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मां की विदाई….

जिन्दगी में ईश्वर ने दो माएं दीं। एक जिसने जन्म दिया पूर्णिमा दत्त जिसने मुझे संस्कार दिए। एक मेरी सासू मां श्रीमती सुदर्शन चोपड़ा जिन्होंने मुझे जिन्दगी का व्यवहार दिया।

जिन्दगी में ईश्वर ने दो माएं दीं। एक जिसने जन्म दिया पूर्णिमा दत्त जिसने मुझे संस्कार दिए। एक मेरी सासू मां श्रीमती सुदर्शन चोपड़ा जिन्होंने मुझे जिन्दगी का व्यवहार दिया। एक मां तो नामपात्र पढ़ी थी और सुदर्शन मां जो उस समय मेरठ यूनिवर्सिटी का प्रथम ग्रेजुएशन का बैच था उसमें शामिल थी वो आर्मी ऑफिसर की बेटी। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा और अपने आप में मुझे ऐसे ढाल लिया कि अक्सर लोग हमें मां-बेटी कहकर बुलाते थे। यहां तक कि कई बार शक्ल भी मिला देते थे। हमारा आपस में ऐसा रिश्ता था कि उनकी खुशी मेरी खुशी उनके गम मेरे गम थे।
जो शादी से पहले डर था कि सास कैसी होगी। वो कभी भी शादी के बाद महसूस नहीं किया। यहां तक कि ईश्वर की देन से मुझे दो मां रूपी सास मिलीं। एक चाची सास और एक अश्विनी जी की माता जी, जिनका 24 अगस्त की सुबह 91 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। हम सब परिवार वालों ने उन्हें मिलकर विदाई दी, परन्तु मैं सोचती हूं यह कैसी विदाई, वो तो हमारे बीच में से गई नहीं, वो अपने बच्चों, पौत्रों, बहुओं के रूप में अपने कई रूप छोड़ गई हैं। जिधर भी मैं नजर दौड़ाती हूं मुझे वो ही दिखाई दे रही हैं। उनका हंसता चेहरा, सुन्दर सी मुस्कराहट। अश्विनी जी के अनुसार उनकी मां दुनिया की सबसे सुन्दर औरत थी। यहां तक कि छोटे होते वो कोई सुन्दर हीरोइन का कलैंडर देखते तो उसकी तरफ इशारा करके कहते मां… यानि उनके लिए मां ही सब कुछ थी। मम्मी की आवाज इतनी सुरीली थी कि वो मीना दत्त की तरह गाना गाती थीं। देवानंद, गोल्डी आनंद, शेखर कपूर उनके फर्स्ट कजन थे। अगर उनको भी जीवन में अवसर मिलता तो वह भी बहुत बड़ी सिंगर बन सकती थीं। अश्विनी जी और अरविन्द जी की आवाज भी उन्हीं पर गई, दोनों गीत गाते थे।
मां के अन्दर बहुत गुण थे, वो बहुत बड़ी समाज सेविका थीं। उन्होंने रेडक्रास, नारी निकेतन के लिए बहुत से काम किए। वो हमेशा सबकी मदद के लिए तत्पर रहती थीं। उनको लोग नर्गिस दत्त भी कहते थे। बहुत ही स्मार्ट थीं। उनको अच्छे कपड़े पहनने का बहुत शौक था। जो अंतिम समय तक रहा। इस उम्र में भी वो टीप-टॉप रहती थीं। वो हमारी सबकी प्रेरणास्रोत थी। उनका यह अंदाज था, कहती थीं बेटा मुझे पिंक कलर का पर्स किसी ने गिफ्ट दिया। बाकी तुम देख लो यानी उनका मैचिंग सूट और जूते आप ले लेना, बहुत ही प्रसन्नचित्त थीं। उन्हीं से हमने सीखा कि हमेशा तैयार रहना चाहिए। यही नहीं उनकी ​इंग्लिश भाषा पर अच्छी पकड़ थी और वह इंग्लिश में वार्तालाप भी करती थीं और बड़ी शान से अपने पौत्रों को कहती थीं, देखा इंग्लिश स्पीकिंग दादी… किसी की दादी है मेरे जैसी। 
साथ ही वो बहुत अच्छी बहू थीं वो पूरे परिवार की सेवा करती थीं।  8 ननदें, एक देवर-देवरानी, उनके  बच्चे, सबको बहुत प्यार से संभालती थीं। उन्होंने अपना पूरा जीवन भारतीय संस्कृति-सभ्यता के साथ व्यतीत किया। वो एक अच्छी बहू, पत्नी, मां, दादी थीं। बस जीवन के कुछ अंतिम समय पर थोड़ा सा फर्क पड़ गया था, परन्तु फिर भी उनका जीवन हम सबके लिए एक प्रेरणा है। 24 को विदाई दी और आज अंतिम रस्म किरया बहुत भारी मन से जिन्दगी के 45 साल एक रील की तरह घूम रहे थे। मां तुम्हारी कैसी विदाई तुम सांसारिक रूप से तो चली गईं, परन्तु हमेशा हमारे दिल में जीवित रहोगी।

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