‘‘अगर इस जहां में बैस्ट पापा के लिए कोई
अवार्ड होता तो वह आपके नाम होता,
मुझे यह खूबसूरत दुनिया दिखाने और
जीवन के हर मोड़ पर मेरा साथ निभाने के लिए शुक्रिया
आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
हैप्पी बर्थडे पापा।’’
आज मेरे पिता श्री अश्विनी कुमार का जन्मदिन है। मुझे याद है कि आपको जन्मदिन मनाने का बहुत शौक था। आपका जन्मदिन मेरे लिए और मेरे अनुजों अर्जुन, आकाश के लिए भी खुशी का सबब होता। पिता श्री जब हमारा जन्मदिन मनाते या मेरी मां किरण चोपड़ा के जन्मदिन पर पार्टी करते तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता। दोस्तों के बीच रहना और खुलकर जीना उनकी आदत रही। दोस्तों के बीच उनकी दीवानगी देख सभी कहने लगते थे-
‘‘यार बिना कख दा,
यार नाल लख दा।’’
आज भी हम उनका जन्मदिन उनके दोस्तों के बीच मनाएंगे। मैं समझता हूं शब्दों से भरा सागर भी आज हमारी भावनाओं को चित्रित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। मेरी मां का भावुक होना स्वाभाविक है।
पिता जीवन के शास्त्र को ऐसे सम्भालते हैं कि घर स्वर्णभूमि बन जाता है। हर संभावना को संभव करने की सक्षमता और शुभाशीष से अमरत्व देने की सामर्थ्य लिए पिता वह वट वृक्ष है जिसकी छांव में समस्त वेद, ग्रंथ और पुण्य फलित होते हैं। वाकई, पिता है तो हमारे हिस्से का आकाश उज्ज्वल है, सूर्य तेजस्वी है, सृष्टि में प्राणवायु है। पापा हर उम्र की वह संजीवनी है जो जीवटता से जिन्दगी जीने का माद्दा पैदा करती है। व्याख्या करने से पहले तमाम शब्दकोश भी सीमित हो जाते हैं। मात्र जन्म ही नहीं, बल्कि पृथ्वी पर हमारी उपस्थिति को भी अर्थ मिलते हैं, जब पिता सस्वर स्फुटित होते हैं।
अश्विनी जी स्वयं स्वामी विवेकानंद की पंक्तियों का स्मरण करते थे-दूसरे तुम्हारा क्या मूल्यांकन करते हैं, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं, महत्वपूर्ण यह है कि तुम स्वयं को कितना महत्वपूर्ण मानते हो। मेरे पिता के व्यक्तित्व का आकलन न तो भाई कर सकता है, न ही अन्य रिश्तेदार। कोई रिश्ता उनका आकलन कर ही नहीं सकता है। मुझे इस बात की खुशी है कि उन्होंने जो भी जीवन में किया बड़ी शिद्दत के साथ किया। पत्रकारिता तो उन्हें विरासत में मिली थी। डीएवी कालेज जालंधर से ग्रेजुएशन और पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर तक की शिक्षा प्राप्त की लेकिन उनकी दिलचस्पी क्रिकेट में थी। कई वर्षों तक वह रणजी ट्राफी, ईरानी ट्राफी और दिलीप ट्राफी में फ्रंट फुट पर खेले। गेंदबाजी और बल्लेबाजी के क्षेत्र में उन्हें दक्षता प्राप्त थी। उनकी पहचान आल राउंडर के तौर पर स्थापित हो चुकी थी। उन्हें नेशनल टीम में खेलने का अवसर मिला लेकिन आपातकाल और फिर उसके बाद आतंकवाद ने उनके जीवन की धारा ही बदल दी। पूजनीय दादा श्री रमेश चन्द्र जी की शहादत के बाद उन्होंने कलम सम्भाली तो जीवन के अंतिम क्षण तक लिखते रहे। उन्हें अपने निर्भीक विचारों और स्वतंत्र लेखनी के लिए जाना जाता है। उनके सम्पादकीय लेख के लाखों लोग प्रशंसक रहे। मेरे पड़दादा और दादा की शहादत के बाद भी उन्होंने आतंकवाद के विरुद्ध लेखन नहीं छोड़ा। वह करनाल संसदीय सीट से भारी मतों से जीत कर सांसद भी बने लेकिन कलम छोड़ना उन्हें गवारा न था। सत्ता के सही फैसलों का स्वागत और गलत फैसलों पर करारा प्रहार करना उनके स्वभाव में था। उन्हें हमेशा लगता था कि अभी बहुत कुछ करना है। मेरे पिता की हर सफलता में मेरी मां भी पूरे अध्याय की हकदार है।
‘‘जब हाथ में कलम हो,
हो जेहन में उजाला
हर सुबह नववर्ष है
हर शाम दीपमाला।’’
धीर, गम्भीर, शांत, विमर्श के लिए पिताजी एक स्तम्भ थे। डांट, फटकार के बावजूद वह हमारी आसानी से काउंसलिंग कर लेते थे। वह हमारे दोस्त की तरह थे। दोस्ती का आधार रहा संवाद। पिता और बच्चों के रिश्ते में संवेदना, स्नेह और संस्कार मूल हैं, वह है अनुशासन जो बच्चों का जीवन संवारता है। उन्होंने हमें ऐसे तराशा जैसे कुम्हार माटी को तराशता है। आज उनके जन्म दिवस पर मेरी परम पिता परमात्मा से प्रार्थना है कि मेरे हाथों में इतनी शक्ति बनाए रखना कि कलम पकड़ कर मैं अपने विचारों को पंजाब केसरी के लाखों पाठकों तक पहुंचाता रहूं। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी मैं अपने पथ से विचलित न होऊं। पंजाब केसरी के पाठकों का जो आशीर्वाद और सहयोग हमें मिल रहा है वह हमेशा हमारे साथ रहे। पापा का आशीर्वाद तो हमेशा हम पर रहेगा। एक बार फिर पापा को जन्मदिन मुबारक।