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प्याज के छिलके

पहले टमाटर ने बाजार में तहलका मचाया और इसकी कीमतें 250 से 300 के बीच पहुंच गई। मानसून के दिनों में टमाटर की कीमतें चढ़ती जरूर हैं लेकिन इतना भाव पहले कभी नहीं हुआ।

पहले टमाटर ने बाजार में तहलका मचाया और इसकी कीमतें 250 से 300 के बीच पहुंच गई। मानसून के दिनों में टमाटर की कीमतें चढ़ती जरूर हैं लेकिन इतना भाव पहले कभी नहीं हुआ। टमाटर के बाद अब लोगों को प्याज की कीमतें रूलाने वाली हैं। कुछ दिन पहले ही प्याज 10 से 15 रुपए किलो बिक रहा था जो अब 40 से 45 रुपए किलो तक बिक रहा है। सरकार टमाटर की तरह प्याज के बढ़ते दामों को लेकर भी चिंतित है क्योंकि प्याज कई बार सत्ता को हिला चुका है। सरकार इस समय कोई जोखिम उठाने को तैयार नहीं है और उसने जल्दबाजी में सीमा शुल्क अधिसूचना के जरिये 31 दिसम्बर, 2023 तक प्याज पर 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगा दिया है। हाल ही के दिनों में खाद्य बाजार में सरकारी हस्तक्षेप का यह एकमात्र उदाहरण नहीं है। इससे पहले सरकार गेहूं और गैर बासमती सफेद चावल और चीनी के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा चुकी है। दालों की बढ़ती कीमतों पर ब्रेक लगाने के लिए सरकार ने पहले ही तुअर और उड़द पर स्टॉक सीमा लगा दी है। गेहूं और चावल की बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार ने भारतीय खाद्य निगम के स्टॉक से 5 मिलियन टन गेहूं और 2.5 मिलियन टन चावल खुुले बाजार में बेचने का निर्णय लिया है। बढ़ती कीमतों के बीच अगर प्याज के छिलके परत दर परत उतारे जाएं तो सवाल उठता है कि प्याज के उत्पादन में भारत दुनिया में टॉप पर है। इसके बावजूद प्याज के भाव क्यों बढ़ रहे हैं। वर्ष 2021 में भारत ने 26.6 लाख मीट्रिक टन प्याज का उत्पादन किया था। 24.2 लाख मीट्रिक टन के साथ चीन दूसरे नम्बर पर रहा था। वहीं तीसरे नम्बर पर मिस्र था जिसने वर्ष 2021 में 3.3 लाख मीट्रिक टन प्याज का उत्पादन किया था। भारत में सबसे अधिक प्याज का उत्पादन महाराष्ट्र में होता है। सरकार, एपीईडीए और एफएओ के आंकड़ों के अनुसार साल 2021 में भारत में होने वाले प्याज के कुल उत्पादन में महाराष्ट्र की 43 फीसदी हिस्सेदारी थी। मध्य प्रदेश की 16 फीसदी, कर्नाटक की 9 फीसदी और गुजरात की भी 9 फीसदी हिस्सेदारी थी।
 इस साल जनवरी-मार्च अवधि में निर्यात असाधारण रूप से उच्च स्तर पर लगभग 8.2 लाख टन रहा है। जबकि पिछली समान अवधि में यह 3.8 लाख टन था। सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे प्रमुख प्याज उत्पादक राज्यों में मॉनसून के देरी से आने के कारण सुस्त खरीफ बुआई की खबरों के बीच प्याज की खुदरा कीमत एक महीने पहले के 25 रुपये की तुलना में बढ़कर 30 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है। इसके अलावा महाराष्ट्र और कर्नाटक में अप्रैल में बेमौसम बारिश के कारण भंडारित रबी फसलों में उच्च नमी की मात्रा ने उपज के शेल्फ जीवन को प्रभावित किया है।
अब स्थिति यह है कि सरकार बफर जोन से 2000 टन प्याज बेच रही है। प्याज के निर्यात पर 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगाए जाने से महाराष्ट्र के प्याज उत्पादक किसानाें में आक्रोश व्याप्त हो गया है। वहां के किसान सड़कों पर आकर प्रदर्शन करने लगे हैं, क्योंकि निर्यात शुल्क लगाए जाने से उन्हें काफी नुक्सान झेलना पड़ रहा है। महाराष्ट्र की कई मंडियों में तो किसानों ने प्याज की बिक्री ही बंद कर दी। किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए अब सरकार ने नया फैसला किया है कि वह किसानों से 2410 रुपए प्रति क्विंटल की दर से दो लाख मीट्रिक टन प्याज खरीदेगी। इस हिसाब से प्रति किलो प्याज की खरीद पर किसानों को 24 रुपए प्रतिकिलो मिलेंगे। इससे किसानों को बड़ी राहत मिलेगी। इस खरीद के ​लिए नासिक और अहमदनगर में ​विशेष खरीद केन्द्र खोले जाएंगे। टमाटर की तरह सरकार एजैंसियों के माध्यम से सस्ता प्याज उपभोक्ताओं को उपलब्ध करा रही है। सरकार की समस्या यह है कि जब भी खाद्य पदार्थों और सब्जियों के दामों में वृद्धि होती है तो चुनावों के वक्त एक प्रतीक बनाकर सरकारों को घेरने की परम्परा रही है। 
प्याज के आंसुओं को झेलने के बाद जनता द्वारा राजनीतिक बदलाव करने का भी इतिहास रहा है। सरकार ने पुराने अनुभवों से सीख लेते हुए राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ और नेफेड के माध्यम से उपभोक्ताओं को 25 रुपए किलो के हिसाब से प्याज बेचना शुरू कर दिया लेकिन उसकी समस्या यह है कि यदि वह उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करती है तो किसानों के हितों का कुठाराघात होता है। किसानों का कहना है कि किसानों को सही दाम कभी नहीं मिलते। अब अगर प्याज का निर्यात बढ़ा और उन्हें सही दाम मिलने लगे थे तो सरकार ने निर्यात शुल्क बढ़ा दिया। बाजार में उन्हें सही दाम नहीं मिल रहे। व्यापारी किसानों से घटी दरों पर प्याज खरीद रहे हैं। सरकारों को चाहिए कि कोई भी निर्णय लेने से पहले किसानों को केन्द्रित रखकर सटीक फैसले लें ताकि उपभोक्ताओं और किसान दोनों के हितों की रक्षा की जा सके। अब जबकि कुछ राज्यों के चुनाव होने वाले हैं और त्यौहारी सीजन शुरू होने वाला है इसलिए महंगाई पर नियंत्रण रखना सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन किसानों को वाजिब दाम ​दिलाना भी सरकार का दायित्व है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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