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हवा हवाई साबित हुए विपक्षी एकता के दावे

लोकसभा चुनाव-2024 की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। सत्तारूढ़ दल के साथ ही विपक्षी पार्टियां भी अपने-अपने स्तर पर रणनीतियां बनाने में जुट गई हैं। चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कवायद के तहत इंडिया गठबंधन का गठन किया गया। इससे पहले कि इंडिया गठबंधन उड़ान भर पाता, उसकी हवा निकाल दी गई। बड़ा सवाल यह उठता है कि विपक्षी दलों का गठजोड़ चुनाव से पहले ही क्यों धराशायी होता दिख रहा है?
इंडिया गठबंधन को बड़ा झटका लगा जब जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल का दामन तोड़ते हुए भाजपा के साथ हाथ मिला लिया । बिहार में नीतीश कुमार की नई सरकार बन चुकी है। इंडिया गठबंधन में मुख्य सूत्रधार रहे नीतीश कुमार ने विपक्षी गठबंधन को यूं ही अलविदा नहीं कहा है। दरअसल विपक्षी गठबंधन इंडिया के बिहार में बिखराव के लिए राष्ट्रीय जनता दल से ज्यादा कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार है। बदले हालात में कांग्रेस ने नीतीश को खलनायक के रूप में परिभाषित किया है लेकिन इसके लिए अंदर की राजनीति भी कम जिम्मेदार नहीं है। विपक्षी एकता की पहल नीतीश ने ही की थी और अंत का प्रारंभ भी उन्होंने ही किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे चाहे जो आरोप लगाएं, मगर सच्चाई यह भी है कि विपक्षी गठबंधन इंडिया के बिहार में बिखराव के लिए राजद से ज्यादा कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जिम्मेदार है। उसने प्रत्येक कदम पर जदयू समेत तमाम क्षेत्रीय दलों की अनदेखी की।
आजादी के बाद से देश की राजनीति में गठबंधन बनने और टूटने का लंबा इतिहास रहा है। इस बार ‘इंडिया’ का प्रयोग कुछ भिन्न और व्यापक लग रहा था लेकिन दो अलगाव ऐसे घोषित किए गए हैं कि विपक्षी गठबंधन की संभावनाएं प्रभावहीन लगती हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस और पंजाब में भगवंत मान ने आम आदमी पार्टी की ओर से घोषणाएं की हैं कि वे अकेले ही सभी सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा। अलबत्ता उन्होंने ‘इंडिया’ का हिस्सा बने रहने की भी घोषणाएं की हैं। अपने प्रभाव क्षेत्रों के बाहर गठबंधन के मायने क्या हैं? यदि ये घोषणाएं ‘अंतिम’ हैं तो भाजपा की चुनावी संभावनाएं बढ़ सकती हैं।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इंडिया गठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है। विपक्षी गठजोड़ में कांग्रेस एकमात्र ऐसी पार्टी है जो सही मायने में राष्ट्रीय है। इंडिया गठबंधन में शामिल दल का अस्तित्व एक प्रदेश के बाद दूसरे में कहीं नहीं दिखता है लेकिन कांग्रेस की मौजूदगी कई प्रदेशों में है। इसे देखते हुए गठबंधन में शामिल दल कांग्रेस पर सीट बंटवारे को लेकर लगातार दबाव बना रहे थे। इसके बावजूद कांग्रेस की ओर से कोई सकारात्मक रुख नहीं दिखाया जा रहा है। अब इंडिया में बिखराव देखने को मिल रहा है।
शहर बदल-बदल कर कांग्रेस ने अपने नेतृत्व में संयुक्त विपक्ष की पांच बैठकें कीं मगर नतीजा सिफर ही रहा। न सीटें बंटीं और न ही साझा घोषणा पत्र पर काम आगे बढ़ा। नीतीश कुमार की एक बात नहीं मानी गई। विपक्षी गठबंधन का उन्होंने इंडिया के बदले भारत नाम सुझाया मगर उसे खारिज कर दिया गया। बिहार की तरह राष्ट्रीय स्तर पर जातिवार गणना कराने का जिक्र तक करना भी जरूरी नहीं समझा गया। दरअसल, विपक्षी एकता के प्रथम प्रयास के साथ-साथ बिखराव का प्लॉट भी तैयार होता गया। जनता दल यूनाइटेड का आरोप है कि कांग्रेस की नीयत में प्रारंभ से ही खोट था तभी तो पटना में गत वर्ष 13 जून को प्रस्तावित संयुक्त विपक्ष की पहली बैठक में राहुल गांधी एवं खड़गे ने जाने से आनाकानी की तो इसे 23 जून करना पड़ा।
