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तीन राज्यों के चुनाव नतीजे

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय व नगालैंड के विधानसभा चुनावों के परिणामों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने इन राज्यों में जिस प्रकार के राजनैतिक गठबन्धन करके चुनाव लड़ा

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय व नगालैंड के विधानसभा चुनावों के परिणामों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने इन राज्यों में जिस प्रकार के राजनैतिक गठबन्धन करके चुनाव लड़ा वह फलीभूत हुआ और वह त्रिपुरा में अपने बूते पर ही साधारण बहुमत प्राप्त करने सफल रही जबकि नगालैंड में उसकी सहयोगी पार्टी एडीडीपी भी बहुमत पाने में सफल रही किन्तु मेघालय में भाजपा की रणनीति सफल नहीं हो सकी और चुनावों से पहले उसकी सहयोगी रही एनपीपी पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी औऱ 60 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा को पिछले एक के मुकाबले तीन सीटें प्राप्त हुईं। कमोबेश तरीके से यह कहा जा सकता है कि चुनाव परिणाम भाजपा के प्रतिकूल नहीं रहे हैं और त्रिपुरा में उसे पुनः सरकार बनाने का अवसर यहां की जनता ने दिया है। यह बात भी दीगर है कि इन चुनावों में भाजपा के मत प्रतिशत में लगभग दस प्रतिशत की कमी आयी है मगर इसके बावजूद 60 सदस्यीय विधानसभा में वह अपने दम पर 30 से अधिक सीटें जीतने में कामयाब हो सकी है। 
दूसरी तरफ त्रिपुरा में 2018 से पहले 25 साल तक सत्तारूढ़ रही मार्क्सवादी पार्टी के मत प्रतिशत में इस हकीकत के बावजूद 10 प्रतिशत की कमी आई है जबकि उसने कांग्रेस पार्टी के साथ साझा मोर्चा बना कर चुनाव लड़ा था। इसकी वजह यह मानी जा रही है कि त्रिपुरा रियासत के पूर्व महाराज कुमार प्रद्युत देव बर्मन की नई पार्टी ‘टिपरा मोथा’ ने बहुत शानदार तरीके से चुनाव लड़ा और मार्क्सवादी मोर्चे व भाजपा द्वारा खाली किये गये 20 प्रतिशत मतों पर अपना कब्जा जमा कर 13 के करीब सीटें जीतने में सफलता हासिल की। इन तीनों राज्यो मेंं त्रिपुरा राज्य का चरित्र मेघालय व नगालैंड से अलग माना जाता है क्योंकि यहां बांग्लाभाषी लोग काफी संख्या में हैं और उनकी संस्कृति त्रिपुरा के मूल जन जातीय निवासियों से अलग है। श्री देव बर्मन की पार्टी को इन्हीं जन जातीय लोगों का जबर्दस्त समर्थन प्राप्त था। वैसे तो इन तीनों राज्यों में मात्र पांच लोकसभा सीटें ही हैं और तीनों राज्यों की कुल आबादी मिला कर भी पौने करोड़ के लगभग है मगर इन राज्यों का भारत की समेकित संघीय राजनीति के सन्दर्भ में महत्व कम नहीं है। नगालैंड आजादी के पहले से ही अलगाववाद से जूझता रहा है और यहां अति चरमपंथी तत्व भी सक्रिय रहे हैं। 
इसी वजह से 1963 में पं. जवाहर लाल नेहरू ने एकीकृत असम राज्य के नगा क्षेत्रों के लिए पृथक नगा विकास परिषद का गठन भी किया था और यहां की जनजातियों के रीति-रिवाजों व जीवन शैली की विशेषता के अनुरूप विशेष संवैधानिक अधिकार भी दिये थे। बाद में इसे राज्य का दर्जा भी मिला और साठ के दशक के अन्त तक असम सात राज्यों में विभक्त हो गया जिन्हें ‘मुख- सुख’ की भाषा में ‘सेवन सिस्टर्स’ कहा गया। अतः पूर्वोत्तर के प्रत्येक राज्य की अपनी अलग विशिष्ट पहचान व संस्कृति है। अतः इसका समूचे भारत के साथ समाविष्ट समन्वय करने के लिए राजनैतिक रूप से इन्हें पूर्ण राज्यों का दर्जा भी दिया जाता रहा। पूर्ण राजनैतिक अधिकारों से सम्पन्न इन राज्यों के लोगों ने स्थानीय आर्थिक स्रोतों के सहारे अपने विकास का क्रम भी जारी रखा परन्तु केन्द्र में मोदी सरकार के गठन के बाद इन राज्यों के विकास पर खास जोर दिया गया, इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है। इससे इन राज्यों के लोगों की राष्ट्रीय विकास में सहभागिता भी बढ़ी है। अतः वर्तमान चुनावों का देश की राजनीति पर असर यही हो सकता है कि भाजपा को अब केवल हिन्दी इलाके की पार्टी न समझा जाये। हालांकि आलोचक इसमें कई पेंच निकाल सकते हैं मगर हकीकत यही है कि भाजपा भारत की विविधतापूर्ण सांस्कृतिक छटा के साये में अपने चुनावी विमर्श राज्यवार बदलने में माहिर हो चुकी है। 
इन तीनों राज्यों में सरकार गठन के लिए मेघालय में पेंच खड़ा हो सकता है क्योंकि यहां पिछली सरकार में शामिल कोनराड संगमा की एनपीपी व भाजपा शामिल थीं मगर चुनाव उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ लड़ा। क्षेत्रीय एनपीपी चुनाव परिमाणों में पूर्ण बहुमत से दूर है जिसकी वजह से उसे अन्य दलों की मदद की जरूरत पड़ेगी। यह जरूरत भाजपा के तीन विधायकों को मिला कर भी पूरी नहीं हो सकती। यहां ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के भी पांच विधायकों के जीतने की खबर है और कांग्रेस के भी छह विधायक जीते हैं जबकि दूसरे क्षेत्रीय दल यूडीपी के 11 विधायक जीते हैं अतः बहुत संभावना है कि इन दलों में कुछ के साथ श्री संगमा गठबन्धन करके सरकार बनायें। ये दल कौन से होंगे यह देखने वाली बात होगी। नगालैंड में एेसी कोई समस्या नहीं है क्योंकि पिछली सरकार में शामिल एनडीडीपी व भाजपा ने मिल कर ही चुनाव लड़ा था और इसे पूर्ण बहुमत प्राप्त हो गया है। हां यह देखने वाली बात होगी कि क्या इस बार भी इस राज्य के चुनाव जीतने वाले दल गठित सरकार को अपना समर्थन दे देंगे क्योंकि पिछली विधानसभा में कोई विपक्ष था ही नहीं और सभी दल सरकार को समर्थन दे रहे थे।

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