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आसाराम को उम्रकैद

आजकल चारों तरफ बाबा की चर्चा है।

आजकल चारों तरफ बाबा की चर्चा है। संसार में ऐसे लाखों बाबा हैं जो धार्मिक गुरु होने का दावा करते हैं। ऐसे लोग पवित्र शास्त्रों को पढ़कर ज्ञानी हो जाते हैं और ऐसा दर्शाने लगते हैं कि वे भगवान के सबसे करीब हैं, परमात्मा से परिचित हैं। कभी वह खुद को भगवान का दूत बताते हैं और बाद में स्वयं को भगवान के रूप में प्रस्तुत करने लग जाते हैं। अपने अटपटे ज्ञान और मनगढ़ंत तर्कों से शिष्यों को उलझाए रखते हैं। भारत के धर्मपरायण लोग आसानी से उन्हें सच्चा संत स्वीकार कर लेते हैं। जनसाधारण आज तक यह जान ही नहीं सका कि वास्तव में सच्चा सतगुरु अथवा पूर्ण संत कौन है। कबीर ने लिखा है-
‘‘गुरु बिन माला फेरते, गुरु ​बिन देते दान,
गुरु ​बिन दोनों निष्फल हैं चाहे पूछो वेद पुराण।’’
सतगुरु एक भक्त के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। एक पूर्ण संत भक्ति प्रदान करता है, जिसे करने से मनुष्य परम शांति प्राप्त कर सकता है। लेकिन आज के दौर में हर गुरु सतगुरु नहीं हो सकता। 
भारत में अनेक बाबा अब जेल की सलाखों में बंद हैं। उनमें से आसाराम बापू भी शामिल है। जिसे गांधीनगर की अदालत ने महिला शिष्य से बलात्कार के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है। आसाराम पहले ही 20 साल की सजा भुगत रहा है। दूसरी सजा का अर्थ यही है कि वह जिन्दगी भर जेल के अन्दर ही रहेगा। वयोवृद्ध हो चुके आसाराम की अकड़, घमंड, जिसमें वो पुलिस अधिकारियों और नेताओं को धमकाया करता था सब फुर्र हो चुके हैं। जो फर्जी बाबा लोगों को मोक्ष देने, स्वर्ग पहुंचाने की बातें करता था वह खुद जेल में ही जीवन बिताएगा। अदालत का फैसला ऐसे फर्जी बाबाओं को कुछ हद तक डराएगा जरूर ताकि वे लोगों की श्रद्धा और भक्ति का फायदा उठाकर उनका शोषण न कर सके। अदालत ने आसाराम के बुजुर्ग होने के आधार पर भी कोई नरमी नहीं दिखाई। आसाराम के बेटे पर भी दुष्कर्म और हत्या के प्रयासों जैसे गम्भीर आरोप हैं। वह भी जेल में ही बंद है। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम भी जेल की सजा काट रहा है।
सच्चा संत वही है, जो सहज भाव से विचार करे और आचरण करे। जब उसका मान हो, तब उसे अभिमान न हो और कभी अपमान हो जाए, तो उसे अहंकार नहीं करना चाहिए। हर हाल में उसकी वाणी मधुर, व्यवहार संयमशील और चरित्र प्रभावशाली होना चाहिए। संत शब्द का अर्थ ही है, सज्जन और धार्मिक व्यक्ति। सच्चा संत सभी के प्रति निरपेक्ष और समान भाव रखता है, क्योंकि सच्चा संत, हर इंसान में भगवान को ही देखता है, उसकी नजर में हर व्यक्ति में भगवान वास करते हैं, इसलिए उस पर किसी भी तरह के व्यवहार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। सच्चा संत वही है जिसने अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया हो और वह हर तरह की कामना से मुक्त हो।
लेकिन आज के फर्जी बाबा यौन पिपासु हैं। वह युवतियों का शोषण करने में लगे हुए हैं। धन के भूखे होकर लालच में काम करते हैं। करोड़ों की सम्पत्तियां बनाकर अपना जीवन विलासिता में बिताते हैं। आसाराम का उदय भी लोगों की अंधभक्ति के कारण हुआ। असुमल ने 1972 में अहमदाबाद से लगभग 10 किलोमीटर दूर मुटेरा कस्बे में साबरमती नदी के​ किनारे अपनी पहली कुटिया बनाई थी। असुमल से आसाराम हुए बाबा का आध्यात्मिक प्रोजैक्ट धीरे-धीरे गुजरात के अन्य शहरों से होता हुआ देश के अलग-अलग राज्यों में फैल गया। शुरूआत में गुजरात के ग्रामीण इलाकों से आने वाले गरीब,​ पिछड़े और आदिवासी समूहों को अपने प्रवचनों, देसी दवाइयों और भजन कीर्तन की तिकड़ी परोसकर लुभाने वाले आसाराम का प्रभाव धीरे-धीरे मध्यमवर्गीय क्षेत्रों में बढ़ता गया। अनुयाइयों के दम पर आसाराम ने अपने बेटे नारायण साईं के साथ मिलकर देश-विदेश में फैले 400 आश्रमों का साम्राज्य खड़ा कर लिया। राजनीतिज्ञों ने भी आसाराम के जरिये एक बड़े वोटर समूह में पैठ बनाने का प्रयास किया। आसाराम के सामने नमन करने वाले चोटी के नेताओं में सभी राजनीतिक दलों के नेता शामिल रहे। 
आसाराम के साम्राज्य का पतन उसी दिन शुरू हो गया था जब 2008 में मुटेरा आश्रम में दो बच्चों की हत्या का मामला सामने आया था। धीरे-धीरे साम्राज्य की काली हकीकत सामने आती गई। इस बात को लेकर हैरानी होती है कि फर्जी बाबाओं को सजा मिलने के बाद भी उनके अनुयाइयों की अंधश्रद्धा में कोई ज्यादा अंतर नहीं आ रहा। आध्यात्मिकता के एक समृद्ध और विविध इतिहास के साथ भारत एक प्राचीन देश है। एक पहलू यह भी है कि लोगों को इस बात का अहसास ही नहीं है कि भगवान की भक्ति या दिव्यता केवल अच्छे कर्मों और विचारों से प्राप्त की जा सकती है, न कि उन लोगों के प्रति अंधभक्ति के माध्यम से जो स्वयं अपनी महानता का दावा करते हैं। आश्चर्यचकित करने वाली बात तो यह है कि आसाराम के अभी भी ऐसे समर्थक हैं जो उनकी सजा के खिलाफ हैं। जब तक भारतीयों को अपने धर्म की सच्ची शक्ति का अहसास नहीं होगा, तब तक पाखंडी बाबा अपने अनुयाइयों का शोेषण करते रहेंगे। किसी को भी संत स्वीकार करने से पहले लोगों को यह देखना चाहिए कि उनके आसपास क्या हो रहा या उनके लिए क्या हो रहा है? इसके लिए जागरूकता और ज्ञान की जरूरत है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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