बिहार में भाजपा का साथ छोड़कर नीतीश ने 10 अगस्त 2022 को राजद व कांग्रेस समेत सात दलों की सरकार बनाई थी और उसी दिन संकेत दिया था कि कांग्रेस को साथ लेकर विरोधी दलों का मोर्चा बनाएंगे। कांग्रेस को अलग करके तीसरे मोर्चे की तैयारी में जुटे क्षेत्रीय दलों से नीतीश ने देवीलाल की जयंती पर हरियाणा के फतेहाबाद में 25 सितंबर 2022 को हाथ जोड़कर आग्रह किया था कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव नहीं। उसी दिन उन्होंने लालू के साथ दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात की और विपक्षी एकता का सूत्रपात किया।
इसके बाद उन्होंने घूम-घूम कर क्षेत्रीय दलों को एक करने का प्रयास प्रारंभ कर दिया। उन्होंने केसीआर के तीसरे मोर्चे के प्रयासों पर पानी फेर दिया परंतु कांग्रेस ने नीतीश को इस लायक भी नहीं समझा कि उन्हें संयोजक बना दे या कोई जिम्मेदारी सौंप दे। राहुल का वह बयान भी नीतीश को चुभता रहा जिसे उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के प्रथम चरण में क्षेत्रीय दलों के बारे में दिया था। राहुल ने कहा था कि क्षेत्रीय दलों के पास कोई विचारधारा नहीं है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता ‘इंडिया’ की भीतरी राजनीति से क्षुब्ध थीं। उनके प्रत्येक प्रस्ताव को खारिज किया गया। गठबंधन में वाममोर्चे के नेताओं का प्रभाव ज्यादा है और वे हरेक बैठक को ‘तारपीडो’ करते रहे हैं। ममता का आरोप है कि राज्य में कांग्रेस की रैलियां की जा रही हैं। उनके खिलाफ ज़हर उगला जा रहा है। राहुल गांधी की ‘न्याय यात्रा’ की न तो उन्हें जानकारी दी गई और न ही कोई आमंत्रण मिला। बंगाल में ‘न्याय यात्रा’ और राहुल गांधी के जो पोस्टर लगाए गए थे, ममता की घोषणा के बाद उन्हें फाड़ना शुरू कर दिया गया। दोनों दलों के बीच ज़हरीला अलगाव इस हद तक पहुंच चुका है। अंततः ममता ने फैसला किया कि उनकी तृणमूल कांग्रेस पार्टी कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी और सभी 42 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। हालांकि कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बयान देकर पार्टी का नरम रुख जताया कि ममता के बिना ‘इंडिया’ गठबंधन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। बहरहाल तृणमूल कांग्रेस बंगाल की सबसे मजबूत राजनीतिक ताकत है। 2019 के आम चुनाव में 43 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल कर उसके 22 सांसद जीते थे, जबकि कांग्रेस के 5.5 फीसदी वोट के साथ मात्र 2 सांसद ही संसद तक पहुंच पाए थे। वाममोर्चे को करीब 7.5 फीसदी वोट मिले थे लेकिन सांसद के तौर पर ‘शून्य’ ही नसीब हुआ। भाजपा को 40 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे और उसके पहली बार 18 सांसद चुने गए।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इंडिया गठबंधन को झटका देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। अखिलेश ने पिछले दिनों यह घोषणा कर दी कि वह उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 11 सीटें देने को तैयार हैं। दूसरी तरफ देश की सबसे पुरानी पार्टी सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले प्रदेश में ज्यादा सीटें मिलने की उम्मीद लगा रखी थी। सपा के रवैये से मनमुटाव की स्थिति पैदा हो गई है। सपा और रालोद के बीच सात सीटों को लेकर समझौता हो चुका है। बसपा एनडीए और इंडिया किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं है।
दरअसल विपक्षी गठबंधन अपने अस्तित्व के करीब 7 माह के दौरान बैठकें और हो-हल्ला तो खूब मचाया लेकिन सीटों के बंटवारे, सचिवालय, संयोजक, साझा न्यूनतम कार्यक्रम, साझा नारा, झंडा आदि पर आज तक सहमत नहीं हो सका है। अब तो अलगाव की नौबत भी आ गई है। इन सबसे बेफ्रिक राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा में व्यस्त हैं। जैसे- जैसे उनकी यात्रा आगे बढ़ रही है वैसे-वैसे इंडिया गठबंधन का कुनबा बिखरता जा रहा है। लोकसभा चुनाव में ज्यादा समय बचा नहीं है। ऐसे में बिखरा हुआ विपक्ष बीजेपी का मुकाबला कैसे करेगा यह बड़ा सवाल है।

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