यह पंक्तियां बड़े भावनात्मक तरीके से दिल से कहीं प्रसिद्ध युवा एक्टर और समाजसेवी विवेक ओबराय ने। वाकई आज आधुनिक जमाना है, लोग खूनी रिश्ते नहीं निभा पाते तो धर्म के रिश्ते कैसे निभाएंगे। अगर मुझे कोई ऐसा व्यक्ति मिले जो अपने एक बार कहे शब्द पर अटल होता है और निभाता है तो सच में मैं उसकी दिल से कद्र और सम्मान करती हूं। पिछले साल अप्रैल में विज्ञान भवन में सर्वधर्म सम्मेलन में मेरा मंच पर विवेक ओबराय से मिलना हुआ। मैं, सुषमा स्वराज जी, नजमा हेपतुल्ला, लोकेश मुनि जी और टाइम्स आफ इंडिया की इन्दु जैन थे। जब सब मेरे लिए कुछ न कुछ बोल रहे थे और विवेक ओबराय जी के लिए भी अच्छे कामों के बारे में बोल रहे थे। तब विवेक ने कहा किरण जी मैं आपके साथ जुड़कर बुजुर्गों के लिए काम करूंगा और आप मेरे साथ हैं। उस समय हम दोनों भावुक थे। अक्सर मंच पर ऐसा होता है, मंच पर जब मैं बोलती हूं तो कई लोग भावना में दिल से जुड़ते हैं। कई तो हमेशा के लिए जुड़ जाते हैं, कई वहीं ही रह जाते हैं। हम दोनों ने एक-दूसरे के नम्बर आदान-प्रदान किए। अपने कामों में इतनी व्यस्त रहती हूं कि फुर्सत ही नहीं मिल रही थी। I am always on my toes परन्तु दिल में हमेशा रहता था कि मुझे एक बार विवेक ओबराय से जरूर मिलना है, बात करनी है। मैं उनसे प्रभावित थी। इसी मध्य वह मेरे बेटे आदित्य को भी मिले और उसे भी बड़े प्यार से मिले और कहा- किरण जी को कहना मैं याद कर रहा हूं। जिन्दगी में कई बार ऐसा होता है कि जिसे आप बहुत ही ज्यादा दिल से बात करना चाहते हो पर बात कर ही नहीं पाते।
दो-तीन दिन पहले अचानक समाचारों में देखा कि विवेक ओबराय एसिड अटैक की पीडि़ता ललिता की शादी पर आए और उन्होंने उसे फ्लैट गिफ्ट किया। उसकी सर्जरी का भी खर्चा वहन करेंगे। वाह! मैं इसे देख अपने आपको रोक न पाई और झट से विवेक को मैसेज कर दिया (अक्सर मैं मैसेज करती हूं। क्योंकि हम सभी व्यस्त होते हैं, जब फ्री हों तो पढ़ो और जवाब दो।) झट से मैसेज का जवाब आया किरण जी आपने मुझे याद किया, बहुत अच्छा लगा इसका इंतजार था। अगर फ्री हैं तो कॉल करूं। मैंने भी झट से जवाब दिया येस। फिर क्या था जैसे ही उसका फोन आया मैंने कहा कि बहुत टाइम से सोच रही थी परन्तु जब टीवी में आपको इतना अच्छा कार्य करते देखा तो अपने आपको एक मिनट भी रोक न पाई। आप मुझे डिटेल में बताएं कि आपने यह सब क्यों और कैसे किया। बस फिर क्या था उन्होंने मुझे बताना शुरू किया और मेरी आंखें खुशी से नम होती गईं। सर उसकी बातों और करनी के आगे झुकता गया और मैं अपने आप में गर्व महसूस कर रही थी कि मैं एक फरिश्ते से बात कर रही थी और मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि आज के जमाने में भी फरिश्ते होते हैं (वैसे मुझसे मेरे काम से जो भी जुड़े हैं वह फरिश्तों से कम नहीं)।
उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री की पत्नी उसकी अमृता भाभी एसिड अटैक पीडि़तों के लिए काम करती हैं तो उन्होंने एसिड अटैक के लिए एक फैशन शो किया यानी रैम्प पर चलना था। रैम्प में ग्रांड फिनाले में मुझे एसिड पीडि़त ललिता के साथ लास्ट में आना था। सो हम दोनों बातें करते रहे और वह मुझे भैया-भैया कहकर अपने दु:ख की कहानी बताती रही। कैसे उसके कजन ने ही उस पर एसिड फैंका और अब वह किराए के फ्लैट में रहकर अपनी सर्जरी करवाती रही है। फ्लैट का किराया बहुत मुश्किल से परिवार दे रहा है। मैं भावनात्मक हो गया और उसे कहा तू मुझे भैया कह रही है