सरकार द्वारा प्याज के निर्यात पर 40 प्रतिशत शुल्क लगा देने से साफ हो गया है कि भारतीय राजनीति का प्याज की कीमताें से कितना पुराना और गहरा सम्बन्ध है। 1999-2002 के दौर में प्याज दिल्ली की राज्य सरकार का भाग्य तय करने में तब सफल रही थी जब केन्द्र में भाजपा नीत अटल बिहारी वाजपेयी सरकार थी। भाजपा को तब स्व. श्रीमती सुषमा स्वराज को राष्ट्रीय राजनीति से दिल्ली की राजनीति में लाना पड़ा था और मुख्यमन्त्री बनाना पड़ा था। प्याज के छिलकों ने इस तरह आंखों में पानी लाया कि लोगों ने प्रादेशिक चुनावों में भाजपा की जगह कांग्रेस को सत्ता में बैठा दिया और इस तरह बैठाया कि स्व. शीला दीक्षित पूरे 15 साल तक मुख्यमन्त्री बनी रहीं। दरअसल प्याज गरीब और आम आदमी की भोजन की थाली का एेसा हिस्सा है जो पर्याप्त मात्रा में आवश्यक भोज्य प्रोटीन-विटामिन आदि देता है। भारत में आजकल टमाटर की कीमतों को लेकर जो घमासान मचा हुआ है उसे देखते हुए केन्द्र ने सावधानी बरतते हुए प्याज के थोड़ा ही तल्ख होते ही इसके निर्यात पर शुल्क बढ़ा दिया जिससे घरेलू बाजार में कीमतें नियन्त्रण में रहे।
बाजार में प्याज के भाव फिलहाल पिछले वर्ष के इन दिनों में चल रहे भावों से 20 प्रतिशत अधिक चल रहे हैं। साधारण आदमी की जेब के हिसाब से ये भाव उसका रसोई का बजट बिगाड़ने के लिए काफी हैं क्योंकि पहले से ही बेहिसाब वर्षा की वजह से अन्य साग-सब्जियों के दाम काफी ऊंचे हैं। प्याज भी यदि इनमें शामिल हो जाता है तो गरीब आदमी के वश से साग-सब्जियां इस तरह बाहर हो जाती हैं कि वह प्याज और हरी मिर्च के सहारे भी रोटी खाने में असमर्थ हो जाता है। हमें मालूम हैं कि प्याज के दाम प्रायः वर्षा के मौसम में बढ़ जाते हैं क्योंकि इस दौरान इसकी नई फसल नहीं होती और पुरानी फसल के सहारे ही बाजारों में आपूर्ति चालू रहती है। वैसे तो भारत के महाराष्ट्र, राजस्थान व कर्नाटक आदि राज्यों में प्याज की फसल अच्छी होती है मगर अगली फसल के आने तक इसके खुदरा दामों को बांधे रखना एक समस्या रहती है क्योंकि प्याज का लम्बी अवधि तक भंडारण संभव नहीं होता । अतः बम्पर फसल होने पर इसका निर्यात भी किया जाता है जिससे किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य मिल सके। मगर 1999-2002 के अनुभव को देखते हुए अब सरकारें प्याज को लेकर काफी संजीदा हो गई हैं और खुले बाजार में इसके खुदरा दामों को बढ़ता देखकर इसके निर्यात को नियन्त्रित करने लगती हैं।
भारतीय प्याज का निर्यात आसपास के देशों बांग्लादेश, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल व मलेशिया आदि में ही होता है। हालांकि भारत दुनिया के लगभग 65 देशोंं को प्याज का निर्यात करता है मगर उपरोक्त देशों को बड़ी मिकदार में इसका निर्यात रहता है। यह बताना भी जरूरी है कि पाकिस्तान के साथ भारत का कारोबर बन्द होने की वजह से दोनों देशों के बीच सब्जियों का आयात-निर्यात नहीं होता है वरना पाकिस्तान एक जमाने में भारतीय प्याज का सबसे बड़ा निर्यातक देश रहा है और इसके उलट आयातक देश भी रहा है। अब पाकिस्तान बारास्ता दुबई भारतीय प्याज खरीदता है। अप्रैल से जून महीने के दौरान भारत ने कुल 6.38 लाख मीट्रिक टन प्याज का निर्यात किया जबकि पिछले 2022 वर्ष में अप्रैल से जून महीने के दौरान केवल 5.04 लाख मीट्रिक टन का निर्यात ही किया था। अतः जब भी भारत ज्यादा निर्यात करता है तब-तब घरेलू बाजार में इसकी कीमतें बढ़ने लगती हैं। पिछले वर्ष इन्हीं दिनों में प्याज की घरेलू बाजार में खुदरा कीमत 27 रुपए प्रति किलो के आसपास थी जबकि इस बार 30 रुपए से ऊपर भाग रही है। इसे देखते हुए सरकार ने निर्यात पर शुल्क बढ़ाकर तय किया कि घरेलू बाजार में इसकी सप्लाई बढे़ जिससे दाम ऊपर न भाग पायें। इस बार सबसे ज्यादा निर्यात बांग्लादेश को 1.39 लाख मीट्रिक टन हुआ है और सबसे कम नेपाल को .39 लाख मीट्रिक टन। आलू-प्याज जैसी सब्जी का आयात-निर्यात सामान्य बात होती है, खास कर पड़ोेसी मुल्के में। पिछले दिनों नेपाल ने ही भारत को पेशकश की थी कि वह भारत के चाहने पर उसे टमाटर का निर्यात कर सकता है।
भारत की कृषि विविधता को देखते हुए हर सरकार पर यह दबाव रहता है कि वह किसानों की ‘नकद फसलों’ सब्जी-फल आदि के घरेलू बाजार में उचित मूल्य दिलाने की व्यवस्था करे। मगर इनका व्यापार पूरी तरह निजी बाजार पर निर्भर रहता है और निजी व्यापारी थोक बाजार में इन फसलों के दाम निर्धारित करते हैं। हालांकि कुछ सरकारी एजैंसियां भी आवश्यकता पड़ने पर बाजार हस्तक्षेप करती हैं परन्तु प्रायः वे भावों को बाजार की शक्तियों के हवाले ही रहने देती हैं। दूसरी तरफ हम देख रहे हैं कि भारत के बाजारों में विदेशी फल भी बड़े आराम से मिलते हैं। यह सब कृषि उत्पादों पर आयात-निर्यात प्रतिबन्ध समाप्त होने के बाद से 2001 के बाद ही हुआ है। मगर प्याज एेसी सब्जी है जिसका उत्पादन भारत में प्रति एकड़ के हिसाब से अन्य देशों के मुकाबले बेहतर होता है अतः इसके खुदरा दाम भी भारतीय बहुत ऊंचे देखते ही बेचैन हो जाते हैं। भारत में खाद्य पदार्थों की महंगाई पहले से ही बहुत बढ़ी हुई मानी जा रही है जिसकी वजह से प्याज कभी भी आंखों में आंसू ला सकता था। अतः सरकार ने निर्यात शुल्क बढ़ाने का रास्ता अपनाया है।