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म्यांमार-भारत और लोकतंत्र

म्यांमार (बर्मा) को 1937 से पहले भारत की ब्रिटिश हकूमत ने भारत का ही एक राज्य ​घोषित किया था लेकिन बाद में इसको भारत से अलग कर अपना उपनिवेश बना दिया था।

म्यांमार (बर्मा) को 1937 से पहले भारत की ब्रिटिश हकूमत ने भारत का ही एक राज्य ​घोषित किया था लेकिन बाद में इसको भारत से अलग कर अपना उपनिवेश बना दिया था। 80 के दशक में पहले इसका नाम बर्मा हुआ करता था, लेकिन बाद में इसका नाम म्यांमार कर ​दिया गया। चार जनवरी, 1948 को ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ। 1962 तक यहां पर लोकतंत्र के तहत देश की जनता अपनी सरकार चुनती थी। लेकिन दो मार्च, 1962 को सेना के जनरल ने बिन ने सरकार का तख्ता पलट करते हुए देश की सत्ता पर कब्जा कर​ लिया था। म्यांमार में सैन्य शासन का लम्बा दौर चला। 26 वर्षों तक चले मिलिट्री राज जुंटा के दौरान मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप भी सरकार पर लगते रहे हैं। म्यांमार में लोकतंत्र बहाली के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता सू की ने लम्बा संघर्ष किया। उनके संघर्ष के बाद म्यांमार में आधा-अधूरा लोकतंत्र बहाल हुआ था लेकिन इसी वर्ष फरवरी में सेना ने फिर तख्ता पलट कर​ दिया। तख्ता पलट के बाद विद्रोह में लगभग एक हजार से ज्यादा लोगों की हत्याएं की गईं, जिनमें अधिकतर बच्चे शामिल हैं। सेना ने चुनावी अनियमितताओं के आरोप लगाकर तख्ता पलट किया और कहा गया कि सैन्य शासन के बिना देश को एकजुट नहीं रखा जा सकता।
सू की को फिर जेल में डाल दिया गया और उन्हें दो मामलों में सजा भी सुना दी गई। म्यांमार के छात्र और लोग सैन्य शासन के ​िखलाफ जनांदोलन चलाए हुए हैं। 1988 में भी सैन्य शासन के खिलाफ छात्रों ने बड़ा जनांदोलन चलाया था। इसी आंदोलन से सू की एक राष्ट्रीय नेता बनकर उभरी थीं। सू की की नजरबंदी 2010 में खत्म हुई थी। उसके बाद चुनावों में जीत कर वह 2016 से लेकर 2021 तक म्यांमार की स्टेट काउंसलर के साथ विदेश मंत्री भी रहीं। लेकिन सेना ने तख्ता पलट कर पूरा परिदृश्य ही बदल दिया। भारत काफी दिनों से म्यांमार को लेकर स्थिति पर नजर रखे हुए था। 
भारत खामोशी से अध्ययन कर रहा था लेकिन जो भौगोलिक स्थितियां बन रही थीं उसे देखते हुए भारत को अंततः खुलकर बोलना ही पड़ा। विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला सेना के तख्ता पलट के बाद पहली बार म्यांमार पहुंचे और उन्होंने स्टेट एडमिनिस्ट्रेटिव काउंसिल के अध्यक्ष जनरल मिन हलिंग और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की। विदेश स​चिव ने दो टूक भारत का पक्ष रखा कि म्यांमार में लोकतंत्र की शीघ्र बहाली हो, हिरासत और जेलों में रखे गए लोगों की रिहाई हो, संवाद के माध्यम से मुद्दों का समाधान हो।
विदेश सचिव ने स्पष्ट किया कि सभी तरह की हिंसा या पूर्ण रोक में भारत का हित है। हर्षवर्धन श्रृंगला आंग सान सू की से ​मिलना चाहते थे लेकिन सैन्य शासन ने उन्हें अनुमति देने से इंकार कर दिया। हालांकि सैन्य शासन ​मुलाकात की अनुमति देने से इंकार कर दिया लेकिन अगर इस मुलाकात की अनुमति दी भी जाती तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ता।
भारत के विदेश सचिव की यह यात्रा ऐसे समय में हुई है जब अमेरिका एक तरफ म्यांमार पर पाबंदियां और सख्ती बढ़ा रहा है तो दूसरी तरफ चीन इसका फायदा उठाकर म्यांमार में अपनी पैठ बढ़ाने में लगा है। बीते दिनों ही चीन ने म्यांमार के साथ सीमा के लिए ​चीन प्रभाव का स्वीकार्य मुद्दा बनाने का समझौता किया है। म्यांमार का सैन्य शासन चीन के काफी करीब है। इसके अलावा म्यांमार के फौजी शासन के अधिकारियों को चीन विशेष ट्रेनिंग भी दे रहा है। म्यांमार की बढ़ती चीनी सक्रियता भारत के लिए ​चिंता का सबब है। म्यांमार के साथ भारत की 1600 किलोमीटर से अधिक की सीमा है, वहीं सीमा का यह अधि​कांश इलाका सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील पूर्वोत्तर राज्यों से सटा है। इतना ही नहीं म्यांमार में पूर्वोत्तर के उग्रवादी संगठनों को पनाह, मदद और रसद न मिले इसके लिए भारत कोशिश करता है। फौजी तख्ता पलट से पहले भारत की तरफ से म्यांमार को ढांचागत विस्तार ही नहीं सैनिक मजबूती के लिए भी मदद दी जा रही थी। इसी कड़ी में भारत उसे डीजल से चलने वाली पनडुब्बी आईएनएस सिंधुवीर भी तोहफे में देने का ऐलान कर चुका है।
विदेश सचिव ने दक्षिणी मणिपुर के चुटाचांदपुर जिला में हाल ही की घटना के संदर्भ में भारत की सुरक्षा संबंधी मामलों को भी उठाया। भारत ने इसके लिए विद्रोही गुट को जिम्मेदार माना है।​ फिलहाल म्यांमार ने पूर्वोत्तर के उग्रवादी गुटों को किसी भी तरह की मदद न देने का आश्वासन दिया है। भारत ने एक बार फिर उदारता दिखाते हुए कोरोना वायरस के दस लाख टीके, दस हजार टन चावल और गेहूं का अनुदान भी दिया है। भारत ने एक बार फिर मानवीय समर्थन की पुष्टि की है। अमेरिकी आपत्तियों के बावजूद भारत ने म्यांमार की तरफ हाथ बढ़ाया है। पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद चीन म्यांमार में धड़ल्ले से काम कर रहा है। भारत के लिए चीन की काट निकालना भी जरूरी है। म्यांमार हमारा पड़ोसी है, हमारी सुरक्षा उनसे जुड़ी हुई है। दक्षिण पूर्व एशिया से सम्पर्क म्यांमार के रास्ते से है। इसलिए म्यांमार से रिश्ते बनाए रखना जरूरी भी है। भारत की म्यांमार नीति का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि वहां कब तक सैन्य शासन रहता है और लोकतंत्र की बहाली में कितना समय लगता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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