भारत में राष्ट्र एकता की भावना इतनी शक्तिशाली है कि कोई भी राष्ट्र विरोधी ताकत इस भावना को नुक्सान नहीं पहुंचा सकती। पूर्व में भी राष्ट्र विरोधी तत्वों ने सीमा पार बैठे दुश्मनों की मदद से पंजाब में साम्प्रदायिक सद्भाव को नुक्सान पहुंचाने और अलगाववादी खालिस्तानी विचारधारा को फैलाने का प्रयास किया था लेकिन ऐसी ताकतें सफल नहीं हुई थीं। कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं। अपराधी कितना भी छिपने की कोशिश करे वह अंततः शिकंजे में आ ही जाता है। खुद को भिडरावाला के बॉडी डबल के तौर पर पेश करने वाला अमृतपाल सिंह 35 दिनों से भागता फिर रहा था। अलग-अलग रूप धारण करके उसने कई राज्यों की खाक छानी लेकिन अंततः मोगा के रोडेवाल गांव के गुरुद्वारे से पंजाब पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। अमृतपाल इसे आत्मसमर्पण कहे या पंजाब पुलिस इसे गिरफ्तारी कहे, इतना निश्चित है कि अमृतपाल को पंजाब पुलिस और केन्द्रीय सतर्कता एजैंसियों के दबाव में हथियार डालने पड़े। गिरफ्तार होने से पहले उसने गुरुद्वारे से भड़काऊ भाषण दिया। उसने कहा, यह अंत नहीं शुरूआत है। उसने कई भावनात्मक बातें भी कहीं लेकिन भिंडरावाला के गांव रोडे के लोग उसके समर्थन में नहीं आए। अकाल तख्त से भी उसे किसी प्रकार का समर्थन नहीं मिला, न ही कोई प्रतिक्रिया हुई। पुलिस ने उसे धरदबोचा और उसे बठिंडा हवाई अड्डे पर ले जाया गया, वहीं से उसे विमान से डिब्रूगढ़ की जेल में भेज दिया। 35 दिनों से भागते-भागते अमृतपाल हाफ रहा था और टूट चुका था। उसके आगे गिरफ्तारी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। तीन दिन पहले ही लंदन की उड़ान पर सवार होने से पहले उसकी पत्नी किरणदीप कौर को भी हिरासत में लिया गया था। जिस सिख कौम को वह कुर्बानियों का संदेश दे रहा था उस सिख कौम के लिए वह एक बहरूपिया ही सिद्ध हुआ। महत्वपूर्ण सवाल यह था कि क्या पंजाब में उसके जैसे अतिवादी के लिए कोई जगह है। 1980 के पूरे दशक और 1990 की शुरूआत के एक वर्ष के दौरान खालिस्तानियों ने पूरे पंजाब पर आतंक का साम्राज्य स्थापित कर दिया था। आतंकवाद के काले दिनों में मेरे परदादा लाल जगत नारायण और फिर दादा श्री रमेश चन्द्र की हत्या कर दी गई। पंजाब के कई नेताओं और एक समुदाय के लोगों को बसों और ट्रेनों से निकाल कर उनकी हत्याएं की गईं।
बड़ी मुश्किल से पंजाब काले दिनों के दौर से बाहर निकल पाया। अमृतपाल प्रकरण से पंजाब के लोग ही नहीं बल्कि पंजाब के बाहर रहने वाले सिख खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे थे। उन्हें इस बात का डर सता रहा था कि फिर से पंजाब चरमपंथियों के हाथों में न चला जाए। हर कोई इस बात पर आश्चर्य व्यक्त कर रहा था कि दुबई में ड्राइवरी करने वाला युवक अमृतपाल सिंह अचानक पंजाब आकर दीप सिद्धू के संगठन वारिस पंजाब दे का उत्तराधिकारी कैसे बन गया। अमृतपाल सिंह को सितम्बर 2021 से पहले कोई नहीं जानता था और वह भिंडरावाला के पैतृक गांव रोडे गया और पगड़ी बांधने की रसम की गई और वह पंजाब का वारिस बन बैठा। जब तक उसने अमृतसंचार किया और युवाओं को नशे से मुक्ति दिलाने का अभियान शुरू किया तब उसे पंजाब की सिख जनता ने गम्भीरता से लेना शुरू किया लेकिन पिछले वर्ष अमृतपाल ने साम्प्रदायिक टकराव बढ़ाने के संकेत दिए तो पंजाब के सिख भी सतर्क हो गए। पिछले वर्ष 31 अगस्त को तरणतारन जिले में चर्च में तोड़फाेड़ और कार जलाई गई। फिर अमृतपाल ने ईसाई धर्म के खिलाफ प्रचार करना शुरू किया। फिर अमृतपाल सिंह और उसके समर्थकोें ने जालंधर के एक गुरुद्वारे में बुजुर्गों के बैठने की कुर्सियां और बैंच तोड़ दिए आैर फिर अजनाला थाने पर अपने एक साथी को छुड़ाने के लिए हमला बोला। थाने पर प्रदर्शन के दौरान सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब को एक पालकी में लाया गया। इसलिए पुलिस ने जवाबी कार्रवाई नहीं की। यह सब हरकतें पंजाब के सिखों को पसंद नहीं आईं। अमृतपाल सिंह सिख आस्था से गौण मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित कर रहा था, इसलिए उसे सिखों का समर्थन प्राप्त नहीं हुआ। हालांकि युवा वर्ग उसके साथ हो चला था। जब उसने गृहमंत्री अमित शाह को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जैसा हश्र होने की धमकी दी और वह सत्ता काे सीधी चुनौती देने लगा तो गृह मंत्रालय अलर्ट हुआ। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर स्थिति पर विचार-विमर्श किया और देश हित में पंजाब पुलिस और केन्द्रीय सतर्कता एजैंसियों ने मिलकर आपरेशन अमृतपाल शुरू किया। यह स्पष्ट हो चुका है कि अमृतपाल सिंह पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई और कई देशों में सक्रिय खालिस्तानी संगठनों का मोहरा मात्र था। उसकी गिरफ्तारी से पंजाब पुलिस और पंजाब की जनता ने राहत की सांस ली है। उसकी गिरफ्तारी से साफ है कि पंजाब के सिखों की साेच प्रगतिशील है और वह खालिस्तान की विचारधारा का कतई समर्थन नहीं करतेे।दुबई से डिब्रूगढ़ तक…