तो तू मेरी बहन है। अपनी चिंता छोड़ दे। वो भी बहुत खुश हो गई। कुछ समय बाद विवेक को किसी ने बताया कि तुम्हारी बहन की शादी हो रही है तो वह अचानक शादी पर पहुंचा और अपनी मुंह बोली ललिता बहन को फ्लैट की चाबियां दीं और आगे की सर्जरी करवाने की भी जिम्मेदारी ली। उसने कहा कि जिसको एक बार बहन कह दिया वो ताउम्र बहन है। वाह विवेक तुम्हें दिल से सैल्यूट करती हूं। क्योंकि मैं भी बहुत सामाजिक काम करती हूं। मुझे तरह-तरह के लोगों से मिलना होता है। अक्सर लोग अच्छे ही मिलते हैं, परन्तु यह तो मिसाल है। मैं प्रभु को मन ही मन धन्यवाद कर रही थी, कैसा फरिश्ता है यह एक्टर, समाज में कोई भी अच्छा काम करे उन्हें समाज के सामने लाती हूं। क्योंकि मैं राजनीति से बचती हूं, परन्तु अश्विनी जी एमपी हैं तो मैं उनकी पत्नी उनके प्रतिनिधि के रूप में, एक कार्यकर्ता के रूप काम करती हूं। वहां अक्सर अधिकतर राजनीतिक लोगों के दो चेहरे दिखते हैं तो दिल में नफरत होती है क्योंकि अगर देखा जाए राजनीति भी एक सेवा है अगर सही मायने में की जाए।
मैं इसलिए भी उसके भाई के फर्ज से प्रभावित हुई क्योंकि पिछले दिनों हरियाणा का नामीगिरामी मंत्री जो अक्सर मुझे बहन-बेटी कहता था मुझे सुनने में आया कि वह पार्टी के विरुद्ध भगवान के नाम पर गलत काम करने जा रहा है क्योंकि मुझे वो बेटी-बहन कहते हैं तो उस नाते से उन्हें मैंने फोन किया कि पार्टी के विरुद्ध और सीएम, एमपी के विरुद्ध काम न करो और भगवान का नाम बदनाम न करो। मैं भगवान परशुराम की बेटी हूं, न अन्याय करती हूं, न सहती हूं। उसने बड़े प्यार से कहा- नहीं मेरी बहन-बेटी, मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा। न ही जा रहा हूं, लोगों ने ऐसे ही नाम लिख दिया। यह एक ब्राह्मण भाई ब्राह्मण बहन से कह रहा है और ब्राह्मण झूठ नहीं बोलता। खासकर जब बहना ने कह दिया। मैंने वहां सब स्थानीय महत्वपूर्ण लोगों को बता भी दिया। सबने कहा यह एक नम्बर का झूठा इंसान है, इसका भरोसा न करना। मैंने कहा नहीं बहन को क्यों झूठ बोलेगा इस 70 साल की उम्र में परन्तु कथनी और करनी में बहुत फर्क था। उसने किया क्योंकि सुना है उस काम में वह बड़ी राशि ले चुका था। कहां तक ठीक है या तो वो जानता है या ईश्वर। मैं बहुत आहत हुई कि आज की दुनिया में रिश्ते कोई मायने ही नहीं रखते। बाद में पता चला कि उस व्यक्ति की जिन्दगी में सिर्फ पैसा मायने रखता है। मेरी जगह उसकी सगी बहन या बेटी होती तो वह यही करता क्योंकि उसके बहुत से लेन-देन के किस्से सामने आ रहे हैं और चारों तरफ चर्चा है। वह बड़े नेताओं का नाम इस्तेमाल करता है कि उन्हें पैसे पहुंचा रहा है (कहां तक ठीक है यह तो ईश्वर जाने)।
मेरा दिल चाहता था कि आज के बाद जो मुझे बहन-बेटी कहेगा उस पर कभी विश्वास नहीं करूंगी, परन्तु विवेक का काम और भाव सुनकर न तो मैं अपना रोना रोक सकी, न भावना और ईश्वर से दुआ करती हूं देश की हर बेटी-बहन को विवेक ओबराय जैसे भाई मिलें खासकर ललिता जैसी दु:खी बहनों को और मेरे जैसी जो शब्दों में विश्वास रखकर चलती है। बहन को भी और उसने मेरे विश्वास को भी मजबूत किया। इक्का-दुक्का लोगों को छोड़कर अधिकतर लोग रिश्ते निभाते हैं। मेरा एक सगा भाई है और 6 भाई ऐसे हैं जिनको मैं राखी बांधती हूं। मुंह बोली माएं हैं। सभी रिश्ता निभाते हैं। अंत में यही कहूंगी विवेक तुम महान हो, जो रिश्ते निभाना जानते हो और समाज को कहूंगी इससे सीख लें, जिसे बहन, बेटी, बुआ कह दो निभाओ भी।