लाॅकडाऊन का चौथा चरण समाप्त होने को है और देश में कोरोना संभावित संक्रमित लोगों की संख्या डेढ़ लाख से ऊपर पहुंच चुकी है मगर सन्तोष की बात यह है कि इनमें से 70 हजार से ज्यादा लोग भले-चंगे होकर अपने घर जा चुके हैं। दूसरे सभी राज्यों में कोरोना मरीजों की संख्या को देखते हुए पूरे देश में केवल 83 हजार मरीज ही ऐसे हैं जो सक्रिय रूप से संक्रमित हैं। इनमें से चार सौ लोगों में केवल ‘नौ’ ही ऐसे हैं जिन्हें आईसीयू (सघन चिकित्सा केन्द्र) में रखे जाने की जरूरत है और चार सौ में केवल ‘सात’ को ही आक्सीजन सिलेंडर की जरूरत है और आश्चर्यजनक रूप से केवल ‘तीन’ मरीजों को ही वेंटीलेटर पर रखा हुआ है। 27 मई तक के ये आंकड़े इस मायने में चौंकाने वाले हैं कि भारत के चिकित्सा तन्त्र ने कोरोना की भयावहता को क्षीण करने में सफलता प्राप्त कर ली है।
यह स्थिति तब है कि जब शहरों से गांवों की तरफ उल्टा पलायन करने वाले मजदूरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, इससे यह भी सिद्ध होता है कि गांवों में कोरोना के फैलने के खतरे को रोका जा सकता है क्योंकि प्राथमिक इलाज के बाद अथवा कोई भी लक्षण उभरने के बाद मरीज स्वयं को एकान्त में रख कर उपचार करने से भला-चंगा हो सकता है। अतः कोरोना को हौवा बना कर देखने की जो मानसिकता पिछले दो महीनों से चल रही है उस पर अब पूर्ण विराम लगना चाहिए और आम जनता को अपने काम- धंधों की तरफ तेजी से लौटना चाहिए। अब यह सरकार की मुख्य जिम्मेदारी है कि वह ऐसा वातावरण बनाये और लाॅकडाऊन को खुला (ओपन एंडेड) छोड़ दे मगर इसके लिए जरूरी है कि केन्द्र सरकार ‘आपदा प्रबन्धन अधिनियम -2005’ के तहत लागू किये गये लाॅकडाऊन के आदेश को वापस ले और राज्यों को यह जिम्मेदारी दे कि वे अपनी परिस्थितियों के अनुसार इस बीमारी को दूर रखने के प्रयास करें।
बेशक इस तर्क की आलोचना हो सकती है और कहा जा सकता है कि राज्य सरकारों पर यह जिम्मेदारी डालना ज्यादती होगी मगर आज भी राज्य सरकारें ही तो इस समस्या से जूझ रही हैं। जाहिर है कि बीमारों को भला-चंगा करने में विभिन्न राज्यों का स्थापित चिकित्सा तन्त्र ही अन्त में कारगर साबित हो रहा है और वहां कार्यरत चिकित्सा कर्मचारी पूरी निष्ठा के साथ काम कर रहे हैं। हालांकि कुछ स्थानों से लापरवाही की खबरें भी आयी हैं मगर 130 करोड़ के देश में ऐसी घटनाएं होना स्थानीय हालात पर भी निर्भर करता है।
मगर अब सवाल यह है कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटे जिससे शहरों से पलायन भी धीमा हो। फिलहाल लाॅकडाऊन ने पूरे देश को ‘भारत’ और ‘इंडिया’ में जिस तरह बांटा है वह चिन्ताजनक है क्योंकि गरीब आदमी की कमर को लाॅकडाऊन ने पूरी तरह तोड़ कर रख दिया है। हर चार नौकरी पेशा में से एक आदमी को इसी लाॅकडाऊन ने बेकार बना दिया है और रोज कमा कर खाने वालों की गिनती करना बेकार है क्योंकि इस देश में आठ करोड़ के लगभग असंगठित क्षेत्र में मजदूर हैं और चार करोड़ से ज्यादा ठेला, फड़ या फेरी लगा कर माल बेचने वाले लोग हैं। जबकि रिक्शा चलाने वाले अलग हैं छोटे किसानों की संख्या अलग है। यही ‘असली भारत’ है जिसे विकास के फल की प्रतीक्षा है। इन्हीं लोगों के बच्चे सबसे ज्यादा फौज या पुलिस अथवा सुरक्षा बलों में भर्ती होकर देश की सेवा करते हैं। अतः इस भारत को आर्थिक रूप से सक्षम बनाना हर सरकार का प्राथमिक कर्त्तव्य होता है। दुखद यह भी है कि इन्हीं लोगों की जर्जर आर्थिक हालत को लेकर जमकर राजनीति भी हो गई मगर हालात नहीं बदले। ये सभी साहसी और कर्मठ लोग हैं जो बंजर जमीन को हर-भरा बना देते हैं और शहरों को स्वर्ग में बदल देते हैं और सम्पन्न वर्ग की जीवन शैली को एशो-आराम में तब्दील करने के लिए अपना पसीना बहा देते हैं। इनकी सुध लेना हर हिन्दोस्तानी का फर्ज है। इस वर्ग के लोग समाज को इतना देते हैं कि उनका हिस्सा मापना बहुत मुश्किल काम हो जाता है। जरूरत इस बात की है कि इस भारत के लोगों को फिर से खाने-कमाने की छूट दी जाये और केवल उन्हीं स्थानों पर लाॅकडाऊन के नियम लागू हों जहां सक्रिय संक्रमित बीमार मरीजों की संख्या हो। इसकी निशानदेही राज्य सरकारें ही स्थानीय प्रशासन की मदद से ग्राम स्तर तक कर सकती हैं।
कोरोना का डर दूर करना इसलिए भी जरूरी है जिससे भारत अपने पैरों पर खड़ा हो सके और इसमें आत्मविश्वास जागृत हो। फिलहाल तो कोरोना ने आम आदमी का आत्मविश्वास ही संकट में डाल रखा है। बेशक कोरोना से दूर रहने के लिए आवश्यक नियमों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति पर लाजिमी हो मगर ‘भय’ में जीने की आदत को तो समाप्त करना ही होगा। भय अपने आप में ऐसी भयंकर बीमारी होती है जो दूसरी बुराइयों को पैदा करती है। अतः डर को समाप्त करना बहुत जरूरी होता है। हालांकि इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए भौतिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) बहुत जरूरी है मगर हम देख रहे हैं कि हवाई यात्रा में इससे कैसे निपटा जा रहा है। हवाई जहाजों की तीनों सीट इसीलिए भरी जा रही हैं जिससे यात्रा महंगी न हो जाये। ठीक यही फार्मूला हमें भारत पर भी इस तरह लागू करना होगा कि सामान्य व्यक्ति खौफ से मुक्त होकर अपने रोजगार व धंधों में लग सके।