीय मुलाकात की। अलग-थलग पड़े पाकिस्तान ने भी सैंट्रल एशियाई देशों में अपने प्रतिनिधियों को भेजा था तथा ईरान के साथ पाकिस्तान ने सम्बन्ध बेहतर बनाने की दिशा में काफी दिलचस्पी दिखाई थी। पाकिस्तान भी सार्क का विकल्प तैयार करना चाहता था लेकिन उसे कोई सफलता नहीं मिली। इसके लिए पाकिस्तान की घरेलू परिस्थितियां आैर ईरान-अमेरिका टकराव बड़ी वजह रही। इसलिए सार्क कहीं खो गया, पाकिस्तान को विफलता ही हाथ लगी आैर भारत की कूटनीति काम आई। भारत सार्क के जरिये दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग और व्यापार कर रहा था, मगर बिम्सटेक के बाद दक्षिण पूर्वी एशिया में भी भारत ने आपसी सहयोग और व्यापार को आगे बढ़ाया है जबकि पाकिस्तान अलग-थलग पड़ चुका है।