गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की लगातार छठी बार सरकार बनने जा रही है। किसी भी राज्य में लगातार सत्ता पर काबिज रहने का बेशक यह कोई नया रिकार्ड न हो मगर विपक्ष को सत्ता में आने से रोके रखने का साहसिक प्रयास तो जरूर है। किन्तु इस बार की भाजपा की विजय में एक अन्तर है कि यह श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री बन जाने के बाद हुई है। पिछले तीन चुनाव उन्होंने राज्य के मुख्यमन्त्री के रूप में लड़े थे और विजय प्राप्त की थी। यह भी कहा जा सकता है कि इस बार की भाजपा की विजय उस तरह धमाकेदार नहीं है जैसी पिछले तीन चुनावों में हुई थी मगर इसमें किसी प्रकार की शंका का कोई औचित्य नहीं है कि श्री मोदी का जादू अभी भी काम कर रहा है और अमित शाह की रणनीति पूरी तरह सफल रही है।
गुजरात में चुनाव असल में भाजपा ने नहीं बल्कि श्री मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने जीते हैं क्योंकि उन्होंने लगातार एक महीने तक इस राज्य में प्रचार किया और रिकार्ड 41 रैलियों को सम्बोधित करके मतदाताओं से साफ कहा कि वे गुजरात के बेटे को अपना आशीर्वाद दें। अतः बहुत साफ है कि गुजरात में श्री मोदी के नाम का जादू चला है और जिसने भाजपा की नैया को पार लगाया है। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की तरफ से उन्हें गंभीर चुनौती दी गई थी जिनके साथ पाटीदार समुदाय के आन्दोलन के युवा नेता हार्दिक पटेल के साथ दलित व पिछड़े समाज के प्रतिनििध के रूप में दो अन्य युवा नेता क्रमशः जिग्नेश व अल्पेश भी थे जिससे राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा सरकार को जूझने में मुश्किल हो रही थी मगर श्री मोदी ने अपने गृह राज्य में चुनावी कमान संभाल कर इन शक्तियों का मुकाबला अपने ही तरीके व अन्दाज से किया। यह भी इन चुनावों से सिद्ध हुआ कि श्री मोदी को चुनाव जीतने के नुस्खे आते हैं और वे उन मुद्दों को हाशिये पर डालने की कला में माहिर हैं जो उनके विरोधी उनके खिलाफ धारदार अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करते हैं। यह जरूर कहा जा सकता है कि इस बार एेसे मुद्दे उन्हें खुद कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर व कपिल सिब्बल जैसे ‘महा विद्वान’ समझे जाने वाले नेताओं ने प्लेट पर सजा कर दे दिए लेकिन यह भी सत्य है कि उनके समानान्तर श्री राहुल गांधी ने भी अपने व्यक्तित्व की पहचान एक राजनीतिज्ञ के रूप में गुजरात में ही बनाने में सफलता प्राप्त की है।
उन्होंने चुनाव प्रचार को एेसे अंदाज में चलाया जिसकी वजह से प्रधानमन्त्री को गुजरात पर केन्द्रित होना पड़ा। श्री मोदी ने चुनाव जीतकर मतदाताओं का विश्वास पुनः अपनी पार्टी में जमाने का प्रयास किया है। यह उनका ही करिश्मा कहा जायेगा कि भाजपा पूर्ण बहुमत पाने में सफल हो गई वरना मतगणना के दौरान एक बार तो एेसा भी अवसर आया था जब कांग्रेस भाजपा से आगे निकलती दिखाई दे रही थी। यह श्री मोदी का राजनीतिक चातुर्य ही कहा जायेगा कि उन्होंने चुनाव प्रचार के बीच ही गुजरात के व्यापारी समुदाय का मूड देखकर जीएसटी की दरों में संशोधन करने का निर्णय किया मगर ग्रामीण क्षेत्रों में सत्ता के विरुद्ध उपजे गुस्से का इजहार भी इन्हीं गुजरात चुनावों में हुआ है और वहां भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को मतदाताओं ने वरीयता दी है। यह संकेत है कि देश के कृषि क्षेत्र की क्या हालत है मगर श्री मोदी जातिवादी समीकरणों में सेंध लगाने में कामयाब रहे जिसकी वजह से उनकी पार्टी को पाटीदारों के परंपरागत वोट में ज्यादा कमी नहीं आ पाई लेकिन यह भी स्वीकार करना होगा कि कांग्रेस ने भाजपा के इस गढ़ में सेन्ध लगाने का काम शुरू कर दिया है। जहां तक हिमाचल प्रदेश का सवाल है वहां भाजपा की सरकार बनना पूरी तरह तय माना जा रहा था, मगर इस पर्वतीय राज्य में इसका कैप्टन चारों खाने चित्त हो गया है।
भाजपा ने चुनाव के अन्तिम समय में पूर्व मुख्यमन्त्री प्रेम कुमार धूमल को अपना मुख्यमन्त्री प्रत्याशी घोषित किया था। वह चुनाव हार गए हैं जबकि भाजपा को विधानसभा में दो तिहाई बहुमत मिल गया है मगर इस राज्य का चुनाव भी भाजपा ने केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर ही जीता है। श्री मोदी ने हिमाचल में भी अच्छा चुनाव प्रचार किया था जबकि कांग्रेस की ओर से मुख्य रूप से कमान मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह ही संभाले रहे थे मगर इस राज्य की परंपरा है कि जनता यहां हर पांच साल बाद सरकार बदल देती है। अतः श्री मोदी को यहां ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। बेशक चुनावी मुद्दों पर बहस की जा सकती है मगर परिणाम वाले दिन विजयी दलों को बधाई दी जानी चाहिए।