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मुद्दा ‘गुजराती बनाम बाहरी’ का!

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गुजरात में बलात्कार की एक घटना ने हालात मुश्किल कर दिए हैं। सावरकांठा जिले में एक गैर गुजराती को 14 महीने की बच्ची के बलात्कार मामले में गिरफ्तार किया गया है। इसके बाद से ही वहां स्थानीय लोगों में उत्तर भारत में आकर रह रहे लोगों का गुस्सा बढ़ गया है। उत्तर भारतीय लोगों पर हमले किए जा रहे हैं, उन्हें गुजरात छोड़ने की धमकियां मिल रही हैं। उत्तर भारतीय लोग डर के मारे पलायन कर रहे हैं। यद्यपि पुलिस ने बलात्कार के आरोप में एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया है लेकिन यह मुद्दा ‘गुजराती बनाम बाहरी’ में तब्दील हो गया है। ऐसा माहौल बनाने के लिए सोशल मीडिया फिर ​जिम्मेदार है जिस पर नफरत भरे संदेश को फैलाया। उत्तर भारतीय लोग अपने टीवी, रेफ्रिजरेटर जैसी चीजें बहुत कम दामों पर बेचकर अपने घरों को लौट रहे हैं।

बलात्कार की घटना हिम्मतनगर में हुई थी लेकिन उसका असर सावरकांठा, मेहसाणा, गांधीनगर और अहमदाबाद जैसे शहरों में हुआ जहां बाहरी लोग बड़ी तादाद में बसते हैं। पुलिस लगातार उन लोगों को गिरफ्तार कर रही है जो उत्तर भारतीयों पर हमले कर रहे हैं या उन्हें धमका रहे हैं या फिर सोशल मीडिया पर नफरत भरे संदेश फैला रहे हैं। आर्थिक विकास की दृष्टि से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आैर बिहार और राजस्थान को बीमार राज्य कहा जाता है। इन राज्यों के हजारों लोग गुजरात, महाराष्ट्र, ​दिल्ली और पंजाब में रोजगार के मकसद से जाते हैं। जहां वे खेतों में मजदूरी करके, फैक्टरियों में काम करके या छोटे-मोटे धंधे करके अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं। महाराष्ट्र में भी उत्तर भारतीयों को खदेड़ने का अभियान मराठी अस्मिता की दुहाई देने वाली शिवसेना आैर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना कई बार चला चुकी है। क्षेत्रीय दलों का ऐसा अभियान केवल वोट बैंक की राजनीति के चलते ही चलाया गया था।

बलात्कार की घटना के बाद लम्बे समय से दबी हुई भावनाएं भी बाहर आ गईं। पीड़ित बच्ची ठाकोर समुदाय की है इसलिए ठाकोर सेना भी आक्रोश में आ गई। हमलों के लिए ठाकोर सेना को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। ठाकोर सेना का नेतृत्व कांग्रेस विधायक अल्पेश ठाकुर करते हैं। ठाकोर सेना के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जा रहा है। आरोप है कि ठाकोर सेना के कार्यकर्ताओं ने उन फैक्टरियों को निशाना बनाया जिनमें अधिकांश उत्तर भारतीय काम करते हैं। ठाकोर सेना के कार्यकर्ता फैक्टरियों में घुसकर कर्मचारियों से मारपीट कर रहे हैं। कई फैक्टरियों पर पथराव भी किया गया। यहां तक कि उत्तरी गुजरात में पानीपूरी बेचने वालों को भी निशाना बनाया गया। अल्पेश ठाकुर कहते हैं कि इन हमलों में ठाकोर सेना का कोई हाथ नहीं, यह षड्यंत्र उन्हें और गुजरात क्षत्रिय ठाकेर सेना को खत्म करने के लिए किया जा रहा है।

ठाकोर सेना के युवकों पर मुकद्दमे खारिज करने की मांग को लेकर वह सद्भावना अनशन पर बैठ गए हैं। उनका आरोप है कि यह सारा षड्यंत्र भाजपा कार्यकर्ताओं ने रचा है। इस मुद्दे पर राजनीति ही की जा रही है। अब तो महाराष्ट्र से भी कुछ ऐसी ही खबरें आने लगी हैं। ‘गुजरात बनाम बाहरी’ के मुद्दे के पीछे बेरोजगारी भी एक बड़ा कारण है। दरअसल स्थानीय लोग महसूस करते हैं कि राज्य की फैक्टरियों में 80 प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को देने के नियमों का अनुपालन नहीं कर बाहरी राज्यों के मजदूरों को काम दे रहे हैं जबकि गुजराती बेरोजगार बैठे हैं। सावरकांठा में हर महीने 80-90 करोड़ का सिरामिक टाइल्स का धंधा होता है उसमें 60 फीसदी से ज्यादा लोग उत्तर भारतीय काम करते हैं। अब अधिकांश मजदूर लौट गए हैं जिससे पूरा धंधा ही चौपट हो गया है। अपराधी का कोई क्षेत्र नहीं होता, अपराधी को क्षेत्र विशेष से नहीं पहचाना जाना चाहिए। क्षेत्रवाद जैसे राष्ट्रविरोधी विचार से समाज के विखंडित होने की भावनाओं को ही बल मिलता है। भारत कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक है, अगर हम मैं गुजराती, तुम उत्तर भारतीय, मैं मराठी और तुम पंजाबी ही करते रहे तो देश को बहुत नुक्सान होगा।

भारत तो विविधता में एकता वाला देश है आैर यही उसकी सबसे बड़ी विरासत है। महान हिमालय से रक्षित और पवित्र गंगा से सिंचित हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत बहुत श्रेष्ठ है। क्या आजादी के बाद भी हमें राष्ट्रीयता का प्रचार करने की जरूरत है? इसकी उदारता तथा समन्वयवादी गुणों ने अन्य संस्कृतियों को समाहित किया है। विविधताओं के कारण ही भारत में अनेक सांस्कृतिक उपधारणाएं विकसित हुई हैं। आजादी के 70 वर्षों बाद भी अगर क्षेत्रवाद, जाति और धर्म को लेकर विवाद होते हैं तो इसे देश की विडम्बना ही कहा जाएगा। गुजरात के नेताओं को सियासत छोड़ एक भारत श्रेष्ठ भारत का सपना छोड़कर स्थानीय समस्याओं का हल निकालना होगा। बलात्कार पीड़ित बच्ची को न्याय दिलाना और इसकी आड़ में गुंडागर्दी करने वाले तत्वों से कड़े हाथों से निपटना होगा ताकि हालात बेकाबू न हो जाएं। यह भी देखना होगा कि एक राज्य के घटनाक्रम पर किसी दूसरे राज्य में प्रतिक्रिया न हो जाए।

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