चीतों की कब्रगाह बने मध्यप्रदेश के कूनोे नैशनल पार्क में एक और मादा चीते की मौत के साथ ही अब तक 9 चीतों की मौत हो गई है। बचे हुए 15 चीतों में से भी दो बीमार हैं। यद्यपि दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के विशेषज्ञ चीतों की मौत को लेकर एक के बाद एक चौंकाने वाले खुलासे कर रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि मादा चीता धात्री की मौत फ्लाई लाखा संक्रमण से कीड़े पड़ने के कारण हुई और यह संक्रमण तेजी से फैल रहा है। पिछले दस दिनों से धात्री को ट्रैंकूलाइज करने की कोशिश की जा रही थी। फ्लाई लाखा के खतरे को देखते हुए बाकी चीतों की गर्दन से रेडियो कॉलर हटा दिए गए हैं। यद्यपि केन्द्र यह कहता रहा है कि सभी चीतों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई। पहले यह कहा गया कि नामीबिया से लाए गए चीतों को यहां का गर्म मौसम रास नहीं आ रहा। कभी यह कहा गया कि चीतों की मौत आपसी संघर्ष के कारण हुई। कुल मिलाकर चीता प्रोजैक्ट को लगातार झटके मिल रहे हैं। चीतों की मौत को लेकर सियासत भी कम नहीं हो रही। कूनोे में चीतों को बसाने का प्रयास दुनिया के सबसे बड़े वन्य जीव स्थानांतरण में से एक है। कूनो में चीतों की अब तक मृत्युदर सामान्य मापदंडों के भीतर ही है। चीता संरक्षण का इतिहास बताता है कि जब दक्षिण अफ्रीका ने वर्ष 1966 में चीतों काे फिर से बसाने की कोशिश शुरू की तो उसमें 26 साल लग गए। अफ्रीका के माहौल में ढलने के लिए चीतों को समय लगा और इस बीच करीब 200 की मौत भी हुई। हालांकि, भारत में इतने बड़े पैमाने पर नुक्सान की संभावना नहीं है। जानकार बताते हैं कि निश्चित तौर पर प्रोजैक्ट चीता इसी तरह के बढ़ते दर्द से गुजरेगा। हालांकि, घबराने की जरूरत नहीं है। दक्षिण अफ्रीका एक्सपर्ट की यह राय है जो कि सरकार के चीता प्रोजैक्ट स्टीयरिंग कमेटी के परामर्श पैनल में भी शामिल है।
दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया में मिलाकर वैश्विक चीता आबादी का हिस्सा 40 प्रतिशत है। दुनियाभर में जानवरों की निरंतर गिरावट को देखते हुए दक्षिण अफ्रीका ने कमजोर प्रजातियों के संरक्षण का प्लान बनाया। इसी कड़ी में चीतों को देश के भीतर और बाहर फिर से बसाना शुरू किया गया। कुछ सालों के बाद उन्हें सफलता मिली और यह देश आगे की गिरावट को रोकने में सक्षम हो गया। फिलहाल चीतों की मेटा-जनसंख्या हर साल 8 प्रतिशत बढ़ रही है जो कि संख्या के लिहाज से 40-60 है।
हाल ही में विशेषज्ञों ने एक स्टेटस रिपोर्ट दी है कि भारत में युवा व्यस्क चीते लाए जाएं क्योंकि युवा चीते नए वातावरण के लिए अधिक अनुकूल होते हैं और पुराने चीतों की तुलना में उनकी जीवित रहने की दर अधिक होती है। छोटे नर चीते अन्य चीतों के प्रति कम आक्रामक होते हैं जिससे अंतत: विशिष्ट प्रतिस्पर्धा मृत्युदर का जोखिम कम हो जाता है। विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर डाला है कि युवा चीतों काे रिलीज किए जाने के बाद इनकी लम्बी जीवन प्रत्याशा होती है जो उच्च संरक्षण मूल्य और प्रजनन क्षमता प्रदान करती है। हालांकि शुरूआत में चीता शावक की मृत्यु दर अधिक होने की उम्मीद है क्योंकि मादा चीता एशिया में विभिन्न जन्म अंतरालों के अनुकूल होती है। रिपोर्ट में “सुपरमॉम्स” के महत्व को भी रेखांकित किया गया। ‘सुपरमॉम्स’ अत्यधिक सफल, फिट मादा चीते हैं जो दक्षिण अफ्रीका के जंगली चीतों की आबादी को बनाए रखती है।
विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में लाई गई सात जंगली मादाओं में से केवल एक के “सुपरमॉम्स” होने की संभावना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगले दशक में दक्षिण अफ्रीका आबादी से कम से कम 50 और चीतों को लाना भारतीय आबादी काे स्थिर करने के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा। दीर्घकालिक आनुवंशिक और जनसांख्यिकीय व्यवहार्यता के लिए दक्षिण अफ्रीकी और भारतीय चीतों की आबादी के बीच निरंतर अदला-बदली भी आवश्यक होगी। विशेषज्ञों ने भारतीय अधिकारियों को यह सुझाव देते हुए कि कुनो एक सिक रिजर्व हो सकता है, वैकल्पिक स्थलों की पहचान करने की सलाह दी है। सिंक रिजर्व ऐसे आवास हैं जिनमें सीमित संसाधन या ऐसी पर्यावरणीय स्थितियां होती हैं जो किसी प्रजाति के अस्तिव या प्रजनन के लिए कम अनुकूल होती है। सिंक रिजर्व स्रोत रिजर्व से जानवरों को बढ़ाने पर निर्भर है।
विशेषज्ञों ने 50 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र वाले दो अतिरिक्त वन्य जीव पार्कों को स्थापित करने की भी सिफारिश की है। कुछ अन्य अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों ने परियोजना के प्रबंधन को लेकर भी गंभीर चिंता व्यक्त की है। बेहतर निगरानी और समय पर उपचार से चीतों की मौत को रोका जा सकता है। बेहतर यही होगा कि कूनो प्रबंधन संक्रमण को बढ़ने से रोके और विशेषज्ञों की सलाह मानकर कदम उठाए। क्योंकि लगातार मौतों से भारत की छवि पर आंच आ रही है। थोड़ी सी भी चूक चीता प्रोजैक्ट के लिए महंगी और खरतनाक साबित हो सकती है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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