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कोरोना अनलाॅक की वरीयताएं

हालांकि गृह मन्त्रालय ने कोरोना निर्देश आगामी 30 जून तक बढ़ा दिये हैं परन्तु केरल व कर्नाटक को छोड़ कर विभिन्न राज्यों में अब इस बीमारी के मामले तेजी से घटने पर हैं जिसे देखते हुए इन राज्यों की सरकारों ने लाकडाऊन को ढीला करना शुरू कर दिया है।

हालांकि गृह मन्त्रालय ने कोरोना निर्देश आगामी 30 जून तक बढ़ा दिये हैं परन्तु  केरल व कर्नाटक को छोड़ कर विभिन्न राज्यों में अब इस बीमारी के मामले तेजी से घटने पर हैं जिसे देखते हुए इन राज्यों की सरकारों ने लाकडाऊन को ढीला करना शुरू कर दिया है। इसकी पहल राजधानी दिल्ली की सरकार ने की है और आगामी सोमवार से भवन निर्माण गतिविधियों व फैक्टरियों को खोल दिया है। जाहिर है कि लाकडाऊन का सबसे बुरा असर दैनिक मजदूरी करके अपना घर चलाने वाले लोगों पर ही होता है मगर समूची अर्थव्यवस्था इससे प्रभावित होती है। पूरे देश में पिछले 24 घंटे में कोरोना के मामले घट कर अब एक लाख 80 हजार के करीब हो गये हैं मगर मरने वालों की संख्या अब भी साढे़ तीन हजार से ऊपर ही है। इससे यह अन्दाजा तो लगाया जा सकता है कि कोरोना की दूसरी लहर की मार कितनी घातक रही है। 
यह इस बात का भी संकेत है कि कोरोना किस प्रकार भेष बदल कर आक्रमण करता है क्योंकि विगत मार्च महीने में कोरोना की पहली लहर का प्रभाव समाप्त होने पर हम बेफिक्र हो गये थे और कहीं-कहीं तो जश्न तक मनाने का उपक्रम भी किया गया था। अब दूसरी लहर के उतार पर हमें जरा भी गफलत में आने की जरूरत नहीं है क्योंकि सभी राज्य सरकारें अब लाकडाऊन में ढील देना शुरू करेंगी जिससे लोगों की रोजमर्रा की जिन्दगी पटरी पर आने लगे और आर्थिक गतिविधियां ताजा दम होने लगे। पुराने अनुभव को देखते हुए हमें बहुत सतर्क रहने की जरूरत होगी । यह सतर्कता तभी कारगर हो सकती है जब कोरोना नियमाचार को हम अपने दैनिक जीवन का अंग बना लें और इसे तब तक जारी रखें जब तक कि भारत के सभी लोगों को वैक्सीन न लग जाये। फिलहाल भारत की विशाल आबादी को देखते हुए वैक्सीन बहुत ही कम लोगों को लग पायी है। 139 करोड़ की आबादी में से यदि 20 करोड़ लोगों को ही अभी तक वैक्सीन लगी है तो यह तीन प्रतिशत के आसपास है। इसका मतलब यह हुआ कि 97 प्रतिशत आबादी अभी भी कोरोना के संभावित बदलते स्वरूपों का शिकार हो सकती है। अतः आगामी सोमवार से कई राज्यों में जो अनलाक की प्रक्रिया शुरू होगी उसमें हमें इस प्रकार व्यवहार करना है कि कोरोना का कोई भी हमला हम पर न हो सके। हमें यह भी मालूम है कि इस वर्ष के भीतर-भीतर 18 वर्ष से ऊपर के सभी नागरिकों को वैक्सीन दिये जाने के वादे किये जा रहे हैं। यदि ये वादे सही उतरते हैं तो भी इनके पूरा होने तक हमें पूरी सावधानी बरतनी होगी। इस क्रम में सबसे बड़ा एतियात यह बरतना होगा कि हर सूरत में घर से बाहर मास्क लगा कर ही जायें और किसी दूसरे व्यक्ति से बात करते समय उचित जमीनी दूरी बना कर रहें। हालांकि जमीनी दूरी बनाने का काम व्यावहारिकता में बहुत मुश्किल होता है, मगर इसे अपनी आदत में हमें शामिल करना ही होगा। इसके साथ ही हमें अपनी धार्मिक भावनाओं और कर्मकांडों पर नियन्त्रण रखना होगा और अपने अल्लाह या भगवान को अपने दिलों में ही खोजना होगा। किसी भी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान को केवल प्रतीकात्मक रूप से ही अपने घर में एकान्त में करना होगा। यह मैं इसलिए  लिख रहा हूं कि क्योंकि भारत को धर्मपरायण नागरिकों का देश माना जाता हैं। यहा अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं परन्तु सभी धर्मों में सामाजिक समागम रचे-बसे रहते हैं। अतः बहुत जरूरी है कि कोरोना पर विजय प्राप्त करने तक हम पंडितों व मुल्लाओं के माध्यम से परवरदिगार से राब्ता कायम करने के बजाय सीधे स्वयं ही भगवान से सम्बन्ध स्थापित करने की कला सीखें और अपने परिवार की रक्षा करें। 
जाहिर है कि उन लोगों के लिए यह कार्य करना बहुत मुसीबत भरा है जो रोज खाते और कमाते हैं। एेसे लोगों को जब तक सरकारी वित्तीय मदद का इंतजाम नहीं होता है तब तक कोरोना के चलते इनके सामने मुश्किलें रहेंगी। उन्हें सबसे पहले अपने परिवार और बच्चों का पेट पालने की फिक्र रहती है। कोरोना काल में विभिन्न प्रतिबन्धों के चलते इनकी आमदनी न के बराबर हो गई है और ये जैसे-तैसे कर्जा ले लेकर अपना काम चला रहे हैं। बड़े-बड़े बंगलों और एयर कंडीशंड कमरों में ताश खेल कर या टीवी देख कर दिन गुजारने वाले लोग इनके दुखों की कल्पना तक नहीं कर सकते हैं। पूरे समाज और देश को सबसे पहले इनके बारे में ही सोचना होगा। यह बात सबकी समझ में आनी चाहिए कि असली भारत इन्ही लोगों की मेहनत से चलता है। इनकी जान बचाना और रोजी की गारंटी देना चुनी हुई सरकारों का पहला दायित्व होता है। कोरोना ने हमें भारत की उस हकीकत से परिचित भी कराया है जो गांवों से लेकर शहर तक जीवन्ताता को बनाये रखती है। बल्कि यदि गौर से देखा जाये तो भारत की राजनीतिक जीवन्तता को भी असली भारत के ये लोग ही बनाये रखते हैं। इनके वोट से ही सरकारें बनती और बिगड़ती हैं क्योंकि 80 प्रतिशत मतदाता इसी पृष्ठ भूमि के होते हैं।  अतः जब हम ‘अनलाक’ की प्रक्रिया शुरू करें तो सबसे पहले इन्ही लोगों के सुख के इन्तजाम के बारे में सोचें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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