पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर हमले के बाद पाकिस्तान गृहयुद्ध की तपिश से झुलस रहा है। इस हमले में इमरान खान बाल-बाल बच गए। लेकिन फायरिंग में एक व्यक्ति की मौत हो गई, जबकि 11 लोग घायल हो गए। पाकिस्तान के शहर आक्रोश से सुलग रहे हैं और आक्रोश की आग कब दावानल का रूप ले ले कुछ कहा नहीं जा सकता। तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष इमरान खान न केवल प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार की वैधता को चुनौती देने और देश में चुनाव कराने के लिए लांग मार्च कर रहे हैं। हमले से क्रुद्ध जनता ने सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा सहित अन्य के घरों की घेराबंदी कर रखी है। कई शहरों में जबरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं। इमरान खान पर हमले ने 2007 के उस हमले की याद ताजा कर दी जब रावलपिंडी की एक रैली को सम्बोधित करते हुए बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी थी। बेनजीर भुट्टो की हत्या के कुछ सप्ताह बाद ही पाकिस्तान में चुनाव होने थे और जिनमें उसकी जीत पक्की मानी जा रही थी। पाकिस्तान में सत्ता, सेना और न्यायपालिका किस तरह से काम करती है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बेनजीर भुट्टो के हत्यारे का आज तक पता नहीं चल सका है। इमरान खान पर हमला ऐसे समय हुआ जब पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कंगाली के दौर में है और पाकिस्तान अपनी हालत सुधारने के लिए चीन और अन्य देशों की ओर ताक रहा है। महंगाई आसमान को छू रही है और आवाम इस कद्र परेशान है कि उन्हें अपना भविष्य सुरक्षित नजर नहीं आता।
यद्यपि इमरान पर हमला करने वाले एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं हैं कि हमलावर कोई एक अकेला व्यक्ति हो सकता है। इमरान खान और गोलियों में कुछ ही इंच की दूरी रह गई अन्यथा गोली जरा भी ऊपर होती तो इमरान खान की मौत हो सकती थी। वैसे तो पाकिस्तान के इतिहास में बार-बार लोकतंत्र का गला घोंटा गया। वहां लोकतांत्रिक तरीकों से चुनी हुई सरकारें कम और सैन्य तानाशाह ज्यादा रहे हैं। आयूब खान, याहिया खान, जुल्फिकार अली भुट्टो, जिया उल हक, परवेज मुशर्रफ जैसे तानाशाह आए और चले गए। पाकिस्तान ने 75 साल में 22 प्रधानमंत्री देखे लेकिन कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। 1958, 1977 और 1999 में तीन बार ऐसे मौके भी आए जब पाकिस्तानी सेना ने जनता द्वारा चुनी गई सरकार का तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा कर लिया।
अब सवाल यह है कि इमरान खान पर हमला किसने करवाया। इमरान की पार्टी का आरोप है कि हमले के पीछे प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, गृहमंत्री राणा सना उल्ला और एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी का हाथ है लेकिन आम धारणा यह है कि हमले के पीछे पाकिस्तान सेना और पाकिस्तान खुफिया एजैंसी आईएसआई का हाथ है। पिछले कुछ समय से इमरान खान जिस तरह से शहबाज शरीफ, सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा और आईएसआई को निशाना बना रहे थे और उन्होंने आईएसआई को हत्यारे प्रतिष्ठान करार दिया था उससे माहौल काफी तनावपूर्ण हो गया था। इमरान खान पर हमला ऐसे समय हुआ जब कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल इसी महीने खत्म हो रहा है। राजनीतिक क्षेत्रों में यह सवाल उठाया जा रहा था िक क्या बाजवा रिटायर होंगे या एक बार फिर पाकिस्तान की राजनीति में सेना का दबदबा देखने को मिलेगा। पाकिस्तान के राजनीतिक क्षेत्रों में इस बात की अटकलें लगाई जा रही थीं कि कमर जावेद बाजवा की भीतर खाते अमेरिका से सांंठगांठ हो चुकी है और वह शहबाज शरीफ का तख्ता पलट खुद सत्ता सम्भाल सकते हैं। सत्ता से हटाए जाने के बाद इमरान खान की लोकप्रियता पहले की तरह बरकरार रही और बाद में हुए कुछ चुनावों में उनकी पार्टी ने शानदार जीत हासिल की। इमरान खान की रैलियों में हजारों की संख्या में लोग शामिल होने लगे। इसी बीच उन्हें तोशाखाना मामले में अदालत ने अयोग्य ठहरा दिया और उनके पांच साल तक चुनाव लड़ने पर पाबंदी भी लगा दी गई। इसके बाद इमरान खान खामोश होकर नहीं बैठे बल्कि सरकार और सेना को सीधे-सीधे चुनौती देने लगे। इमरान खान देश की शक्तिशाली सेना के समर्थन से ही सत्ता में आए थे और प्रधानमंत्री बन गए थे। लेकिन आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति को लेकर इमरान खान और कमर जावेद बाजवा के बीच गतिरोध बना रहा था और इससे इमरान खान और सेना के रिश्तों में दरार पैदा हो गई थी। नेशनल असेंबली में इमरान खान के गठबंधन में शामिल दलों ने जब यह देखा कि सेना ने अपना हाथ इमरान की पीठ से हटा लिया है तब उन्होंने भी पाला बदल लिया तब शहबाज शरीफ प्रधानमंत्री बने। पहले सेना का विश्वास खो देने के बाद सत्ता से हटने वाले नेता विदेश चले जाते थे जैसा कि नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ ने किया। लेकिन इमरान खान ने देश में रहकर जूझना शुरू किया और सीधे-सीधे सत्ता और सेना को चुनौती दे दी। पाकिस्तान का भविष्य अंधकार में लगता है। पाक सेना नहीं चाहती कि इमरान खान का राजनीतिक कद बढ़े और सेना का वर्चस्व कम हो। इमरान खान ने हजारों की संख्या में लांग मार्च में लोगों को जुटाकर नई लकीर खींच दी और वे चुपचाप होकर कुछ भी सहने को तैयार नहीं हैं। अगर पाकिस्तान में गृहयुद्ध हुआ तो पाकिस्तान में हालात बेकाबू होंगे। हो सकता है शहबाज शरीफ को गद्दी छोड़नी पड़े या फिर सेना एक बार फिर आधे-अधूरे लोकतंत्र को अपने बूटों के तले रौंद दे। पाकिस्तान का इतिहास अंधियारा और भविष्य अंधकारमय नजर आता है।
‘‘तुमने बोये थे खेतों में इंसानों के सर
अब जमीं खून उगलती है तो रंज क्यों है?’’
पाकिस्तान ने जिस तरह से आतंकवाद को अपनी सरकारी नीति बनाया है उससे पूरी दुनिया में एक खतरनाक देश के रूप में अपनी छवि बना चुका है। अगर पाकिस्तान के हालात बिगड़ते हैं तो राजनीतिक अस्थिरता फैलेगी और उससे पाकिस्तान की आर्थिक हालत और खराब हो जाएगी। पाकिस्तान की उठापटक से क्षेत्रीय सुरक्षा पर भी गम्भीर असर पड़ेगा। देखना होगा कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान क्या मोड़ लेगा।