कल आदरणीय अमर शहीद रोमेश चन्द्र जी यानी पापा जी का जन्मदिन है। अगर आज वो जीवित होते तो 92 वर्ष के होते क्योंकि वो अमर हैं इसलिए उनका जन्मदिन हम हर साल मनाते हैं। उनके नाम और अमर शहीद लालाजी की इच्छानुसार हमने वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की स्थापना की जिससे लाखों बुजुर्गों को सारे देश में फायदा पहुंच रहा है और उनके नाम पर ही हमने जे.आर. मीडिया (जगत नारायण, रोमेश चन्द्र) इंस्टीट्यूट की स्थापना की जिससे देशभर में उनके दिखाए हुए मार्ग पर चलते हुए कई भावी पत्रकार उनकी रोशनी फैला रहे हैं। हर साल उनके जन्मदिन पर जरूरतमंद बुजुर्गों को सर्दी के कपड़े, कम्बल, जुराबें, इनर, नी कैप, राशन, फल, स्टिक्स, व्हील चेयर, हर जरूरत का सामान बांटा जाता है। जब सब सम्मान पाकर और उनकी मनपसन्द का खाना खिलाया जाता है तो उनके मुंह पर मुस्कुराहट व खुशियां होती हैं।
ऐसे लगता है मानो बुजुर्गों की शक्ल में पापा जी मुस्कुरा रहे हैं, आशीर्वाद दे रहे हैं। उनके साथ मिलकर केक काटा जाता है और पापा जी की मनपसन्द गर्म जलेबियां कड़कती ठण्ड में उनको खिलाई जाती हैं। हर साल उनके जन्मदिन पर हम सब उनको बहुत याद करते हैं परन्तु इस बार तो उनकी कमी बहुत ही अखर रही है। जब से अश्विनी जी अस्वस्थ हुए हैं, लगता है अगर वो होते तो…..मेरे बच्चे अपने दादा जी की कमी बहुत महसूस कर रहे हैं। जब वो अपने पिता को दर्द में देखते हैं तो वो उनके आसपास रहते हैं, उनके गले लगते हैं, पांव दबाते हैं, सेवा करते हैं परन्तु जब भी कोई इन्सान दर्द में होता है उसे मां-बाप का गले लगाना बहुत सुकून देता है, उनकी मां उन्हें बहुत आशीर्वाद देती हैं। सबसे बड़ा किस्मत वाला दिन था जब जगत मां दर्शी मां खुद उनको अपना आशीर्वाद देने आईं, उनको और मुझे गले लगाया, ढेरों आशीर्वाद दिए, हमारे दोनों के आंसू ही नहीं रुक रहे थे। इतना सब कुछ होते हुए भी पापा जी आपकी कमी को पल-पल महसूस करते हैं।
हमेशा बच्चों के मुख से यही सुनती हूं काश! आज दादा जी होते, दादा जी होते तो यह होता, यह नहीं होता। कहते हैं जहां ईश्वर नहीं होता वहां मां खड़ी मिलती है परन्तु पापा, दादा के लिए ऐसा नहीं कहा जाता परन्तु जो महसूस होता है वो इससे भी बड़ा है। पिता एक साइलेंट संरक्षण है, सेफ्टी है, सिक्योरिटी है। एक ऐसा रिश्ता है जो पीछे रहकर कई कड़ियों को जोड़ता है जिसके डर से अनुशासन बना रहता है। घर में कोई विभीषण नहीं बन पाता क्योंकि मां का प्यार और पिता का डर बहुत आवश्यक है। वो भी एक ऐसे पिता जो दुनिया के लिए एक उदाहरण, घर के लिए उदाहरण, परिवार के लिए उदाहरण थे। उनकी बहनों से मेरी बात होती है तो वो भी उनको याद करके यही कहती हैं कि बड़े भाई जैसा कोई नहीं, वो सबकी भावनाओं की कद्र करते थे, प्यार देते थे, सारे परिवार को इकट्ठा रखते थे, सबको देते ही थे, कभी किसी से कुछ लिया नहीं। वो जब घर में प्रवेश करते थे तो अपने बच्चों से पहले अपने छोटे भाई के बच्चों को प्यार करते थे, उनके त्याग से ही परिवार का नाम और व्यापार आगे बढ़ा। उनके द्वारा चलाया हुआ शहीद परिवार फण्ड उनकी दूरदर्शी और समाज में लोगों की मदद करने की सोच थी।
जो वो बोलते थे, जो समाज को संस्कार देते थे, पहले वो आप करते थे। अपने लिए तो सब जीते हैं परन्तु रोमेश चन्द्र जी सचमुच दूसरों के लिए जीये और उन्होंने परोपकार निभाया। उनका सिद्धांत सही था जो भगवान महावीर के इस आदर्श पर आधारित था-जीयो और जीने दो। मुझे खुशी है कि मैंने जीवन में जब-जब इसे उतारा तो मुझे जैन समाज, वैश्य समाज, सिख समाज, हर तरफ से बड़ा प्यार मिला। जीवन में सेवा और समर्पण तथा संस्कार श्री रोमेश चन्द्र जी के आदर्शों से ही मिले हैं। उनके जन्मदिन पर हम खुशियां मनाने के साथ-साथ उनके बताए मार्ग पर चलते रहेंगे। यही संकल्प हम लेते हैं और यही संदेश हर परिवार को देना चाहते हैं कि परिवारों में नैतिक मूल्य और अनुशासन तब-तब खत्म होते हैं जब-जब कुछ पाने की कोशिश में हम स्वार्थी तत्वों की बातों का शिकार हो जाते हैं। हम बुजुर्गों की सेवा का संकल्प अगर निभा रहे हैं तो हमें भरोसा है कि हमारी पीढ़ियां भी इसे निभाएंगी। एक बार फिर से स्वर्ग में बैठे पिता ससुर अमर शहीद रोमेश चन्द्र जी को हैप्पी बर्थ डे।