मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पार्टी की कमान संभालने के बाद महागठबंधन के सहयोगी इस बात पर आश्चर्य कर रहे हैं कि क्या यह निर्णय जानबूझकर कुमार के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए लिया गया था ताकि वह एक बार फिर से एनडीए में आ जाएं या इंडिया गठबंधन पर दबाव डालने के लिए या सिर्फ राष्ट्रीय मंच पर सुर्खियां बटोरने के लिए। हालांकि, नीतीश के जद (यू) की कमान संभालने से यह सुनिश्चित हो जाएगा कि इंडिया गठबंधन के संचालन में उनकी प्रमुख भूमिका होगी। ललन सिंह कोई भारी भरकम राजनेता नहीं रहे हैं। उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता, जो नीतीश को प्राप्त है। इससे पहले जद (यू) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अपनाए गए राजनीतिक प्रस्ताव में नीतीश को इंडिया गठबंधन का वास्तुकार बताया गया, उनकी नेतृत्व क्षमताओं पर प्रकाश डाला गया और यह आग्रह किया गया कि ‘गठबंधन में बड़े दलों की अधिक जिम्मेदारी है।’ साथ ही प्रस्ताव में नीतीश को ‘पिछड़ों, अति पिछड़ों, वंचित वर्गों, अल्पसंख्यकों और करोड़ों बेरोजगार युवाओं की आशा” के रूप में भी सराहा गया।
ऐसा प्रतीत होता है कि अपनी अनदेखी से परेशान होकर नीतीश ने विपक्षी गुट में अपना नेतृत्व कायम करने के लिए खुद ही सड़क पर उतरने का फैसला किया है।
के.सी. त्यागी ने कहा कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने फैसला किया है कि नीतीश और पार्टी देशभर में जाति आधारित जनगणना के लिए दबाव बनाने के लिए जनवरी के मध्य से (लगभग उसी समय जब राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा शुरू करेंगे) देशव्यापी अभियान चलाएंगे।’ त्यागी ने कहा, जनवरी के मध्य में, नीतीश जी बिहार की तरह राष्ट्रीय स्तर पर जाति आधारित जनगणना कराने की मांग के लिए झारखंड से एक देशव्यापी अभियान शुरू करेंगे।
बैठक में, पार्टी ने बिहार के बाहर-उत्तर प्रदेश, झारखंड और कुछ अन्य राज्यों (अनिर्दिष्ट) में भी कुछ सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है। बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण को “ऐतिहासिक पहल” करार देने वाला एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। नीतीश के पार्टी मामलों का सीधा नियंत्रण अपने हाथ में लेने को, इस आशंका के बीच कि मौजूदा सहयोगी राजद और दोस्त से दुश्मन बनी बीजेपी, दोनों नीतीश के खेमे में सेंध लगाने की कोशिश कर सकते हैं, जद (यू) के झुंड को बरकरार रखने के उद्देश्य से उठाया गया एक कदम माना जा रहा है।
सीट बंटवारे पर पंजाब कांग्रेस के अलग सुर
सीट बंटवारे को लेकर आप और कांग्रेस के बीच खींचतान काफी बढ़ गई है, क्योंकि कांग्रेस ने पंजाब में 8 और दिल्ली में 3 सीटों की मांग की है। इस संदर्भ में, कांग्रेस आलाकमान ने पंजाब सीएलपी नेताओं, प्रताप सिंह बाजवा और पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी (पीपीसीसी), अमरिंदर सिंह राजा वडिंग के साथ आगामी लोकसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन की संभावना पर चर्चा करने के लिए बैठक की है। इसके उलट कांग्रेस की पंजाब इकाई आप के साथ गठबंधन के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध कर रही है।
विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा है कि पार्टी कार्यकर्ता राज्य में आप के साथ गठबंधन को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं और इशारा किया कि चुनाव कैडर द्वारा लड़ा जाता है। जबकि पार्टी के कुछ नेता कुल 13 सीटों में से कम से कम आठ की मांग कर रहे हैं, जिसमें छह मौजूदा सांसदों की सीटें शामिल हैं – आनंदपुर साहिब से मनीष तिवारी, अमृतसर से जीएस औजला, फतेहगढ़ साहिब से डॉ. अमर सिंह, फरीदकोट से मोहम्मद सादिक, जेएस गिल खडूर साहिब से और लुधियाना से रवनीत सिंह बिट्टू।
यूपी-बिहार में कांग्रेस की राहें नहीं आसान
कांग्रेस बिहार और उत्तर प्रदेश, दोनों में सीट बंटवारे के लिए सक्रिय रूप से चर्चा में लगी हुई है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ने 80 लोकसभा सीटों में से 21 पर जोर देकर एक मजबूत चुनावी रणनीति के लिए कमर कस ली है। वहीं बिहार में, कांग्रेस 40 लोकसभा क्षेत्रों वाले राज्य में 10 से 12 सीटों पर चुनाव लड़ने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के लिए तैयार है। कांग्रेस का लक्ष्य महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक मतदाता आधार वाले निर्वाचन क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति का लाभ उठाना है, जो समाजवादी पार्टी के लिए भी अनुकूल क्षेत्र हैं।
कांग्रेस यूपी की लोकसभा सीटों-रायबरेली, अमेठी, सुल्तानपुर, लखनऊ, मुरादाबाद, बिजनौर, प्रतापगढ़, कानपुर, अलीगढ़, फर्रुखाबाद, झांसी, बाराबंकी, गोंडा, धौरहरा, खीरी, सहारनपुर, बहराइच आदि से चुनाव लड़ने की इच्छुक है। हालांकि, तीन हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस की हालिया हार के मद्देनजर यूपी कांग्रेस के नेताओं ने यूपी में पार्टी को समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में अपेक्षित संख्या में सीटें मिलने को लेकर आशंका जताई है।
– राहिल नोरा चोपड़ा