नेपाल-चीन की नजदीकियां? - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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नेपाल-चीन की नजदीकियां?

जहां एक तरफ दुनिया के तमाम देश चीन की विस्तारवादी और आक्रामक नीति के खिलाफ लामबंद हो गए हैं, वहीं भारत का पड़ोसी देश नेपाल चीन के करीब आ रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने अपने चीन दौरे के दौरान अपने समकक्ष चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग से मुलाकात की तथा व्यापार, सड़क सम्पर्क सूचना प्रौद्योगिक सहित अन्य क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। प्रचंड की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मुलाकात हुई जिसमें दोनों देशों के संबंधोें को मजबूत बनाने की बात कही गई। पिछले साल दिसम्बर में प्रधानमंत्री बनने के बाद केपी ओली के नेतृत्व वाली चीन समर्थक नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी) से राजनीतिक रूप से दूरी बनाने वाले प्रचंड ने भारत और अमेरिका की यात्रा के बाद अपनी पहली चीन यात्रा की है। चीन जाने से पहले प्रचंड ने भारत और नेपाल के बीच बिजली को लेकर बड़े समझौते का ऐलान ​किया था। भारत और नेपाल बिजली के व्यापार को बढ़ाने पर सहमत हुए हैं और इसके लिए कई ट्रांसमिशन कॉरिडोर खोले जाएंगे। इस समझौते से ड्रैगन को काफी मिर्ची लगी थी।
चीन को भारत और नेपाल के बीच दोस्ती कभी रास नहीं आई। चीन को यह डर सताता रहता है कि नेपाल के बहाने भारत और अमेरिका उसे घेरने की कोशिश में हैं। चीन ने प्रचंड की अगवानी में पलक पांवड़े बिछा रखे थे। प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने के बाद चीन को उम्मीद थी कि वह कम्युनिस्ट होने के कारण पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली की तरह ही बििजंग का हर मुद्दे पर समर्थन करेंगे लेकिन प्रचंड ने चीनी नेतृत्व को साफ-साफ कह दिया कि उनका देश चीन के सैन्य गठबंधन जीएसआई में शामिल नहीं होगा। चीन के जीएसआई काे ​एशियाई नाटो कहा जाता है, जो वह भारत-अमेरिका की सदस्यता वाले क्वाड को टक्कर देने के लिए बना रहा है। चीन नेपाल पर इसमें शामिल होने के लिए दबाव डाल रहा है। हालांकि चीन दावा कर रहा है कि नेपाल ने उसे हर मुद्दे पर समर्थन दे दिया है। नेपाली नेतृत्व में अभी तक इस संबंध में भ्रम की स्थिति है लेकिन प्रचंड के दो टूक संदेश से चीन परेशान जरूर है। प्रचंड ने अपने 9 महीने के कार्यकाल में यह दिखा दिया है कि वह मंझे हुए राजनेता हैं, जो जानता है कि नेपाल जैसे छोटे और पहाड़ी देश को वैश्विक महाशक्तियों के बीच संतुलन के साथ कैसे रखना है।
चीन का मुखपत्र कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स को दिए इंटरव्यू में प्रचंड ने भारत-नेपाल संबंधों पर खुलकर बात की है। उन्होंने यह भी बताया है कि नेपाल के लिए चीन के साथ रिश्ते भी काफी मजबूत हैं। प्रचंड ने कहा कि चीन और भारत दोनों के साथ नेपाल के संबंध अच्छे पड़ोसी, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और गुटनिरपेक्ष विदेश नीति के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होते हैं। नेपाल चीन और भारत के साथ स्वतंत्र रूप से व्यवहार करता है। एक पड़ोसी के साथ हमारा रिश्ता दूसरे के साथ हमारे रिश्ते से प्रभावित नहीं होगा, न ही हम एक-दूसरे के खिलाफ खेलना चाहेंगे। प्रचंड ने कहा कि नेपाल के दोनों पड़ोसी ​घनिष्ठ मित्र और महत्वपूर्ण विकास भागीदार हैं। हम द्विपक्षीय आधार पर दोनों पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों को विकसित करना जारी रखेंगे। यदि दोनों में से किसी के साथ कोई मतभेद उत्पन्न होता है तो ऐसे मुद्दों को मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से हल किया जाएगा। हमारे दोनों निकटतम पड़ोसियों के साथ हमारे संबंध सुसंगत और स्पष्ट हैं। हम उनके साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहते हैं और साथ ही हम अपने दोनों पड़ोसियों के बीच भी मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्मक संबंध देखना चाहते हैं।
भारत और नेपाल के संबंध भले ही उतार-चढ़ाव वाले हों लेकिन नेपाल भारत को कभी नजरंदाज नहीं कर सकता। भारत- नेपाल के लोगों में रोटी-बेटी का रिश्ता है। जहां तक चीन के बीआरआई प्राजैक्ट का सवाल है, नेपाल भले ही उसमें शामिल होने की बात करता है लेकिन अभी तक इस परियोजना पर आगे नहीं बढ़ा जा रहा। बीआरआई को लेकर नेपाल और चीन में भी विवाद है। दरअसल चीन नेपाल के बुनियादी ढांचे में लगातार निवेश करता रहा है। केपी ओली के शासन में तो नेपाल पूरी तरह से चीन की गोद में बैठ गया था और चीन ने नेपाल के सरकारी कामकाज में सीधा हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था। चीन ने कई मामलों में नेपाल काे मूर्ख भी बनाया है। भारत का डर दिखाकर चीन ने नेपाल के कई क्षेत्रों पर कब्जा भी कर लिया था, जिसका नेपाल की जनता ने कड़ा विरोध ​किया था। नेपाल भौगोलिक, सांस्कृ​तिक, धार्मिक और राजनीतिक जुड़ाव के कारण भारत के ज्यादा करीब है न कि चीन के। चीन से क्नैक्टीविटी न होने के कारण नेपाल के ​लिए बाकी दुनिया से सम्पर्क करने का केवल एक ही रास्ता बचता है और वह रास्ता भारत से होकर जाता है। नेपाल के लिए चीन के साथ व्यापार करना काफी महंगा साबित होता है, जबकि भारत की वहां सीधी पहुंच है। फिर भी भारत को चीन-नेपाल की करीबी से सतर्क रहना होगा। प्रचंड का प्लान क्या है? क्या वह वास्तव में संतुलन बनाकर चलेंगे या पलटी खाएंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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